कण्व अग्नि १८.२६ ( कण्व/कण्डु/कण्ठ - पुत्री मारिषा से दक्ष का जन्म ), कूर्म १.२३.१८ ( कण्व द्वारा राजा दुर्जय को उर्वशी रमण पाप के प्रायश्चित्त का कथन ), पद्म ५.१०.३६ ( राम के अश्वमेध यज्ञ में कण्व का द्वारप? बनना ), ६.१५२.३ ( कण्व - पुत्री बालावती द्वारा बदर पाचन की कथा ), ब्रह्म २.१५ ( क्षुधा - पीडित कण्व की गौतम से स्पर्धा, कण्व द्वारा गौतमी गङ्गा की स्तुति व गङ्गा द्वारा क्षुधा तृप्ति का कथन ), २.७८.३ ( कण्व - पुत्र बाह्लीक के यज्ञ में अग्नि के उपशान्त होने की कथा ), भविष्य ३.४.२१ ( कश्यप - पुत्र, आर्यावती - पति, सरस्वती से वर प्राप्ति, पुत्रों व प्रजाओं के नाम, म्लेच्छों को शूद्र बनाना ), भागवत ९.२०.६ ( अप्रतिरथ - पुत्र, मेधातिथि - पिता, प्रस्कण्व आदि के पितामह, पूरु वंश ), ९.२०.१३ ( कण्व की पालिता कन्या शकुन्तला के दुष्यन्त राजा से विवाह की कथा ), मत्स्य ४९.४६ ( अजमीढ व केशिनी - पुत्र, मेधातिथि - पिता ), वायु ५९.१०० ( ३३ मन्त्रकर्त्ता अङ्गिरस ऋषियों में से एक ), ६१.२४ ( याज्ञवल्क्य के १५ वाजी संज्ञक शिष्यों में से एक ), स्कन्द २.७.१९.७३ ( प्राण द्वारा हल से भूमि कर्षण पर समाधिस्थ कण्व को कष्ट की प्राप्ति, कण्व द्वारा प्राण को अप्रतिष्ठा का शाप, प्राण द्वारा कण्व को गुरुघाती होने का शाप ), ५.२.६२.१६ ( राजा पद्म द्वारा कण्व की पालिता कन्या से गान्धर्व विवाह पर कण्व द्वारा कन्या व राजा को कुरूप होने का शाप ), ५.३.८५.२८( त्रिलोचन राजा के पुत्र कण्व द्वारा मृग रूपी विप्र के वध से ब्रह्महत्या की प्राप्ति, सोमनाथ तीर्थ में अग्नि प्रवेश से मुक्ति ), ७.१.३७.७ ( कण्व द्वारा राजा बृहद्रथ व इन्दुमती के पूर्वजन्म के वृत्तान्त का कथन : कङ्कण क्षेपण की कथा ), महाभारत शान्ति २९.४९(हयमेध में भरत द्वारा कण्व को सहस्र पद्म देने का उल्लेख), वा.रामायण ६.१८.२६ ( कण्डु ऋषि के पिता, कण्डु द्वारा विभीषण - शरणागति विषयक गाथा का कथन ), कथासरित् १२.२७.३३ ( कण्व की पालिता कन्या इन्दीवरप्रभा के राजा चन्द्रावलोक से विवाह की कथा ), १२.३४.३६ ( कण्व द्वारा मृगाङ्कदत्त के स्वामी - विरह से पीडित मन्त्री व्याघ्रसेन को सुन्दरसेन व मन्दारवती की कथा सुनाना ), १८.१.५ ( कण्व द्वारा नरवाहनदत्त राजा को प्रेयसी प्राप्त होने का आश्वासन देना व विक्रमादित्य की कथा सुनाना ), १८.४.९३ ( देवकुमारों भद्र व शुभ द्वारा गज व सूकर रूप धारण करके कण्व ऋषि को त्रास देने पर कण्व द्वारा गज व सूकर बनने का शाप )। Kanva
कति ब्रह्म १.८.५८( विश्वामित्र के पुत्रों में से एक, कात्यायन गोत्र प्रवर्तक ), १.११.९२( विश्वामित्र - पुत्र कति से कात्यायन नाम की प्रसिद्धि का उल्लेख )
कथक भविष्य २.१.५.८७ ( सूर्य पूजक विप्रों के ४ प्रकारों में से एक ) ।
कथा देवीभागवत ०.५ ( देवी भागवत पुराण श्रवण का विधान ), भविष्य १.९४.३४ ( सूर्य की इतिहास - पुराण श्रवण प्रियता का कथन, कथावाचक की पूजा की महिमा, कदम्ब विप्र द्वारा सूर्य का सान्निध्य प्राप्त करना ), विष्णु ३.४.२५ ( कथाजव : बाष्कल - शिष्य, वेद संहिताकार ), स्कन्द २.६.४ ( भागवत पुराण कथा श्रवण का माहात्म्य व विधि ; श्रोताओं के भेद ), ३.३.२२ ( कथा श्रवण विधि व माहात्म्य, अविधिपूर्वक कथा श्रवण के दोष, अधम ब्राह्मण विदुर की पत्नी बिन्दुला का कथा श्रवण से शिव का सान्निध्य प्राप्त करना, पिशाच योनि प्राप्त स्व - पति को कथा श्रवण के लिए बाध्य करके मुक्त करना ), हरिवंश ४.४ ( नवाह कथा श्रवण व्रत हेतु विधि - विधान, कथा में विघ्न उपस्थित करने पर दुर्गति, श्रोताओं के १४ भेद ), लक्ष्मीनारायण २.२४५.८३ ( कथा श्रवण के महत्त्व का कथन ), ४.७८ ( लक्ष्मीनारायण कथा संहिता के समापन पर श्रीकृष्ण व भगवान् व्यास का कथा मण्डप में आगमन, श्रोताओं द्वारा व्यास की पूजा आदि, कथान्त में यज्ञ कार्य का वर्णन ) । Kathaa
कदम्ब अग्नि ८१.४९ ( कदम्बकलिका - यक्षिणी सिद्धि हेतु होम द्रव्यों में से एक ), गणेश १.२९.११ ( कदम्ब प्रासाद में चिन्तामणि गणेश की मूर्ति की स्थिति आदि ), १.३४.१ ( इन्द्र द्वारा कदम्ब वृक्ष के नीचे विनायक की उपासना ),१.३४.२५ ( इन्द्र द्वारा कदम्ब के तले आराधना स्थल का चिन्तामणि पुर नाम होना ), २.७६.१४ ( विष्णु व सिन्धु के युद्ध में कदम्ब का भौम से युद्ध ), २.७६.३२ ( श्रीहरि द्वारा कदम्ब असुर पर चक्राघात करना ), गर्ग २.२० ( कृष्ण द्वारा कदम्ब पुष्पों का किरीट धारण करना ), देवीभागवत ८.५.२० ( कदम्ब वृक्ष की सुपार्श्व पर्वत पर स्थिति ), १२.१०.६६ ( सुवर्ण शाला में कदम्बवाटिका में कदम्बधारा की महिमा का कथन ), नारद १.५६.२०९ ( कदम्ब वृक्ष की शतभिषा नक्षत्र से उत्पत्ति ), पद्म ६.२८.२४( पुराण वाचक द्विज की संज्ञा? ), ६.२००.९३( आन्त्र कदम्ब का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड ३.४.३२.३७ ( कदम्ब वन वाटिका की रक्षक शिशिर ऋतु ), भविष्य १.१५५.४६ ( सूर्य द्वारा ब्रह्मा को पृष्ठशृङ्ग पर देवकदम्ब में निवास करने का निर्देश ? ), १.१९३.९ ( कदम्ब दन्तकाष्ठ की महिमा ), ४.९४.२६(स्त्री समूह की स्त्रीकदम्ब संज्ञा), भागवत ५.२.१० ( पूर्वचित्ति अप्सरा के नितम्बों की कदम्ब कुसुमों से उपमा ),५.१६.२२ ( सुपार्श्व पर्वत पर स्थित महाकदम्ब वृक्ष से पांच मधु धाराओं की उत्पत्ति ), मत्स्य ११३.४७( गन्धमादन पर्वत पर भद्रकदम्ब वृक्ष की स्थिति का उल्लेख ), लिङ्ग १.४९.२९( मन्दर गिरि के केतु रूप कदम्ब वृक्ष का उल्लेख ), वराह ७७.११ ( मन्दर गिरि पर कदम्ब वृक्ष की स्थिति, महिमा का कथन ), १४९.५३ ( द्वारका में हंस कुण्ड क्षेत्र में कदम्ब क्षेत्र व वृक्ष के माहात्म्य का वर्णन ), १६४.२८ ( अन्नकूट क्षेत्र में कदम्ब खण्ड नामक कुण्ड का संक्षिप्त माहात्म्य ), वामन १७.२ ( कदम्ब वृक्ष की कामदेव के कराग्र से उत्पत्ति ), वायु ३५.२४( मन्दर पर्वत पर स्थित केतुरूप कदम्ब वृक्ष की महिमा का कथन ), विष्णु ५.२५.४ ( वरुण - पुत्री मदिरा का कदम्ब वृक्ष में लीन होना, बलराम द्वारा मदिरा का पान ), स्कन्द २.२.४४.४ ( आषाढ आदि मासों में कदम्ब आदि पुष्पों से श्रीहरि की अर्चना का निर्देश ), ४.१.२९.४५ ( कदम्ब कुसुम प्रिया : गङ्गा के सहस्रनामों में से एक ), ४.२.८१.५० ( विन्ध्यपाद में दम - पुत्र दुर्दम का कदम्ब शिखर पर राज्य ), ७.१.१७.१० ( कदम्ब दन्त काष्ठ का महत्व ), ७.१.१७.१०(कदम्ब दन्तकाष्ठ से रोगक्षय का उल्लेख), ७.१.१७.११३ ( कदम्ब पुष्प की महिमा : ऐश्वर्य प्राप्ति ), योगवासिष्ठ ४.४९+ ( कदम्ब वृक्ष की शोभा का वर्णन, दाशूर ब्राह्मण का अग्नि के वरदान से वृक्षाग्र पर स्थित होकर तप करना , कदम्ब दाशूर नाम से प्रसिद्ध होना आदि ), ५.५३.२८ ( काया रूपी कदम्ब में दोष रूपी मञ्जरी का विकसित होना ), लक्ष्मीनारायण १.५७२.६४ ( जाबालि - पुत्र कदम्ब द्वारा फल चोरी से वानरत्व प्राप्त करना, सत्यधर्म के यज्ञ में मुख को छोड वानर का शेष शरीर हिरण्मय होना ) । Kadamba Comments on Kadamba
कदली गरुड २.४.१४०(जिह्वा में कदली देने का उल्लेख), २.३०.४९/२.४०.४९( मृतक की जिह्वा में कदली फल देने का निर्देश ), गर्ग ५.१५ ( कदली वन में उद्धव द्वारा राधा को कृष्ण का पत्र अर्पित करना ), नारद १.१२३.१३ ( कदली चर्तुदशी व्रत विधि : रम्भा की पूजा ), भविष्य ४.९२ ( भाद्रपद शुक्ल चर्तुदशी को कदली / रम्भा व्रत विधि व माहात्म्य ), मत्स्य २२.५२ ( नदी, श्राद्ध हेतु प्रशस्तता ), ९६.६ ( कालधौत / सुवर्णमय १६ फलों में से एक ), योगवासिष्ठ ३.९९.१२ ( कदलीवन में भ्रमण करने वाले चित्त की प्रकृति का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.४७५+ ( और्व - कन्या कन्दली का स्वपति दुर्वासा के शाप से भस्म होकर कदली रूप में उत्पन्न होना ), कथासरित् ६.६.१०१ ( कदलीगर्भा : विश्वामित्र ऋषि के वीर्य से उत्पत्ति, मङ्कणक द्वारा पालन, राजा दृढवर्मा की पत्नी बनना, राजा द्वारा परित्याग व पुन: ग्रहण का वृत्तान्त ) । Kadalee/ kadali
कद्रू गणेश २.९७.५ ( पूर्व वैर का स्मरण कर विनता द्वारा कद्रू का अपमान व कद्रू द्वारा शेषनाग को बदला लेने को प्रेरित करना आदि ), गर्ग २.१३.१७ ( कद्रू का वसुदेव - पत्नी रोहिणी बनना ), देवीभागवत २.१२.१० ( कद्रू- विनता - उच्चैःश्रवा की कथा ), पद्म १.४७.१६५ ( कद्रू द्वारा अमृत के भ्रम में सर्पों के मुख में विष को धारण कराना ), ब्रह्म २.३०.१३ ( अपमार्ग पर स्थित होने से कद्रू का आपगा नदी बनना, पुन: ऋषियों के शाप से काणी होना, गौतमी से सङ्गम पर पूर्ववत् होना ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.९.१८+ ( कद्रू द्वारा कश्यप से समागम करने पर अदिति द्वारा कद्रू को शाप, कद्रू का वसुदेव - पत्नी रोहिणी बनना ), ब्रह्माण्ड २.३.७.४६७ ( कद्रू की क्रोधशीला प्रकृति ), भविष्य १.३२.१० ( एकनयना कद्रू द्वारा विनता से उच्चैःश्रवा के वर्ण के सम्बन्ध में पण / शर्त, अवज्ञाकारी नाग पुत्रों को शाप ), ४.३६.६ ( वही), मत्स्य ६.३८ ( सुरसा व कद्रू से सहस्र सर्पों की उत्पत्ति, २६ प्रधान नागों के नाम ), वराह २४.५ ( दक्ष - पुत्री कद्रू द्वारा मारीच कश्यप से नागों को उत्पन्न करना, प्रधान नागों के नाम, सर्पों द्वारा प्रजा के क्षय पर ब्रह्मा द्वारा सर्पों को माता के शाप से नष्ट होने का शाप ), वायु ६९.७३ ( कद्रू का कण्डू नाम ), ६९.९४ ( कद्रू की क्रोधशीला प्रकृति ), स्कन्द ३.१.३८ ( कद्रू द्वारा विनता से छल की कथा, क्षीरसागर में स्नान से मुक्ति ), ४.१.५० ( उच्चैःश्रवा अश्व के सम्बन्ध में कद्रू द्वारा विनता से छल की कथा, सूर्य ताप से पीडित होने पर सूर्य का खखोल्क नामकरण ), ५.३.७२ ( कश्यप - भार्या कद्रू द्वारा सपत्नी विनता से उच्चैःश्रवा अश्व के वर्ण के सम्बन्ध में विवाद, सर्पों को उच्चैःश्रवा के रोमकूपों में प्रवेश का आदेश, आदेश का उल्लङ्घन करने वाले सर्पों को नष्ट होने का शाप ), ५.३.१३१ ( वही), लक्ष्मीनारायण १.४६३.५ ( कद्रू के सर्प पुत्रों के विविध वर्णों का कथन ), २.३२.४१( कद्रू द्वारा गर्भिणी के गर्भ भक्षण आदि का कथन ; कद्रू के गन्धवों‰ व अप्सराओं की जननी होने का उल्लेख ), कथासरित् ४.२.१८१ ( कद्रू द्वारा विनता को दासी बनाना, गरुड द्वारा स्वमाता विनता की मुक्ति का उद्योग ), १२.२३.९७ ( गरुड द्वारा सर्पों के भक्षण के संदर्भ में कद्रू द्वारा विनता को दासी बनाने का उल्लेख ) kadruu, kadroo, kadru
कनक पद्म १.४६.९ ( अन्धक - पुत्र, देवों द्वारा वध ), ब्रह्माण्ड २.३.६.२० ( विप्रचित्ति व सिंहिका के १४ पुत्रों में से एक ), २.३.६९.७ ( दुर्मद - पुत्र, कृतवीर्य आदि ४ पुत्र, यदु / हैहय वंश ), २.३.७१.१४१( हृदिक के १० पुत्रों में से एक ), २.३.७१.२५६ ( पुरु व बृहती - पुत्र ), २.३.७४.१९९ ( स्त्रीराष्ट्र व भोजकों का राजा ), मत्स्य ४३.१२ ( दुर्दम - पुत्र, कृतवीर्य आदि ४ पुत्रों के नाम, यदु / हैहय वंश ), वायु २४.७५ ( द्यौ व पृथ्वी रूपी कपालों से निर्मित अण्ड के उल्ब / जरायु से निर्मित पर्वत ), ३५.१० ( पर्वत, मेरु पर्वत का नाम, पर्वत के विस्तार का वर्णन ), ९४.७ ( दुर्मद - पुत्र, कृतवीर्य आदि ४ पुत्रों के नाम ), १०६.५६/२.४४.५६( कनकेश्वर : प्रपितामह द्वारा गया में शिला को स्थिर करने के लिए धारित ५ रूपों में से एक ), स्कन्द ४.२.९७.१९७ ( कनकेश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.१.३६.१० ( अन्धक - पुत्र, इन्द्र से युद्ध में मृत्यु ), ५.३.१८६.२० ( गरुड द्वारा अजर - अमरता प्राप्ति के लिए चामुण्डा की कनकेश्वरी नाम से स्तुति का वर्णन ) । Kanaka
कनककलश कथासरित् १२.५.१६५ ( इन्दुकलश राजपुत्र द्वारा राजा विनीतमति से प्राप्त खड्ग व अश्व द्वारा स्वभ्राता कनककलश से राज्य छीनना ), १२.५.३६९ ( इन्दुकलश द्वारा कनककलश से अहिच्छत्रा नगरी का राज्य छीनना ), १२.५.३८९ ( राजा विनीतमति की मृत्यु पर कनककलश द्वारा अग्नि में प्रवेश ) ।
कनककुण्डला स्कन्द ४.१.३२.१५ ( पूर्णभद्र यक्ष - पत्नी, शिव आराधना से हरिकेश पुत्र की प्राप्ति ) ।
कनकनन्दा ब्रह्माण्ड २.३.१३.११३ ( कनकनन्दी : गया में स्थित कनकनन्दी तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), स्कन्द ७.१.२६५ ( चैत्र शुक्ल तृतीया को कनकनन्दा देवी की पूजा का संक्षिप्त माहात्म्य ) ।
कनकपीठ ब्रह्माण्ड १.२.११.३१ ( क्षमा व पुलस्त्य की ५ सन्तानों में से एक ) ।
कनकपुरी कथासरित् ५.१.४२ ( राजकुमारी कनकरेखा द्वारा कनकपुरी का दर्शन करने वाले व्यक्ति से विवाह का हठ, ब्राह्मण द्वारा कनकपुरी के दर्शन का मिथ्या वार्तालाप ), ५.३.२ ( शक्तिदेव ब्राह्मण द्वारा कनकपुरी के दर्शन हेतु उद्योग का वर्णन, कनकपुरी में चन्द्रप्रभा व मृत कनकरेखा के दर्शन, प्रत्यागमन आदि ), १२.२४.३ ( कनकपुर के राजा यशोधन का उन्मादिनी कन्या के दर्शन से कामपीडित होकर शरीर त्यागना ) । kanakapuri
कनकप्रभा वराह १५२.२६ ( मथुरा क्षेत्र में वराह की चार मूर्तियों में से एक ), कथासरित् ५.१.२० ( परोपकारी नामक राजा की पत्नी, कनकरेखा - माता, पुत्री के विवाह की कथा ) ।
कनकबिन्दु ब्रह्माण्ड २.३.७.२३० ( नल वानर के पिता ) ।
कनकमञ्जरी कथासरित् १२.४.१२७ ( हंसावली राजकुमारी की सखी, हंसावली का वेश धारण कर राजा कमलाकर से विवाह, हंसावली व अशोककरी के वध का यत्न, मृत्यु ) ।
कनकरेखा कथासरित् ५.१.२२ ( राजा परोपकारी व कनकप्रभा - कन्या, कनकपुरी का दर्शन करने वाले युवक से विवाह का हठ ), ५.३.७९ ( शक्तिदेव द्वारा कनकपुरी में मृत कनकरेखा के दर्शन, विवाह का उद्योग ) ।
कनकवती कथासरित् १५.२.३३ ( काञ्चनदंष्ट्र विद्याधर की कन्या, मन्दरदेवी - सखी, नरवाहन दत्त से विवाह ) ।
कनकवर्मा कथासरित् ९.६.५३ ( कनकवर्मा वणिक् द्वारा जंगल से बालक व बालिका की प्राप्ति का वृत्तान्त ) ।
कनकवर्ष कथासरित् ९.५.२८ ( राजा कनकवर्ष के चरित्र की प्रशंसा, राजा द्वारा मदनसुन्दरी से विवाह का वृत्तान्त, वासुकि - कन्या रत्नप्रभा द्वारा सहायता, कार्तिकेय की आराधना से पुत्र प्राप्ति रूप वरदान व वियोग रूप शाप प्राप्ति, अपमृत्यु पर विजय प्राप्त कर मदनसुन्दरी व पुत्र हिरण्यवर्ष को प्राप्त करना ) ।
कनकशृङ्गा स्कन्द ५.१.४० ( अवन्तिका नगरी के ४ नामों में से एक, श्री हरि द्वारा कनकशृङ्गा पुरी का निर्माण करके ब्रह्मा व शिव को वास हेतु प्रदान करना ) ।
कनका स्कन्द १.२.४५.५४ ( नन्दभद्र वणिक् की भार्या, कनका की मृत्यु पर पति का शोक ), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१२० ( कृष्ण - पत्नी, भूषण व चूडामणि - माता ) ।
कनकाक्ष वामन ५७.८१ ( काञ्चना नदी द्वारा कुमार कार्त्तिकेय को प्रदत्त गण का नाम ), कथासरित् १०.९.२१५ ( हिरण्यपुर का राजा, रत्नप्रभा - पति, शिव आराधना से हिरण्याक्ष नामक पुत्र की प्राप्ति ) ।
कनकाङ्गदा लक्ष्मीनारायण ४.३९ ( धूर्त्त स्त्री, हरि भक्ति से कनकाङ्गदा द्वारा मोक्ष प्राप्ति का वर्णन ) ।
कनकोद्भव ब्रह्माण्ड २.३.७१.१४१ ( हृदिक के कृतवर्मा आदि १० पुत्रों में से एक , अन्धक / वृष्णि वंश ) ।
कनखल देवीभागवत ७.३८.२५ ( कनखल क्षेत्र में उग्रा देवी का वास ), पद्म ३.२०.६७ ( कनखल तीर्थ का माहात्म्य ), ५.९१ ( कनखल तीर्थ का माहात्म्य : सोमशर्मा - पत्नी सुमना द्वारा कनखल तीर्थ में माधव विष्णु की आराधना द्वारा पुत्रों की प्राप्ति ), मत्स्य १९३.६९ ( कनखल तीर्थ में गरुड द्वारा तप ; कनखल तीर्थ में योगियों से क्रीडा करने वाली योगिनी की स्थिति ), वराह १५२.४१ ( मथुरा मण्डल के अन्तर्गत कनखल तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), वायु ८२.२१ ( गया क्षेत्र में स्थित कनखल तीर्थ में श्राद्ध का महत्त्व ), १११.७ ( वही), स्कन्द ५.३.२१.५ ( गङ्गा के कनखल में पुण्या होने का उल्लेख ), ५.३.१८६ ( कनखलेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : गरुड द्वारा विष्णु वाहन बनने के लिए तप, शिव से वर, अजरता - अमरता प्राप्ति के लिए चामुण्डा की आराधना ), ७.३.२६ ( कनखल तीर्थ का माहात्म्य : सुमति राजा का सुवर्ण दान से धनद बनना ), कथासरित् १.३.४ ( कनखल तीर्थ में ऐरावत द्वारा उशीनर पर्वत को तोडकर गङ्गा का अवतरण कराना )। kanakhala
कनिष्ठ ब्रह्माण्ड ३.४.१.१०८ ( १४वें भौम मन्वन्तर में देवों का एक गण, बृहत् आदि सात सामों का कनिष्ठ देवगण से तादात्म्य ), वायु १००.११२ ( वही), विष्णु ३.२.४३ ( १४वें भौम मन्वन्तर में देवों का एक गण ), स्कन्द १.२.१३.१६४ ( बुध ग्रह द्वारा शिव के शङ्खलिङ्ग की कनिष्ठ नाम से आराधना )। kanishtha
कन्थड स्कन्द ५.१.६२.६३ ( कन्थडेश्वर तीर्थ का माहात्म्य ), ५.१.६३ ( कन्थडेश्वर तीर्थ का माहात्म्य ), ५.२.३४ ( कन्थडेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, पाण्डव ब्राह्मण द्वारा कन्या निमित्त स्थापना ) ।
कन्था वामन ९०.२८ ( कन्था तीर्थ में विष्णु का मधुसूदन नाम से वास ), स्कन्द ५.२.३४( कन्थडेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : ८४ लिङ्गों में ३४वां, पाण्डव ब्राह्मण - पुत्र कन्था को दीर्घायु प्राप्ति का वर्णन ), ५.३.२१४.४ ( तपोरत शिव के कन्था मुक्त हो जाने से कन्थेश्वर शिव की प्रसिद्धि का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.४१+ ( कन्थाधर नृपति द्वारा शिव आराधना से कालदण्ड प्राप्त करना, वसिष्ठ से चिरजीविता की प्राप्ति, विप्र पुत्र को स्व आयु का दान देकर यमलोक से लाना, यम - पुत्री हृङ्डकायिनी से विवाह, पत्नी के परामर्श पर नास्तिक बनना, सिद्धियों का राजा को त्यागना, मृत्यु पश्चात् म्लेच्छ योनि में जन्म, पुत्र रणङ्गम द्वारा पिता के उद्धार का उद्योग ), २.१४०.८०( कन्थाधर प्रासाद के लक्षण )। kanthaa
कन्दर गणेश २.१९.१ ( कूप व कन्दर दैत्यों द्वारा क्रमश: मण्डूक व बालक रूप धारण कर महोत्कट गणेश के वध का प्रयत्न, परस्पर युद्ध से मृत्यु ), ब्रह्माण्ड २.३.७.२३४ ( कन्दरसेन : प्रधान वानरों में से एक ), वामन ६४.५ ( कन्दरमाली दैत्य की कन्या देववती का वानर द्वारा हरण )। kandara
कन्दरा योगवासिष्ठ ३.८३.६ ( किरात राज्य की प्रजा द्वारा दोष शान्ति हेतु कर्कटी राक्षसी की कन्दरा देवी नाम से पूजा ), लक्ष्मीनारायण २.१०.६६( सिंहिका नामक कन्दरा द्वारा बालकृष्ण के दर्शन का वृत्तान्त )। kandaraa
कन्दर्प ब्रह्माण्ड ३.४.१९.६७ ( भण्डासुर वधार्थ गेयचक्र रथ के चतुर्थ पर्व में स्थिति पांच कामदेवों में से एक ), मत्स्य २९०.४ ( ८वें कल्प का नाम ), कथासरित् ३.६.६३ ( कन्दर्प की ब्रह्मा के मन से उत्पत्ति, नाम निरुक्ति, शिव द्वारा दग्ध करना ), १०.४.२०४ ( रत्नपुर के ब्राह्मण का नाम, कन्दर्प द्वारा केसट को स्व वृत्तान्त सुनाना : योगिनियों द्वारा रक्षा, सुमना से विवाह, वियोग व पुनर्मिलन, कन्दर्प द्वारा केसट की पत्नी रूपवती की रक्षा, रत्नपुर में अपनी पत्नियों सुमना व अनङ्गवती से मिलन आदि ) ; द्र. अनङ्ग, काम, मन्मथ, मकरध्वज । kandarpa
कन्दली नारद २.२८.७६ ( और्व - पुत्री, दुर्वासा - पत्नी, पति द्वारा भस्म होने के पश्चात् गोभिल राक्षस की भार्या बनना ), ब्रह्मवैवर्त्त १.९.१४( रुद्र - पत्नियों में से एक ), ४.२४ ( कन्दली की और्व की ऊरु से उत्पत्ति, दुर्वासा से विवाह, कलहप्रियता के कारण दुर्वासा द्वारा भस्म होना, वसुदेव - पुत्री एकानंशा के रूप में जन्म लेकर पुन: दुर्वासा - भार्या बनना ), लक्ष्मीनारायण १.४७५.८+ ( कन्दली का दुर्वासा से विवाह, नाम निरुक्ति, पति द्वारा भस्म होने पर शीत कदली जाति के रूप में उत्पन्न होना, और्व द्वारा दुर्वासा को पराभव होने का शाप ) । kandali
कन्दुक गणेश २.९३.३६( गणेश द्वारा कन्दुक क्रीडा में चञ्चल दैत्य का वध), भागवत ५.२.१४ ( आग्नीध्र के संदर्भ में कन्दुक का पतङ्ग नाम? ) , ५.९.१८ ( भद्रकाली द्वारा वृषलों / चोरों के कटे हुए सिरों से कन्दुक क्रीडा करना ), शिव २.५.५९ ( पार्वती की कन्दुक क्रीडा में विदल - उत्पल दैत्यों का विघ्न, पार्वती द्वारा कन्दुक से हनन, कन्दुकेश्वर लिङ्ग की स्थापना ), स्कन्द २.४.६५.२३ ( वही) । kanduka
कन्धर ब्रह्माण्ड ३.४.३३.७८( मणिकन्धर : यक्ष सेनानियों में से एक ), मार्कण्डेय २.३ ( प्रलोलुप - पुत्र, कङ्क - अनुज, अरिष्टनेमि वंश, राक्षस द्वारा स्वभ्राता कङ्क के वध पर कन्धर द्वारा राक्षस का वध, राक्षस की पत्नी से तार्क्षी कन्या को उत्पन्न करना ) ; द्र. कुणिकन्धर, तुरङ्गकन्धर, हयकन्धर ।
कन्या कूर्म २.४२.२२ ( कन्या तीर्थ का माहात्म्य ), गरुड १.४१.१ ( कन्या पर विश्वावसु गन्धर्व का आधिपत्य ), गर्ग ५.१८.३ ( कृष्ण विरह पर नागेन्द कन्या रूपी गोपियों व समुद्र कन्या रूपी गोपियों की प्रतिक्रिया ), देवीभागवत ३.२६.४० ( आयु अनुसार कन्या नाम व महिमा ), पद्म १.५२.८३ ( कन्या दान के फल का वर्णन ), ३.१२.६ ( कन्या आश्रम का संक्षिप्त माहात्म्य ), ३.२०.७७ ( रुद्र - कन्या सङ्गम तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ३.२१.११ ( दश कन्या तीर्थ का माहात्म्य ), ६.११८.४ ( कन्या विवाह / दान का माहात्म्य : विभिन्न आयु कालों में सोम, गन्धवों‰ आदि द्वारा कन्या के भोग का कथन ), ब्रह्म १.११३.७६ ( अयुग्म रात्रियों में मैथुन से कन्याओं की उत्पत्ति होने का कथन ), भविष्य १.१८२.२३ ( आयु अनुसार कन्या के नाम, विवाह हेतु उपयुक्त कन्या सम्बन्धी नियम, विवाह के ८ प्रकार ), ३.४.३.५४ ( कौमारी मातृका का वेणु व कन्यावती - पुत्री कन्या के रूप में जन्म ), ३.४.१८.२४ ( सत्त्वभूता भगिनी, रजोरूपा पत्नी, तमोभूता कन्या ;तीनों का परस्पर रूपान्तरण ), ४.१४८ ( कन्या दान का माहात्म्य ), भागवत १०.२.१२ ( योगमाया के १४ नामों में से एक ), मत्स्य १९३.८० ( नर्मदा तटवर्ती कन्या तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), १९४.११ ( त्रिदश ज्योति / ऋषिकन्या तीर्थ का माहात्म्य : विकृत रूपधारी शिव द्वारा ऋषि कन्याओं का वरण ), लिङ्ग २.४० ( कन्या दान विधि ), वराह १७.७०(शरीरपात आख्यान में १० कन्याओं के वारुणी काष्ठा बनने का उल्लेख ), २९.३ ( ब्रह्मा के श्रोत्रों से दिशाओं रूपी १० कन्याओं की उत्पत्ति, कन्याओं के देवों से विवाह ), ६९.९ ( इलावृत वर्ष में तापस द्वारा सृष्ट कन्याओं द्वारा अगस्त्य के सत्कार का वर्णन ), वायु ६९.१५४ ( कन्यक : मणिभद्र यक्ष व पुण्यजनी के २४ पुत्रों में से एक ), १०५.४७ /२.४३.४४( कन्या राशि में सूर्य के स्थित होने पर गया में पिण्ड दान की प्रशंसा ), विष्णु ३.१०.१६ ( कन्या विवाह के सन्दर्भ में शुभाशुभ रूपी लक्षणों का वर्णन ), विष्णुधर्मोत्तर ३.३०१.२९( कन्या प्रतिग्रह की संक्षिप्त विधि ), ३.३०४ ( कन्या दान का माहात्म्य ), शिव १.१५.५१ ( कन्या दान से भोग प्राप्ति का कथन ), स्कन्द ५.२.५४.१५ ( तापस द्वारा हुङ्कार से पांच कन्याओं की उत्पत्ति आदि का वर्णन ), ५.२.५८.६ ( नारद द्वारा सावित्री कन्या के दर्शन का वृत्तान्त ), ५.३.५०.२६ ( शूलभेद तीर्थ में कन्या दान के फल का उल्लेख : शिव लोक की प्राप्ति ), ५.३.५०.३० ( कन्या दान के महत्व का कथन ; गृह में कन्या न होने पर भी कन्या दान की विधि का कथन ), ५.३.६७.७५ ( श्रीहरि द्वारा कन्या रूप धारण करके कालपृष्ठ दानव के वध का वृत्तान्त ), ५.३.८४.२९ ( शनि के बृहस्पति ग्रह के सहित होने तथा कन्या राशि पर होने पर नर्मदा तट पर कुम्भेश्वर दर्शन के फल का वर्णन ), ५.३.१२७.२ ( अग्नि तीर्थ में कन्या दान से अग्निष्टोम आदि से अधिक फल प्राप्ति का कथन ), ५.३.१४६.१४ ( अस्माहक / अमाहक तीर्थ में एककाल भोजन से कन्यादान फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.१५६.३५ ( शुक्ल तीर्थ में कन्या दान के माहात्म्य का कथन ), ५.३.२०६.१ ( दश कन्या तीर्थ की उत्पत्ति तथा माहात्म्य का कथन : महादेव द्वारा १० कन्याओं से विवाह? आदि ), ६.३६.१० ( वाञ्छित कन्या प्राप्ति हेतु कोऽदादिति मन्त्र जपने का निर्देश ), ६.१८५.७१( अतिथि द्वारा कन्या से एकाकी विचरण की शिक्षा ), ६.२०४.२६( सूर्य के कन्या राशि में होने पर गया में श्राद्ध का महत्त्व ), ६.२३१.८६ ( चातुर्मास में श्रीहरि के शयन काल में कन्या दान के निषेध का उल्लेख ), ७.१.२०५.७६ ( कन्या के प्रकार, नाम ), योगवासिष्ठ १.१८.२६ ( चिन्ता की कन्या से उपमा ), लक्ष्मीनारायण १.२०५.५४ ( विवाहिता कन्या के मूल प्रकृति का स्वरूप होने का कथन ; मूल प्रकृति के ६ स्वरूपों का कथन ), २.३६.१४( कन्या रूप धारी विद्याओं के नाम ), २.४७.२२( कुमारी शब्द की निरुक्ति : यज्ञोपवीत, गायत्री विद्या का सम्पादन करने वाली ), ३.१८.११ ( कन्या दान के गोदान से श्रेष्ठ व पुत्र दान से अवर होने का उल्लेख ), ३.५३.५६( मासिक धर्म के पश्चात् दिन की संख्या अनुसार मैथुन से कन्या या पुत्र उत्पन्न करने का कथन ), शाङ्खायन श्रौत सूत्र १५.१७( सखा ह जाया कृपणं ह दुहिता ज्योतिर्ह पुत्र: परमे व्योमन् ), द्र. कालकन्या , विषकन्या । kanyaa