कन्याकुमारी भागवत १०.७९.१७ ( बलराम द्वारा तीर्थयात्रा संदर्भ में दुर्गा देवी का कन्याकुमारी रूप में दर्शन ) ।
कन्यावती भविष्य ३.४.३.५३ ( राजा वेणु की पत्नी, सप्त मातृका रूप सात कन्याओं को जन्म देना ) ।
कपर्द गरुड २.३०.५७/२.४०.५७( मृतक के नेत्रों में कपर्दिका देने का उल्लेख ), स्कन्द ४.१.३३.१७१ ( शिव की शिरोभूषा की कपर्द संज्ञा ), ५.१.२.७६ ( आकाशगङ्गा से द्रवित कपर्द को कपाल में धारण करना ), योगवासिष्ठ ६.१.८३.१६ ( किराट द्वारा जङ्गल में खोयी कपर्दक को ढूंढते हुए चिन्तामणि प्राप्त करने का उपाख्यान ), लक्ष्मीनारायण ३.९३.५२ ( कपर्दक : कपर्दक असुर द्वारा देवशर्मा - पत्नी रुचि का हरण, देवशर्मा - शिष्य विपुल द्वारा कपर्दक का वध ) । kaparda
कपर्दी कूर्म १.३२.१२(विश्वेश्वरं तथोंकारं कपर्दीश्वरमेव च ।। एतानि गुह्यलिङ्गानि वाराणस्यां द्विजोत्तमाः ।), १.३३ ( कपर्दीश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : शार्दूल द्वारा हत मृगी की मुक्ति, पिशाच की मुक्ति का वर्णन, शङ्कुकर्ण मुनि द्वारा ब्रह्मपार स्तोत्र द्वारा कपर्दीश्वर शिव की आराधना - कपर्दिनं त्वां परतः परस्ताद् गोप्तारमेकं पुरुषं पुराणम् ।व्रजामि योगेश्वरमीशितारमादित्यमग्निं कपिलाधिरूढम् ।। ), नारद १.५०.३६ ( कपर्दिनी : पितरों की सात मूर्च्छाओं में से एक ), १.६६.११६( कपर्दिनी : छगलण्ड की शक्ति कपर्दिनी का उल्लेख - छलगण्डः कपर्दिन्या द्विरण्डेशश्च वज्रया । ), १.६६.१२७( कपर्दी की शक्ति नटी का उल्लेख - निरञ्जनो मोहिनीयुक्कपर्द्दी तु नटीयुतः।), पद्म १.१७.३२ ( ब्रह्मा के यज्ञ में कपर्दी के आगमन व सदस्यों द्वारा कपाल क्षेपण की कथा - यज्ञवाटं कपर्दीतु भिक्षार्थं समुपागतः। बृहत्कपालं संगृह्य पंचमुण्डैरलंकृतः। ), १.१७.५३ ( कपर्दी शिव का नग्न वेश में ब्रह्मा के यज्ञ में आगमन, ब्राह्मणों द्वारा ताडन पर शाप देना ), १.४०.८३ ( सुरभि गौ के ब्रह्मा से समागम से उत्पन्न एकादश रुद्रों में से एक - मृगव्याधः कपर्दी च महाविश्वेश्वरश्च यः॥ ), ३.३५ ( कपर्दीश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : शार्दूल द्वारा हत मृगी की मुक्ति, पिशाच की मुक्ति का वर्णन, शङ्कुकर्ण मुनि द्वारा ब्रह्मपार स्तोत्र द्वारा कपर्दीश्वर शिव की आराधना - कपर्दिनं त्वां परतः परस्ताद्गोप्तारमेकं पुरुषं पुराणम् । व्रजामि योगेश्वरमीप्सितारमादित्यमग्निं कपिलाधिरूढम् ।। ), भविष्य ३.२.१७.८ ( कपर्दी योगी द्वारा गुणाकर को यक्षिणी प्राप्ति हेतु मन्त्र का दान - कपर्दी प्रददौ तस्मै विद्यां यक्षिणिकर्षिणीम् ।। ), वामन ९०.२० ( प्रभास तीर्थ में विष्णु का कपर्दी नाम से वास - त्रिणाचिकेतं ब्रह्मर्षे प्रभासे च कपर्दिनम्। ), स्कन्द १.२.१३.१६५ ( शतरुद्रिय प्रसंग में विनायक द्वारा पिष्ट से निर्मित लिङ्ग की कपर्दी नाम से आराधना - विनायकः पिष्टलिंगं नाम्ना चापि कपर्दिनम्॥), ४.१.३३.१७० ( कपर्दीश : शिव शरीर में चरण का रूप - कालेश्वरकपर्दीशौ चरणावतिनिर्मलौ ।। ), ४.२.५४ ( शिव के कपर्दी नामक गण द्वारा कपर्दीश लिङ्ग की स्थापना, वाल्मीकि द्वारा कपर्दीश्वर शिव की आराधना, कपर्दीश्वर शिव के प्रभाव से पिशाच की मुक्ति का वर्णन ), ५.१.२६.४७ ( कपर्दी शिव का ब्रह्मा के यज्ञ में आगमन, ऋत्विजों द्वारा कपर्दी के कपालों का यज्ञशाला से बाहर क्षेपण, ब्रह्मा द्वारा शिव से वर प्राप्ति - यज्ञवाटं कपर्दीशस्ततो भिक्षार्थमागतः ।। याज्ञिकैः सोऽथ तत्रोक्तो मात्र तिष्ठ जुगुप्सितः ।। ), ७.१.३०.३ ( कपर्दी हेतु अर्घ्य प्रदान मन्त्र का कथन - ततः पितॄंस्तर्पयित्वा गच्छेद्देवं कपर्दिनम् ॥ .. गणानां त्वेति मन्त्रेण अर्घ्यं चास्मै निवेदयेत् ॥ ), ७.१.३८.५ ( ब्रह्मा द्वारा सावित्री के कोप के कारण कपर्दी रूप धारण ; युगान्तर में पार्वती की देह के मल से कपर्दी विनायक का जन्म, कपर्दी द्वारा सोमेश्वर शिव के दर्शन में विघ्न उपस्थित करना, कपर्दी स्तोत्र का कथन - तस्य दक्षिणभागे तु स्थितो ब्रह्मा प्रजापतिः ॥ कपर्द्दिरूपमास्थाय सावित्र्याः कोपकारणात् ॥ ), ७.१.१४१ ( कपर्दी क्षेत्र का संक्षिप्त माहात्म्य : चिन्तामणि से उपमा - ततो गच्छेन्महादेवि कपर्दी यत्र संस्थितः ॥.. चिंतितार्थप्रदो देवि चिन्तामणिरिवापरः ॥ ), अन्त्येष्टि दीपिका पृ. २०(त्र्यम्बक का कपर्दी से साम्य?) । kapardi / kapardee
कपाल कूर्म २.३१ ( कपाल मोचन कथा ), देवीभागवत ७.३०.७८ ( कपाल मोचन तीर्थ में शुद्धि देवी का वास ), पद्म १.१४.१२ ( शिव द्वारा कपाल में भिक्षा रूप में प्राप्त विष्णु के रक्त से नर के प्रादुर्भाव का वर्णन ), १.१४.१११ ( रुद्र द्वारा ब्रह्मा के तेज युक्त पञ्चम शिर का छेदन, देवों द्वारा कपाली शिव की स्तुति, वाराणसी में ब्रह्महत्या व कपाल से मुक्ति ), १.१७.३२ ( कपर्दी शिव का ब्रह्मा के यज्ञ में आगमन, कपाल क्षेपण की कथा ), २.५३.९८ ( कपाल के छिद्रों नाक, कान आदि में स्थित कृमियों के नाम ), ६.१३३.५७ ( मायापुर में कपालमोचन तीर्थ की स्थिति का उल्लेख ), ६.१३६ ( साभ्रमती नदी तट पर स्थित कपालमोचन तीर्थ का माहात्म्य ), ६.१७९ ( गीता के पञ्चम अध्याय का माहात्म्य : गृध्र व शुकी की कपाल जल में पतन से मुक्ति ), ६.२३५.३ ( कपाल, भस्म, अस्थि आदि अवैदिक चिह्न धारण करने वालों की पाखण्डी संज्ञा ), ब्रह्म १.१२१.६१ ( नारद तीर्थ का महत्त्व : नारद/विष्णु तीर्थ में स्नान से शिव से लग्न ब्रह्मा के कपाल के मोचन का कथन ), ब्रह्माण्ड १.२.९.५ ( पुरोडाश की त्रिकपाल संज्ञा का कारण, गायत्री, त्रिष्टुप् व जगती की ३ कपाल संज्ञा? ), १.२.२२.४६ ( अण्डकपाल : मेघ, दिग्गज आदि ४ का रूप ), भविष्य ३.४.१३.१६ ( ब्रह्मा के कोप से उत्पन्न भैरव द्वारा ब्रह्मा के पञ्चम शिर का छेदन, रुद्राक्ष वृक्ष के नीचे ब्रह्महत्या से मुक्ति व वाराणसी पुरी में कपाल से मुक्ति ), मत्स्य १८३.८७ ( ब्रह्मा के पञ्चम शिर के छेदन की कथा ), वराह ९७ ( ब्रह्मा के पुत्र नीललोहित रुद्र द्वारा ब्रह्मा के पञ्चम शिर का छेदन, कपाल का त्रिविध भेदन करके धारण करना, वाराणसी तीर्थ में कपाल से मुक्त होना, ब्रह्मा द्वारा वरदान ), वामन २.३६+ ( शङ्कर द्वारा ब्रह्मा के पञ्चम गर्वित शिर का छेदन, वाराणसी में स्नान से कपाल से मुक्ति ), ३९.३ ( रहोदर मुनि की जङ्घा में राक्षस के शिर का लगना, औशनस तीर्थ में स्नान से कपाल से मुक्ति, औशनस तीर्थ का कपाल मोचन नाम होना ), स्कन्द १.३.२.१९ ( महिषासुर के कपाल का दुर्गा के हस्त से संलग्न होना, खङ्ग तीर्थ में कपाल से मुक्ति ), २.२.४.७ ( पुरुषोत्तम क्षेत्र में कपाल मोचन तीर्थ की स्थिति का कथन ), २.३.२.९ ( शिव के हस्त से लग्न ब्रह्मा के कपाल का बदरी क्षेत्र में विलग्न होना ), २.३.६.१ ( बदरी क्षेत्र में कपाल मोचन तीर्थ का माहात्म्य ), ३.१.२४ ( ब्रह्मा व विष्णु के श्रेष्ठता विवाद में ब्रह्मा की गर्वोक्ति पर कालभैरव द्वारा ब्रह्मा के पञ्चम शिर का छेदन, काल भैरव द्वारा कपाल को भिक्षा हेतु ग्रहण करना, शिव तीर्थ में ब्रह्महत्या से मुक्ति के पश्चात् वाराणसी में कपाल को स्थापित करना ), ४.१.३१.१२२ ( रुद्र द्वारा काशी में प्रवेश करने पर ब्रह्मा के शिर के छेदन से प्राप्त ब्रह्महत्या व ब्रह्मकपाल का रुद्र से विलग्न होना ), ५.१.२ ( ब्रह्मा द्वारा शिव को पुत्र रूप में प्राप्त करने की कामना पर शिव द्वारा ब्रह्मा को पुत्र द्वारा वध का शाप, ब्रह्मा के पुत्र नीललोहित रुद्र द्वारा ब्रह्मा के पञ्चम शिर का छेदन ), ५.१.३ ( रुद्र द्वारा कपाल में भिक्षा रूप में विष्णु की भुजा के रक्त को धारण करना, रक्त से अर्जुन नर की उत्पत्ति की कथा ), ५.१.५.४९ ( रुद्र द्वारा कुशस्थली में हस्त - लग्न कपाल का भूमि पर क्षेपण, क्षेपण से रसातल सहित भूमि का कम्पित होना ), ५.१.६.६७ ( रसातल वासी द्रोहण नामक असुर के सैनिकों की कपाल क्षेपण से मृत्यु होना, कपाल में भिक्षा धारण की महिमा ), ५.१.९.४ ( कपाल की स्थापना पर देवों का हर्ष, महिष रूप धारी हालाहल दैत्य का आगमन, देवों द्वारा हालाहल का वध, कपाल से उत्पन्न मातृकाओं द्वारा दैत्य की देह का भक्षण ), ५.१.१०.१५ ( शिव / रुद्र के कपाल से मातृकाओं का प्रादुर्भाव ), ५.१.२६.४९ ( कपर्दी का भिक्षार्थ ब्रह्मा के यज्ञ में आगमन, याज्ञिकों द्वारा कपर्दी के कपाल का बहि: क्षेपण, कपाल का पुन:- पुन: उत्पन्न होना, याज्ञिकों द्वारा कपर्दी शिव की शरण लेना ), ५.१.४९.१२ ( रुद्र द्वारा कपाल में विष्णु के रक्त की भिक्षा रूप में प्राप्ति, रक्त से शिप्रा नदी का प्रादुर्भाव ), ५.२.८ ( कपालेश्वर का माहात्म्य : कपाल धारी रुद्र का भिक्षा हेतु ब्रह्मा के यज्ञ में गमन, सदस्यों द्वारा कपाल के बहि: क्षेपण पर नए कपालों का उत्पन्न होना, कपालों के क्षेपण के स्थान पर लिङ्ग का आविर्भाव ), ५.२.१८.२९ ( कपाल से निर्घृणत्व की प्राप्ति का उल्लेख ),५.३.१९८.८५( कपालमोचन तीर्थ में उमा की शुद्धि नाम से स्थिति का उल्लेख ),५.३.२१४ ( श्रीकपाल तीर्थ का माहात्म्य : बलाक लिङ्ग की उत्पत्ति की कथा ), ५.३.२३१.१७ ( रेवा - सागर सङ्गम पर ३ कपालेश्वर तीर्थों की स्थिति का उल्लेख ),६.६५.४१ ( कापालिक द्वारा सुहय राजा के शिर से कपाल का निर्माण करने पर राजा का प्रेत बनना ), ६.१८२.१० ( ब्रह्मा के यज्ञ में कपालपाणि के आगमन की कथा, हवि श्रपण हेतु मृन्मय कपाल के रूप में कपाल का यज्ञ में स्थान पाना ), ६.२६९ ( कपालेश्वर माहात्म्य : वृत्र हत्या के पश्चात् ब्रह्महत्या से मुक्ति हेतु इन्द्र द्वारा वृत्र का कपाल लेकर ६८ तीर्थों में भ्रमण, हाटकेश्वर क्षेत्र में विश्वामित्र ह्रद में स्नान करने पर वृत्र कपाल का हाथ से पतित होना, इन्द्र द्वारा कपाल की पूजा ), ७.१.१०३ ( कपालेश्वर का माहात्म्य : विकृत रूप धारी शिव द्वारा दक्ष यज्ञ में वेदी पर कपाल का क्षेपण, सदस्यों द्वारा कपाल के बहि: क्षेपण पर नए कपालों का उत्पन्न होना, ऋषियों द्वारा कपालेश्वर शिव की पूजा, दक्ष द्वारा कपाली सम्बोधन से अपमान करने पर वैवस्वत मन्वन्तर में कपाली द्वारा दक्ष यज्ञ का विध्वंस ), ७.१.१४८ ( चोर द्वारा वणिक् भार्या के कुण्डलों का हरण करके कपाल में धारण करने का वृत्तान्त ), ७.४.१७.२८ ( कपालिनी देवी की द्वारका के पश्चिम द्वार पर स्थिति ), महाभारत शान्ति ३२०.३३( कपाल में बीज का तापन करने पर बीज के अङ्कुरित न होने का उल्लेख ), अनुशासन १४.९३(४५.७७)(नष्ट आपः को देवों द्वारा सात कपालों द्वारा प्रकट करने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ३.८.४९( कपालहेतु : सुतल का सहस्रबाहु राजा, विष्णु द्वारा सुदर्शन चक्र से बाहुओं का कर्तन ), ३.३४.७४ ( कपाल वत्सर में अपत्यहीना भक्ता पुण्यवती द्वारा ब्रह्मा को शाप से ब्रह्मा की सृष्टि का क्षय, ब्रह्मा की पुण्यवती के शाप से निवृत्ति हेतु पुण्य नारायण का अवतार ), कथासरित् १.२.१५ (शिव द्वारा हाथ में कपाल रूपी जगत का धारण, अण्डकपाल द्वय रोदसी / द्यावापृथिवी के प्रतीक ), ५.२.१०२ ( गोविन्दस्वामी के पुत्र विजयदत्त का चिता के कपाल से वसा भक्षण कर कपालस्फोट नामक राक्षस बनना ) ; द्र. कर्पर । kapaala
कपालकेतु स्कन्द ४.२.८२.४८ ( राक्षस, कङ्कालकेतु - पिता, पुत्र द्वारा कन्या हरण का वृत्तान्त ), ५.२.४६.४५ ( कपालकेतु - पुत्र कङ्कालकेतु द्वारा मत्स्यगन्धिनी कन्या के हरण आदि का वृत्तान्त ) ।
कपालगौतम ब्रह्म १.५६.८ ( कपालगौतम ऋषि के बाल पुत्र का मरण, श्वेत राजा द्वारा पुन: संजीवन का उद्योग ) ।
कपालमालाभरण स्कन्द ३.१.८.५४ ( कपालमालाभरण यति द्वारा गोविन्दस्वामी को ज्येष्ठ पुत्र से वियोग होने का पूर्वकथन ) । कपालस्फोट पद्म ५.३७.६४ ( राम के अश्वमेध में आरण्यक मुनि की ब्रह्मस्फोट से मृत्यु व सायुज्य मुक्ति की प्राप्ति ), स्कन्द ३.१.८.८२ ( गोविन्दस्वामी के पुत्र विजयदत्त द्वारा कपाल वसा के भक्षण से कपालस्फोट नामक वेताल बनना, पूर्व जन्म में सुदर्शन विद्याधर ), ३.१.९.७६ ( चक्र तीर्थ के समीप वेताल तीर्थ में स्नान से कपालस्फोट की वेतालत्व से मुक्ति ), ७.१.१४८.४०(चोर के कपाल का स्फोटन करने पर हिरण्यप्राप्ति की कथा), कथासरित् ५.२.१०८ ( गोविन्दस्वामी के पुत्र विजयदत्त का कपालस्फोट राक्षस बनना ), ५.२.१९७ ( कपालस्फोट द्वारा विद्युत्शिखा के पति स्तम्भजिह्व राक्षस का वध ), ५.२.२४३ ( अशोकदत्त द्वारा कपालस्फोट राक्षसराज के कमल सरोवर से स्वर्ण कमलों का ग्रहण, कपालस्फोट द्वारा भ्राता अशोकदत्त का अभिज्ञान, शाप से मुक्ति ) । कपालहस्ता स्कन्द ४.१.४५.३७ ( ६४ योगिनियों में से एक ) ।
कपालाभरण स्कन्द ३.१.११.७ ( राक्षस, त्रिवक्र राक्षस - पत्नी सुशीला व शुचि ब्राह्मण के समागम से उत्पत्ति, इन्द्र की अमरावती पुरी पर आक्रमण, इन्द्र द्वारा कपालाभरण का वध )।
कपाली गरुड २.२.७४(दीपहारक के कपाली बनने का उल्लेख), पद्म १.४०.८४ ( सुरभि व ब्रह्मा - पुत्र, एकादश रुद्र नाम ), ब्रह्माण्ड ३.४.१९.७७ ( गीति रथेन्द्र चक्र के षष्ठम पर्व में स्थित आठ भैरवों में से एक ), ३.४.४०.५९ ( भैरव द्वारा ब्रह्मा के पञ्चम मुख के छेदन पर कपाल का नखलग्न होना, काञ्ची पुरी में श्रीदेवी की कृपा से प्रकट काशी में स्नान से कपाल से मुक्त होना ), मत्स्य १५३.५० ( एकादश रुद्रों में से एक, तारक - सेनानी गज से युद्ध, गज के चर्म का वस्त्र बनाना ), वामन ६.८७( विष्णु द्वारा सृष्ट चार वर्णों में चतुर्थ ; धनद? के कपाली होने का कथन ), स्कन्द ४.२.६६.१३ ( कपाली भैरव का संक्षिप्त माहात्म्य ), ४.२.६९.११२ ( कपालीश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.१.२ ( ब्रह्मा के पञ्चम शिर छेदन के कारण शिव का नाम ), ६.१०९.१६ ( करवीर तीर्थ में शिवलिङ्ग का नाम ), ६.१८२ ( ब्रह्मा के यज्ञ में कपाली का आगमन, कपाली के कपाल का याज्ञिकों द्वारा बहि: क्षेपण, कपालेश्वर लिङ्ग की स्थापना की कथा ), ७.१.८९ ( कपाली रुद्र का माहात्म्य ) । kapaali
कपि गर्ग ६.१५.१ ( कपिटङ्क तीर्थ का माहात्म्य : बलराम द्वारा द्विविद वानर के वध का स्थान ), पद्म ५.६७.४१(मोहना - पति ), ६.१४२.९ ( राम द्वारा स्थापित कपीश्वरादित्य तीर्थ का माहात्म्य ), ब्रह्माण्ड १.२.३२.१०९ ( ३३ मन्त्रकर्त्ता आङ्गिरस ऋषियों में से एक ), २.३.७.७४ ( अज व शण्ड पिशाचद्वय के पिता का नाम ), २.३.६६.८६ ( तप से ऋषिता प्राप्त करने वाले क्षत्रोपेत द्विजों में से एक ), ३.४.१.८८ ( १२वें मन्वन्तर के सुकर्मा नामक देवों के गण में से एक ), मत्स्य ९.१५ ( चतुर्थ तामस मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), ९.२१ ( पञ्चम रैवत मनु के १० पुत्रों में से एक ), १९५.३३ ( भार्गव वंशी एक ऋषि ), वामन ६३.७५( विश्वकर्मा द्वारा स्वपुत्री चित्राङ्गदा को उसके पति सुरथ को प्रदान न करने पर ऋषि ऋतुध्वज द्वारा विश्वकर्मा को शाखामृग बनने का शाप ), ६४.२( कपि रूपी विश्वकर्मा द्वारा कन्दर दैत्य की कन्या देववती को आश्रम में छिपाना ), ६४.२६( कपि द्वारा ऋतध्वज - पुत्र को वट वृक्ष से बांधने का वृत्तान्त ), ६५.९७( शकुनि द्वारा कपि के वध को उद्धत होना, कपि द्वारा जाबालि की जटाओं में बद्ध शाखाओं को खोलना, ऋतध्वज की कृपा से कपि योनि से मुक्ति का उपाय जानना, घृताची से पुत्र उत्पन्न करने पर कपि की मुक्ति ), वायु ९१.११५ ( तप से ऋषिता प्राप्त करने वाले क्षत्रोपेत द्विजों में से एक ), ९९.१६३ ( उभक्षय व विशाला - पुत्र, भरत वंश ), विष्णु ४.१९.२५ ( दुरुक्षय - पुत्र, भरत वंश, जन्म के पश्चात् द्विज बनना ), विष्णुधर्मोत्तर १.२५२.१२( प्रसिद्ध वानरों के देवतांशों का कथन ),शिव २.१.३.४१( शीलनिधि - कन्या श्रीमती से विवाह हेतु नारद द्वारा वानर मुख प्राप्ति का वृत्तान्त ), स्कन्द २.४.२१.१५ ( कपिद्वय द्वारा जालन्धर - पत्नी वृन्दा को जालन्धर की मृत्यु का मिथ्या समाचार देना, वृन्दा द्वारा कपियों को राक्षस होकर राम - भार्या सीता के हरण करने का शाप ), ३.१.३९ ( कपि तीर्थ का माहात्म्य : राम द्वारा निर्माण, विश्वामित्र - रम्भा तथा श्वेत - घृताची की कथा ), ५.३.८४.१६ ( कपि तीर्थ का माहात्म्य : हनुमान की राक्षसों की हत्या के पाप से निवृत्ति ), योगवासिष्ठ ६.२.४४.२१( राग द्वेष का क्षोभकारक कपियों के रूप में उल्लेख ), महाभारत कर्ण ८७.९५( अर्जुन के रथ के ध्वज के कपि द्वारा कर्ण के रथ ध्वज पर स्थित हस्ति कक्षा/सांकल पर आक्रमण का कथन ), शान्ति ३४२.८९(२४) ( कपि के वराह, श्रेष्ठ व वृषा के धर्म अर्थों से वृषाकपि नाम की निरुक्ति ), लक्ष्मीनारायण २.१०६.६ ( कपि शब्द की निरुक्ति : कं - सुखं पिबामि ), ३.२११ ( कपिक्षय नामक वानरभक्षी चाण्डाल का वानर रूप धारी देव के उपदेश से मोक्ष प्राप्त करना ), कथासरित् १२.२.१४५ ( हंसी द्वारा कपि की आंख में चोंच मारकर अपने हंस पति को जाल से मुक्त कराना ) ; द्र. कीर, मर्कट,वानर, वृषाकपि । kapi
कपिञ्जल देवीभागवत ६.२.२४ ( विश्वरूप के वेदपाठी व सोमपायी मुख से कपिञ्जल की उत्पत्ति ), पद्म २.१०१ ( कुञ्जल - पुत्र, पिता से स्त्री के अश्रुओं से कमलों की उत्पत्ति के आश्चर्य का वर्णन ), २.११८+ ( कुञ्जल द्वारा पुत्र कपिञ्जल को कामोदा नामक कन्या के अश्रुओं से उत्पन्न कमलों का रहस्य व विहुण्ड दैत्य द्वारा कमलों की प्राप्ति के उद्योग का वर्णन ), भागवत ६.९.५ ( विश्वरूप के वेदपाठी व सोमपायी मुख से कपिञ्जल की उत्पत्ति ), वराह ८०.१० ( मेरु के पश्चिम में कपिञ्जल व नाग पर्वतों के बीच रमणीक स्थल का वर्णन ), वायु ३९.५२ ( हेमकक्ष पर्वत पर अपत्तन नामक गन्धर्वों के अधिपति कपिञ्जल के वास का उल्लेख ), ७०.८८ ( कपिञ्जली रूप धारी घृताची द्वारा वसिष्ठ से इन्द्रप्रतिम /कुशीति पुत्र प्राप्ति ), स्कन्द १.१.१८.५ ( बलि द्वारा स्वर्ग पर आक्रमण करने पर पाशी/वरुण का कपिञ्जल रूप धारण करके स्वर्ग से पलायन ), ६.१४८.१३ ( व्यास व वटिका / पिङ्गला - पुत्र, शुक के वनगमन के पश्चात् माता द्वारा प्राप्त द्वितीय पुत्र ), लक्ष्मीनारायण १.५०४.७५ ( शुक के वनगमन के पश्चात् व्यास - पत्नी चेटिका द्वारा प्राप्त द्वितीय पुत्र, भरद्वाजी - पति, भारद्वाज - पिता ), कथासरित् ८.७.४८ ( सूर्यप्रभ - सेनानी भास का पूर्व जन्मों में कालनेमि, हिरण्यकशिपु व कपिञ्जल बनना ), १०.६.४७ ( शश व कपिञ्जल की कथा : शश द्वारा कपिञ्जल के नीड पर अधिकार, न्यायाधीश बिडाल द्वारा दोनों का भक्षण ), १८.५.१०८ ( मूर्ख ब्राह्मण अग्निशर्मा द्वारा पत्नी के गृह को प्रस्थान करने पर कपिञ्जल का दक्षिण व वाम होना, ब्राह्मण का कपिञ्जल द्वारा दर्शित अपशकुन को शकुन समझना ) । kapinjala
कपित्थ अग्नि ३४१.१४ ( नर्तन आदि में असंयुत हस्त के २४ प्रकारों में से एक ? ), ब्रह्माण्ड २.३.७.३६ ( कपित्थक : कद्रू के प्रधान नाग पुत्रों में से एक ), भविष्य १.५७.१७( मरुतों हेतु कपित्थ बलि का उल्लेख ), मत्स्य ९६.५(सर्वफलत्याग व्रत विधान में कालधौत / सुवर्णमय १६ फलों में से एक )। kapittha
कपिल अग्नि ३८२.३(कपिल के मत से परम श्रेय – भोगों में असक्ति, आत्मावलोकन - भोगेष्वशक्तिः सततं तथैवात्मावलोकनं । श्रेयः परं मनुष्याणां कपिलोद्गीतमेव हि ।। ), कूर्म १.४०.२३ ( कुश द्वीप के स्वामी ज्योतिष्मान् के सात पुत्रों में से एक ; उसी नाम का एक वर्ष - उद्भेदो वेणुमांश्चैवाश्वरथो लम्बनो धृतिः । षष्ठः प्रभाकारश्चापि सप्तमः कपिलः स्मृतः । ), २.११.१२९ ( कपिल द्वारा जैगीषव्य व पञ्चशिख मुनियों को ईश्वरीय ज्ञान दान का उल्लेख - जैगीषव्याय कपिलस्तथा पञ्चशिखाय च । ), गणेश १.९२.१७ ( गन्धर्वों, किन्नरों आदि द्वारा कपिल नाम से गणेश की पूजा ), २.८५.३३ ( कपिल गणेश से अज - अवि की रक्षा की प्रार्थना - कपिलोऽजाविकं पातु गवाश्वं विकटोऽवतु ), गरुड ३.१९.४९( हव्यवाह - पुत्री द्वारा कपिल तीर्थ में कृष्ण की पति रूप में प्राप्ति हेतु तप व श्रीनिवास से वर प्राप्ति ), ३.२९.६६(पुष्पादि छेदन काल में कपिल के ध्यान का निर्देश - पुष्पादीनां छेदने चैव काले सम्यक् स्मरेदेत्कपिलाख्यं हरिं च ।), गर्ग ५.१५.२६ ( सिद्धि का कपिल की शक्ति के रूप में उल्लेख - कृष्णस्तु साक्षात्कपिलो महाप्रभुः सिद्धिस्त्वमेवासि च सिद्धसेविता । ), ५.२५.३ ( कपिल ब्राह्मण द्वारा कृष्ण की वराह रूप मूर्ति की प्राप्ति व इन्द्र को मूर्ति दान करना ), १०.२६.३२ ( उग्रसेन के यज्ञीय अश्व के रक्षक अनिरुद्ध का कपिलाश्रम में गमन का उल्लेख - स्नात्वा च तत्रैव यदुप्रवीरो भागीरथीसागरसंगमे च ॥ विलोक्य सिद्धं कपिलं मुनीद्रं ससेनया सोऽपि नमश्चकार ॥ ), १०.३४.४६ ( बल्लव - पुत्र कुनन्दन द्वारा अनिरुद्ध को मूर्च्छित करने पर कपिल द्वारा तपोबल से अनिरुद्ध को चेतना युक्त करना - अथ वै मूर्च्छितं दृष्ट्वानिरुद्धं कपिलो मुनिः ॥…चकार तं तु चैतन्यं हस्तेन तपसा मुनिः ॥ ), देवीभागवत ८.३.१३ ( कर्दम व देवहूति - पुत्र, सांख्याचार्य कपिल की महिमा का कथन ), ९.१.१०४( धृति - पति), नारद १.८.१०३ ( सगर -पुत्रों द्वारा कपिल के ताडन पर सगर - पुत्रों का दग्ध होना ), २.५२.१५ ( सिद्धों में कपिल की श्रेष्ठता का उल्लेख - सेनानीनां यथा स्कंदः सिद्धानां कपिलो यथा ।।), २.६५.४०(कपिल महायक्ष की पत्नी उलूखलमेखला का कथन - विघ्नं करोति पापानां सुकृतं च प्रयच्छति ।। पत्नी तस्य महाभागा नाम्नोलूखलमेखला ।।), पद्म १.४०.५१ ( सांख्याचार्य, नारायण - अवतार कपिल द्वारा ब्रह्मा के तीन पुत्रों भू, भुव: व सुव: को अक्षर ब्रह्म की आराधना का निर्देश - यदेष कपिलो नाम ब्रह्मनारायणस्तथा। वदतो भवतस्त्वं तु तत्कुरुष्व महामते॥), ६.३०.६४ ( कपिल विप्र द्वारा दीप व्रत के प्रभाव से मोक्ष प्राप्ति, मूषक व मार्जार द्वारा दीप प्रबोधन का प्रसंग ), ६.१२०.८( कपिल से सम्बन्धित शालग्राम शिला के लक्षणों का कथन ), ६.१३३.१२ ( काम्पिल्य क्षेत्र में कापिल तीर्थ की स्थिति - कंपिले कापिलं तीर्थं मुकुटे कर्कोटकं तथा॥ ), ६.२१६.४६ ( बदरिकाश्रम तीर्थ में महिष का कपिल ऋषि से मिलन, महिष द्वारा पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन व दिव्य देह धारण करके कपिल की स्तुति - भोभो विष्णुकलाभूत सिद्धानां कपिलेश्वर। किं नामेदं महातीर्थं नताय कथयस्व मे ॥ ), ब्रह्म १.६.५५ ( कपिल द्वारा सगर के चार पुत्रों के अतिरिक्त अन्य षष्टि सहस्र पुत्रों को भस्म करना ), २.८.५० ( भगीरथ द्वारा सगर -पुत्रों के कल्याणार्थ कपिल मुनि से परामर्श, कपिल द्वारा गङ्गा अवतारण का परामर्श - स मुनिस्तु चिरं ध्यात्वा तपसाऽऽराध्य शंकरम्। जटाजलेन स्वपितॄनाप्लाव्य नृपसत्तम।।), २.७१.४ ( ऋषियों द्वारा वेन के हनन के पश्चात् भावी कर्त्तव्य के विषय में कपिल से पृच्छा, कपिल द्वारा वेन की ऊरु के मन्थन का परामर्श - ततोऽब्रवीन्मुनिर्ध्यात्वा कपिलस्त्वागतान्मुनीन्।। वेनस्योरुर्विमथ्योऽभूत्ततः कश्चिद्भविष्यति।। ), २.७१.२६ ( पृथु द्वारा कपिल मुनि के समीप गौ रूपा पृथ्वी का दोहन ), ब्रह्मवैवर्त्त २.१.१०८ ( कपिल - पत्नी धृति की संक्षिप्त महिमा - धृतिः कपिलपत्नी च सर्वैः सर्वत्र पूजिता ।। सर्वे लोका अधीरास्स्युर्जगत्सु च यया विना।। ), ब्रह्माण्ड १.२.१९.५६(मन्दर पर्वत के कपिल वर्ण का उल्लेख ), २.३.७.१४६ ( कपिल यक्ष द्वारा केशिनी पत्नी से कापिलेय दैत्य राक्षसों को उत्पन्न करना - कपिलेन च यक्षेण केशिन्यां ह्यपरे जनाः । उत्पादिता बलावता उदीर्णा यक्षराक्षसाः ॥ ), २.३.७.२३३ ( प्रधान हरियों / वानरों में से एक ), २.३.७.३३५ ( रथन्तर साम के अन्तर्गत कपिल व पुण्डरीक हस्तियों के सुप्रतीक व प्रमर्दन पुत्रों का उल्लेख - कपिलः पुण्डरीकश्च सुनामानौ रथन्तरात् । जातौ नाम्ना श्रुतौ ताभ्यां सुप्रतीकप्रमर्दनौ ॥ ), २.३.५२.१७ ( देवों का सगर - पुत्रों से त्रस्त होकर कपिल की शरण में जाना ), २.३.५३.१७ ( कपिल द्वारा सगर - पुत्रों को भस्म करने का वृत्तान्त ), २.३.७१.१८६ ( वसुदेव व सुगन्धी - पुत्र, पुण्ड्र - भ्राता, वृष्णि वंश, तप हेतु वन गमन ), भागवत १.९.१९ ( भगवान् कृष्ण का प्रभाव जानने वालों में से एक ), २.७.३ ( देवहूति के गर्भ से ९ बहनों के साथ विष्णु - अवतार कपिल का जन्म लेना ), ३.२४ ( कपिल का कर्दम व देवहूति - पुत्र के रूप में जन्म लेना, कर्दम द्वारा कपिल की स्तुति, कपिल द्वारा कर्दम को तप का निर्देश ), ३.२५ ( कपिल द्वारा माता को भक्ति योग का उपदेश ), ३.२६ ( कपिल द्वारा माता को सांख्य योग का उपदेश ), ३.२७ ( कपिल द्वारा प्रकृति - पुरुष के विवेक से मोक्ष प्राप्ति का वर्णन ), ३.२८ ( कपिल द्वारा अष्टाङ्ग योग विधि का वर्णन ), ३.२९ ( देवहूति द्वारा कपिल की प्रशंसा, कपिल द्वारा भक्ति का मर्म व काल की महिमा का वर्णन ), ३.३० ( कपिल द्वारा देहगेह में आसक्त पुरुषों की अधोगति का वर्णन ), ३.३१ ( कपिल द्वारा मनुष्य योनि को प्राप्त हुए जीव द्वारा भुक्त गर्भ यातना व परवर्ती कष्टों का वर्णन ), ३.३२ ( कपिल द्वारा धूममार्ग व अर्चिमार्ग से जाने वालों की गति व भक्ति योग की उत्कृष्टता का वर्णन ), ३.३३ ( देवहूति द्वारा कपिल की स्तुति, देवहूति को मोक्षपद की प्राप्ति ), ४.१८.१९ ( सिद्धों द्वारा गौ रूपा पृथिवी के दोहन में कपिल का वत्स बनना ), ५.१६.२६ ( मेरु के परित: स्थित २० पर्वतों में से एक पर्वत का नाम ), ५.२०.१५ ( कुश द्वीप के ७ सीमा पर्वतों में से एक ), ६.३.२१( भागवत धर्म को जानने वाले १२ जनों में से एक), ६.८.१६ ( नारायण कवच में कपिल से कर्मबन्धनों से रक्षा की प्रार्थना - दत्तस्त्वयोगादथ योगनाथः पायाद्गुणेशः कपिलः कर्मबन्धात् ॥ ), ९.८.१० ( कपिल द्वारा सगर - पुत्रों को भस्म करने का वृत्तान्त ), मत्स्य ३.२९ ( कपिल - प्रोक्त सांख्य का वर्णन - एवं षड्विंशकं प्रोक्तं शरीर इह मानवे।। सांख्यं संख्यात्मकत्वाच्च कपिलादिभिरुच्यते। ), ६.४१ ( कद्रू के २६ प्रधान सर्प पुत्रों में से एक ), ४६.२१ ( वसुदेव व सुतनु/रथराजी? - पुत्र ), ५०.३ ( भद्राश्व के पांच पुत्रों में से एक, पाञ्चाल संज्ञा, पूरु वंश ), १२२.६८ ( ककुद्मी पर्वत के वर्ष का नाम ), १६३.८९ ( हिरण्यकशिपु के कारण महीपुत्र कपिल का कम्पित होना ), १७१.१० ( ब्रह्मा द्वारा भू, भुव: व स्व: पुत्रों को भावी कर्त्तव्य के विषय में कपिल मुनि से निर्देश लेने का आदेश ; पुत्रों का मुक्त होना ), वराह ४.१३+ ( कपिल व जैगीषव्य मुनियों का अश्वशिरा राजा के पास आगमन, कपिल द्वारा विष्णु रूप का दर्शन कराना, राजा से हरि आराधना में कर्म या ज्ञान की श्रेष्ठता विषयक संवाद, कपिल द्वारा लुब्धक व विप्र के दृष्टान्त का कथन ), १६३.२५ ( कपिल मुनि द्वारा मन से निर्मित वाराही प्रतिमा का क्रम से इन्द्र, रावण, राम व शत्रुघ्न को हस्तान्तरण, अन्त में मथुरा में कपिलवराह नाम से स्थापित होना ), वामन ३४.४४ ( कुरुक्षेत्र के अन्तर्वर्ती पुष्कर तीर्थ में कपिल नामक महायक्ष का वास, उदूखल मेखला - पति ), ९०.३५ ( रसातल में विष्णु के नामों में से एक ), ९०.३९ ( जन लोक में विष्णु का कपिल नाम - महर्ल्लोके तथाऽगस्त्यं कपिलं च जने स्थितम्।। ), वायु २३.१४१ ( आठवें द्वापर में मुक्ति पाने वाले योगियों में से एक ), ३३.२४ ( कुशद्वीप के ७ पर्वतों में से एक ), ३६.२७ ( मेरु की पश्चिम दिशा में स्थित पर्वतों में से एक ), ३६.३१ ( मेरु की उत्तर दिशा में स्थित पर्वतों में से एक ), ४२.५० ( अम्बर नदी द्वारा सिंचित पर्वतों में से एक ), ४९.५३ ( कुश द्वीप के ७ वर्ष पर्वतों में से एक ), ५०.२९ ( तृतीय अधोतल पाताल में कपिल के मन्दिर की स्थिति ), ६९.७३ ( कण्डू / कद्रू के प्रधान नाग पुत्रों में से एक ), ६९.२१९ ( रथन्तर साम के अन्तर्गत एक हस्ती - कपिलः पुण्डरीकश्च सुमनाभो रथान्तरः। जातौ नाम्ना सुतौ ताभ्यां सुप्रतिष्ठप्रमर्द्दनौ ॥ ), ८८.१४७ ( कपिल द्वारा सगर - पुत्रों को दग्ध करना ), ९६.१८३ ( वसुदेव व वनराजी - पुत्र, वृष्णि वंश ), विष्णु १.२१.४ ( दनु व कश्यप के पुत्रों में से एक ), १.२२.८ ( ब्रह्मा द्वारा कपिल मुनि को मुनिजनों का स्वामी नियुक्त करना - हिमालयं स्थावराणां मुनीनां कपिलं मुनिम् । ), २.१४.७ ( सौवीरराज का श्रेय जानने के लिए कपिल मुनि के पास गमन, मार्ग में शिबिका वाहक जड भरत से श्रेय व परमार्थ विषयक संवाद ), विष्णुधर्मोत्तर १.१८.१३ ( सगर - पुत्रों को भस्म करने का वृत्तान्त ), १.५६.२२ ( सिद्धों में कपिल मुनि : नारायण की विभूति - गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनिः।। ), ३.११८.८( सांख्य ज्ञान परिज्ञान हेतु कपिल की पूजा का निर्देश - विद्याकामोऽथ वाल्मीकिं व्यासं वाप्यथ पूजयेत्।। सांख्यज्ञानपरिज्ञानहेतवे कपिलं तथा।। ), ३.१२०.८( २७ नक्षत्रों में पूजनीय देवताओं में से एक ), शिव ३.४.३३ ( अष्टम द्वापर में दधिवाहन नामक शिव अवतार के ४ पुत्रों में से एक ), ५.२२.४७ ( देह में कपिल? के प्रमाण / मात्रा का उल्लेख - पित्तस्य कुडवं ज्ञेयं कफस्याथाढकं स्मृतम् । वसायाश्च पलं विंशत्तदर्धं कपिलस्य च ।। ), स्कन्द १.२.६.५५ ( कलाप ग्राम वासी ब्राह्मणों को महीसागर सङ्गम पर स्थापित करते हुए नारद के समक्ष कपिल मुनि का आगमन, कपिल द्वारा महीसागर सङ्गम पर कपिल तीर्थ की स्थापना ), १.२.१३.१६२ ( शतरुद्रिय प्रसंग में कपिल द्वारा बालुका लिङ्ग की वरद नाम से पूजा - कपिलो वालुकालिंगं वरदं च जपन्हरम्॥ ), १.२.४५+ ( बहूदक तीर्थ में स्थिति कपिलेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : नन्दभद्र वणिक् द्वारा लिङ्ग की आराधना, कुष्ठी बालक से उपदेश प्राप्ति आदि ), २.४.२टीका ( गौतम - शिष्य कपिल द्वारा गुरु सेवा से अमरता प्राप्ति की कथा ), ४.२.९७.७७ ( कपिलेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य - तत्र सिद्धः पाशुपतः कपिलर्षिर्महातपाः । तत्रास्ति हि गुहा रम्या कपिलेश्वर संनिधौ ।।), ५.२.५९ ( कपिल व जैगीषव्य मुनियों का राजा अश्वशिरा से मिलन, कपिल का सिद्धि के प्रभाव से विष्णु आदि रूप धारण करना ), ५.२.८३ ( कपिल द्वारा शिव से अवध्यता वर की प्राप्ति, बिल्व नृप से विवाद, बिल्व नृप द्वारा बिल्वेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य - दानं प्रधानं तीर्थं तु बिल्वेनोक्तं पुनःपुनः । ब्रह्म श्रेष्ठं तपः श्रेष्ठमित्युक्तं कपिलेन तु।। ), ५.३.१३.४२ ( १४ कल्पों में प्रथम कापिल कल्प का उल्लेख - कापिलं प्रथमं विद्धि प्राजापत्यं द्वितीयकम् । ब्राह्मं सौम्यं च सावित्रं बार्हस्पत्यं प्रभासकम् ॥ ), ५.३.८८.१ ( रेवा तट पर स्थित कापिल तीर्थ के माहात्म्य का कथन ), ५.३.१७५ ( कपिलेश्वर तीर्थ का माहात्म्य: कपिल द्वारा सगर - पुत्रों को भस्म करने के पाप से निवृत्ति के लिए तप का स्थान ), ५.३.२३१.११ ( रेवा - सागर सङ्गम पर ९ कपिलेश्वरों की स्थिति का उल्लेख - दशादित्यभवान्यत्र नवैव कपिलेश्वराः ॥ ), ७.१.३३.५० ( तपोरत ४ ऋषियों द्वारा सरस्वती का आह्वान करने पर सरस्वती द्वारा कपिला धारा के रूप में कपिल ऋषि को तृप्त करना - प्रमादान्मदिरापानदोषेणोपहतात्मनाम् ॥ तद्व्यपोहाय कपिला द्विजानां वहते नदी ॥ ), ७.१.५३ ( कपिलेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य - सप्तकृत्वो महादेवं सोमेशं कपिलेश्वरम्॥ यः पश्येत्प्रयतो भूत्वा स गोदानफलं लभेत् ॥ ), ७.१.३४३ ( कपिलेश्वर लिङ्ग व धारा का माहात्म्य : कपिला षष्ठी व्रत, सूर्य पूजा का कथन - प्रौष्ठपद्यसिते पक्षे षष्ठ्यामंगारको यदि ॥ व्यतीपातश्च रोहिण्यां सा षष्ठी कपिला स्मृता ॥), ७.४.१७.२९ ( द्वारका के पश्चिम द्वार पर कपिल क्षेत्रपाल की स्थिति का उल्लेख ), हरिवंश ३.१४.११( ब्रह्मा द्वारा पुत्रों भू आदि को कपिल व नारायण से उपदेश प्राप्त करने का निर्देश, परमेश्वर - द्वय द्वारा १८ पाशों वाले ब्रह्म से परे का स्मरण करने का निर्देश - यत् सत्यमक्षरं ब्रह्म ह्यष्टादशनिधं स्मृतम् । यत् सत्यममृतं चैव परं तत् समनुस्मर ।। ), महाभारत शान्ति ३४०.७२( निवृत्तिपरक ७ ऋषियों में से एक - सनः सनत्सुजातश्च सनकः ससनन्दनः। सनत्कुमारः कपिलः सप्तमश्च सनातनः।।), ३४२.९५/३५२.३०( कपिल का शब्दार्थ : विद्या सहायक, आदित्य में स्थित - विद्यासहायवन्तं मामादित्यस्थं सनातनम्। कपिलं प्राहुराचार्याः साङ्ख्या निश्चितनिश्चयाः।। ), वा.रामायण १.४० ( कपिल द्वारा सगर - पुत्रों को भस्म करना ), लक्ष्मीनारायण १.३४७.६८ ( कपिल द्वारा मन से निर्मित वराह कृष्ण की मूर्ति के मान्धाता, इन्द्र आदि को प्राप्त होने व अन्त में मथुरा में प्रतिष्ठित होने की कथा ), १.५२५ ( कपिल का अश्वशिरा नृप से कर्म या ज्ञान से मोक्ष विषयक संवाद, विप्र - लुब्धक संवाद के दृष्टान्त का कथन, कपिल व जैगीषव्य द्वारा अश्वशिरा को विभूतियों का प्रदर्शन, कपिल का विष्णु व जैगीषव्य का गरुड बनना आदि ), २.८०.३ ( कपिल -शिष्य राजा बलेशवर्मा का वृत्तान्त ), २.१६२.६६ ( शतोढु विप्र के मूक पुत्र वोढु द्वारा तप करने पर कपिल रूप धारी विष्णु द्वारा वोढु को वाणी प्रदान करना - साधुवेषः पिङ्गजटः स्कन्धे धृतोपवीतकः । करे कमण्डलुं बिभ्रन् कुक्षौ चाधारपावटीम् ।। ), कथासरित् ९.२.२४८ ( चार शिव गणों द्वारा कपिल जट मुनि की कन्या चापलेखा से बलात्कार की चेष्टा पर मुनि द्वारा शाप ), १६.१.९९ ( पाताल में एक कपिल ऋषि, भूतल पर अनेक कपिल वानर - बहुभूधरनागेन्द्रमाश्रितं कपिलोत्करैः । अपूर्वमिव पातालमूर्ध्ववर्ति वितामसम् ।।), १६.२.१०२ ( कपिल शर्मा ब्राह्मण के घर में अग्नि का वास - आस्ते कपिलशर्माख्यो नगरेऽस्मिन्द्विजोत्तमः । तस्याग्न्यगारे प्रत्यक्षः साकारः सन्वसाम्यहम् ।। )। kapila