क अग्नि ३४८.४ ( ब्रह्मा? हेतु क का प्रयोग ), वायु ४.४३ ( मन का नाम : क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ विज्ञानी ), शिव २.१.८.२४( दिव्य अण्ड से ककारात्मक चतुर्मुख ब्रह्मा की उत्पत्ति का उल्लेख ), महाभारत शान्ति २०८.७( दक्ष के २ नामों में से एक क का उल्लेख ) । ka
कं भागवत ६.१.४२( देहधारियों के धर्म - अधर्म के साक्षियों में से एक )
कंस गरुड ३.१२.९८(कंस की विकर्ण से तुलना), गर्ग १.६ ( अस्ति व प्राप्ति - पति, कालनेमि का अंश, चरित्र वर्णन ), १.७ ( शम्बर, व्योम, बाण, वत्स, कालयवन आदि असुरों को परास्त करना ), ५.८.२१ ( मल्ल युद्ध में कृष्ण द्वारा कंस का वध ), ५.८.३६ ( आठ कंस - भ्राताओं के नाम ), ५.१२.१३ ( कंस - भ्राता : पूर्वजन्म में देवयक्ष - पुत्र, पूजा के पुष्पों को दूषित करने पर पिता के शाप से कंस - भ्राता बनना ), देवीभागवत ४.२०.६४+ ( कंस द्वारा आकाशवाणी सुनकर देवकी के वध की चेष्टा, देवकी के अष्टम पुत्र को मारने का उद्योग आदि ), ४.२२.४३ ( तालनेमि का अंश ), पद्म १.६ ( सिंहिका - पुत्र ), २.५१ ( गोभिल दैत्य के वीर्य से उत्पन्न उग्रसेन व पद्मावती -पुत्र ), ब्रह्म १.१३.५८ ( कंस के ८ भ्राताओं व ५ भगिनियों के नाम ), १.७२.९+ ( कालनेमि के अवतार कंस द्वारा देवकी के षड~गर्भ संज्ञक ६ पुत्रों व एक कन्या के वध का वर्णन , कृष्ण जन्म व बाललीला का वर्णन ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.७ ( कंस द्वारा बालिका को मारने के लिए तत्पर होना ), ४.६३ ( कंस के दु:स्वप्न का वर्णन ), भागवत ७.१.३० ( कंस द्वारा भय रूपी कृष्ण भक्ति से ईश्वर की प्राप्ति ), १०.१ ( आकाशवाणी सुनकर कंस द्वारा देवकी - पुत्रों के वध का उद्योग ), १०.१ ( नारद द्वारा यदुवंशियों के बारे में प्रबोध ), १०.४४ ( कृष्ण द्वारा कंस - भ्राताओं सहित कंस का वध ), मत्स्य ४४.७४ ( उग्रसेन के ९ पुत्रों में से ज्येष्ठ पुत्र, भ्राताओं के नाम ), वायु ९६.२१७ ( कंस द्वारा देवकी वध की चेष्टा की कथा ), विष्णु ५.२०.८७ ( कृष्ण द्वारा कंस वध की कथा ), स्कन्द ३.१.२७.३३ ( रामेश्वर कोटि तीर्थ में स्नान से कृष्ण की मातुल वध दोष से मुक्ति ; कंस - देवकी की कथा ), हरिवंश १.३७.३० ( कंस के ८ भ्राताओं व ५ भगिनियों के नाम ), २.२ ( कंस द्वारा देवकी के गर्भ के विनाश का प्रयत्न ), २.२२ (कंस को कृष्ण से भय, वसुदेव की निन्दा ), २.२८.१०३( द्रुमिल व पद्मावती के पुत्र के कंस नाम का कारण - कस्य त्वं इति ), २.३० ( कृष्ण द्वारा कंस का वध, स्त्रियों का विलाप ), २.२८.१०३( कंस के कंस नाम का कारण : कस्त्वं ) । Kamsa/ Kansa
कंसारि स्कन्द ६.१७४ ( याज्ञवल्क्य -भगिनी, पिप्पलाद - माता, पिप्पलाद जन्म के पश्चात् मृत्यु ), ६.१७६ ( कंसारि लिङ्ग का माहात्म्य, पिप्पलाद द्वारा माता - शुद्धि हेतु स्थापना, नील रुद्र आदि पठन का महत्व ), लक्ष्मीनारायण ४.४६.१४ ( कंसारि / पात्र मांजने वाली दासी विद्योता द्वारा कथा श्रवण से मुक्ति की प्राप्ति ) ।
ककुत्स्थ गर्ग ७.४०.३१( हेमकुण्डल विद्याधर द्वारा ग्राह रूप धारण कर ककुत्स्थ मुनि का जल में कर्षण, ककुत्स्थ द्वारा विद्याधर को ग्राह बनने का शाप ), देवीभागवत ७.९.११ ( शशाद - पुत्र, दैत्यों से संग्राम हेतु इन्द्र को वाहन बनाना, इन्द्रवाह व पुरञ्जय नाम प्राप्ति ), भागवत ९.६.१२ ( विकुक्षि - पुत्र, इन्द्र रूपी वृषभ पर आरूढ होकर असुरों को परास्त करना, इन्द्रवाह आदि नाम प्राप्ति ), मत्स्य १२.२८ ( विकुक्षि - पुत्र, सुयोधन - पिता, इक्ष्वाकु वंश ), वायु ८८.२४ ( शशाद - पुत्र, आडी - बक युद्ध में इन्द्र रूपी वृषभ पर आरूढ होकर युद्ध करना, अनेना - पिता ), विष्णु ४.२.२० ( पुरञ्जय द्वारा ककुत्स्थ नाम प्राप्ति की कथा ), हरिवंश १.११.१९ ( शशाद - पुत्र, अनेना - पिता, इक्ष्वाकु वंश ) । Kakutstha
ककुद ब्रह्माण्ड ३.४.१.५८ ( ककुदी : १२ मरीचि नामक देवों में से एक ), वायु ९६.११५ ( सत्यक - पुत्र, वृष्टि - पिता, अनमित्र / वृष्णि वंश ), महाभारत आश्वमेधिक दाक्षिणात्य पृष्ठ ६३४८( कपिला गौ के ककुद् में नभ की स्थिति का उल्लेख )। kakuda
ककुद्मान पद्म ६.१११.२६ ( सावित्री/स्वरा के शाप से ब्रह्मा के ककुद्मिनी गङ्गा होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१९.४१ ( शाल्मलि द्वीप के ७ पर्वतों में से एक ), ब्रह्माण्ड १.२.१९.४५( ककुद्मान पर्वत के सुप्रद वर्ष का उल्लेख ), मत्स्य १२१.१४ ( कैलास के पश्चिमोत्तर में औषधि - गिरि, ककुद्मी नामक रुद्र की उत्पत्ति व त्रैककुद् अञ्जन पर्वत का स्थान ), १२२.६० ( कुश द्वीप के ७ पर्वतों में से एक, मन्दर उपनाम ), वायु ४९.३७ ( शाल्मलि द्वीप के ७ पर्वतों में से एक, रत्न वर्षा का स्थान ), विष्णु २.४.२७ ( शाल्मलि द्वीप के ७ पर्वतों में से एक ) । kakudmaan
ककुद्मी देवीभागवत ४.२२.४३ ( बलि - पुत्र, अरिष्टासुर रूप में अवतरण ), पद्म ६.१११.२६( सावित्री के शाप से ब्रह्मा के ककुद्मिनी गङ्गा बनने का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१०६.१ ( राजा ककुद्मी द्वारा रेवती कन्या के बलराम से विवाह में वर को प्रदत्त दायाद / दहेज का वर्णन ), भागवत ९.३.२९ ( ककुद्मी का ब्रह्मा के परामर्श पर रेवती पुत्री को बलराम को प्रदान करना ), मत्स्य १२.२३ ( रोचमान - पुत्र रेवत का उपनाम, स्व - पुत्री रेवती को बलराम को प्रदान करना ), १२१.१४ ( एक रुद्र का नाम ), वायु ८६.२५ ( रेव - पुत्र, कुशस्थली - राजा, ब्रह्मलोक से प्रत्यागमन पर रेवती पुत्री का विवाह बलराम से करना ), ८८.१ ( ककुद्मी के ब्रह्मलोक गमन पर राक्षसों द्वारा ककुद्मी की नगरी कुशस्थली को नष्ट करना ), शिव ५.३६.२६ ( रैवत का ज्येष्ठ पुत्र, रेवती - पिता, कन्या के विवाह आदि का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.१५७.११९ ( कृतवाक् विप्र का रैवत - पुत्र ककुद्मी रूप में जन्म, रेवती का ककुद्मी - कन्या के रूप में जन्म, रेवती कन्या सहित ब्रह्मलोक गमन की कथा ), १.३९०.९८ ( रेवत - पुत्र, रेवती - पिता, शर्याति वंश, रेवती पुत्री बलराम को प्रदान करने के पश्चात् तप हेतु बदरिकाश्रम में गमन )। Kakudmee
ककुभ भागवत ३.१.४० ( चार दिशाओं के लिए ककुभ शब्द का प्रयोग ), ५.१९.१६ ( भारतवर्ष का एक पर्वत ), ६.६.६ ( ककुभ~ : दक्ष - कन्या, धर्म - भार्या, संकट - माता ), लिङ्ग १.४९.६० ( ककुभ वन में कश्यपादि ऋषियों के वास का उल्लेख )। kakubha
कक्लस ब्रह्माण्ड ३.४.२५.२८, ३.४.२५.९५ ( भण्डासुर - सेनानी, वह्निवासा देवी द्वारा वध ) ।
कक्लिवाहन ब्रह्माण्ड ३.४.२५.२८, ३.४.२५.९६ ( भण्डासुर - सेनानी , केकिवाहन नाम, महावज्रेश्वरी देवी द्वारा वध ) ।
कक्षा देवीभागवत १२.६.३६ ( गायत्री सहस्रनामों में से एक ), वा.रामायण ४.१७.४४( चरित्र रूप हस्ती कक्षा का उल्लेख ), स्कन्द ४.२.६५.७० ( रुद्र द्वारा कक्षा यन्त्र पीडन द्वारा दुन्दुभि निर्ह्राद दैत्य का वध ), महाभारत कर्ण ८७.९५( अर्जुन के रथ ध्वज के कपि द्वारा कर्ण के रथ ध्वज की हस्ति कक्षा पर आक्रमण का कथन )। Kakshaa
कक्षीवान गर्ग ६.१२ ( त्रित - शिष्य, गुरु शाप से शङ्ख बनना, कृष्ण द्वारा उद्धार ), ब्रह्म २.२९ ( कक्षीवान - पुत्र पृथुश्रवा द्वारा गौतमी नदी में स्नान द्वारा ही पितृऋण से मुक्त हो जाने की कथा ), ब्रह्माण्ड १.२.३२.१११ ( ३३ मन्त्रवादी अङ्गिरस ऋषियों में से एक ), २.३.७४.७१ ( दीर्घतमा ऋषि द्वारा बलि की दासी से उत्पन्न पुत्र, नाम प्राप्ति का कारण ), २.३.७४.९५ ( कक्षीवान द्वारा तप से ब्राह्मणत्व प्राप्ति, कूष्माण्ड गौतम आदि सहस्र पुत्रों को जन्म देना ), मत्स्य ४८.६२ ( दीर्घतमा व बलि - दासी से उत्पत्ति, तप से ब्राह्मणत्व प्राप्ति, गौतम उपनाम ), वायु ९९.७० ( दीर्घतमा व बलि - पुत्र, तप से ब्राह्मणत्व प्राप्ति ), स्कन्द ३.१.१६ ( दीर्घतमा - पुत्र, स्वनय - पुत्री मनोरमा से विवाह की कथा ) । kaksheevaan/ kakshivan
कक्षेयु मत्स्य ४९.५ ( भद्राश्व व घृताची के १० पुत्रों में से एक, पूरु / ययाति वंश ), वायु ९९.१२४ ( रौद्राश्व व घृताची अप्सरा के १० पुत्रों में से एक, पुरु वंश ), विष्णु ४.१९.२ ( कक्षेषु : रौद्राश्व - पुत्र, पुरु वंश ) ।
कङ्क गर्ग ५.८.३६ ( कंस - भ्राता, बलराम द्वारा वध ), ब्रह्माण्ड १.२.१९.३९(कङ्क पर्वत के महोदय? वर्ष का उल्लेख ), १.२.१९.४५( कङ्क पर्वत के वैद्युत वर्ष का उल्लेख ),१.२.३३.१० ( कङ्कमुद्ग :९ होता ब्रह्मचारियों / श्रुतर्षियों में से एक ), ३.४.२४.४८ ( फालमुख असुर का वाहन ), भागवत ९.२४.२८ ( शूर व मारिषा के १० पुत्रों में से एक, वृष्णि वंश ), १०.४४.४० ( कंस के ८ भ्राताओं में से एक, बलराम द्वारा वध ), १०.८६.२० ( कङ्क देश के निवासियों द्वारा कृष्ण के दर्शन करना ), १२.१.२९ ( १६ पीढी तक राज्य करने वाला एक लोभी राजकुल ), मत्स्य ४४.६१ ( कङ्क की दुहिता का बभ्रु - भार्या बनकर कुकुर आदि ४ पुत्रों को जन्म देना ), १२२.५७ ( कुश द्वीप के ७ पर्वतों में से एक, कुशेशय उपनाम ), १२२.६७ ( ककुद नामक कङ्क पर्वत का वर्ष ), मार्कण्डेय २.३ ( प्रलोलुप नामक गरुड - पुत्र, कन्धर - अग्रज, कैलास पर्वत पर विद्युद्रूप राक्षस से युद्ध में मृत्यु ), लिङ्ग १.२४.२८ ( पञ्चम द्वापर में मुनि, सनकादि - गुरु ), वायु २३.१२९ ( पञ्चम द्वापर में शिव - अवतार ),४२.५० ( मेरु के परित: एक पर्वत , अम्बर नदी का स्थान ), ४९.३६ ( शाल्मलि द्वीप के सात पर्वतों में से एक ), १०६.३६ ( गया में ब्रह्मा के यज्ञ में एक ऋत्विज ), शिव ३.४.२२ ( पञ्चम द्वापर में शिव - अवतार, सनकादि के पिता ), ७.२.९.२ ( शिव के योगाचार्य शिष्यों में से एक ), लक्ष्मीनारायण २.१६.५७ ( कङ्कताल : शत्रुञ्जय पर्वत पर राक्षस, प्रकृति व स्वरूप का कथन, कृष्ण द्वारा सुदर्शन चक्र से वध ) ; द्र. विकङ्क । Kanka, kamka
कङ्कट कथासरित् ८.४.७५ ( सूर्यप्रभ - सेनानी, चक्रवाल द्वारा वध ), ८.५.४९ ( कङ्कटक पर्वत पर ऊर्ध्वरोमा विद्याधर का निवास ) ।
कङ्कण पद्म १.३६.२६ ( अगस्त्य को श्वेत राजा से दिव्य आभरण प्रतिग्रह की प्राप्ति, अगस्त्य द्वारा राम को भेंट ), ५.९९.१८( त्याग के कङ्कण होने का उल्लेख ), भविष्य ४.४६.१२ ( हस्त में स्वर्णसूत्रमय तन्तु /दोरक बांधने के माहात्म्य के संदर्भ में चन्द्रमुखी व मानमानिका की कथा ), वामन १.२७( शिव के कङ्कण रूपी नागों अश्वतर व तक्षक का उल्लेख ), स्कन्द ३.१.५.१३० ( राजकुमार उदयन द्वारा शबर को कङ्कण देकर सर्प को बन्धन से मुक्त कराना, राजा सहस्रानीक द्वारा पत्नी मृगावती के कङ्कण को देखकर विलाप ), ३.३.२०.४४ ( शिव भक्त वेश्या द्वारा वैश्य से रत्न कङ्कण लेकर ३ दिन तक वैश्य की भार्या बनने की कथा ), ७.१.३५ ( अग्नि तीर्थ में कङ्कण क्षेपण का कारण / रहस्य ), ७.१.३७.२१ ( कङ्कण क्षेपण का माहात्म्य : बृहद्रथ व इन्दुमती की कथा, पूर्वजन्म में शूद्री द्वारा कङ्कण क्षेपण से इन्दुमती बनना ), योगवासिष्ठ १.२५.८ ( काल के हाथों में चन्द्रमा व सूर्य रूपी कङ्कण ), १.२५.२५ ( नियति के हाथों में विद्युत व सात समुद्र रूपी कङ्कण ), कथासरित् २.१.७८ ( उदयन द्वारा कङ्कण के बदले सर्प को मुक्त कराने का वृत्तान्त ), १०.१.९ ( राजा उदयन द्वारा खोए हुए कङ्कण को भारवाहक से प्राप्त करना )। kankana
कङ्कती वराह १२८.६८ ( स्नान उपचार में विष्णु को कङ्कती / कङ्घी अर्पण करना ) ।
कङ्का भागवत ९.२४.२५ ( कंस की ५ भगिनियों में से एक ), ९.२४.४१ ( आनक - पत्नी, शत्रुजित् व पुरुजित् - माता ) ।
कङ्काल ब्रह्म २.९७.१४ ( कङ्कालिनी राक्षसी द्वारा आसन्दिव द्विज का हरण, द्विज की रक्षा हेतु नारायण द्वारा चक्र से राक्षसी का वध ), स्कन्द ४.२.८२.४७ ( कङ्कालकेतु :कपालकेतु - पुत्र कङ्काल द्वारा मलयगन्धिनी का हरण, अमितजित् द्वारा त्रिशूल से कङ्कालकेतु का वध ), ५.२.४६.४४ ( कङ्कालकेतु दानव द्वारा मलयगन्धिनी कन्या के हरण आदि का वृत्तान्त ), ७.१.१३७ ( प्रभास क्षेत्र में कङ्काल भैरव का संक्षिप्त माहात्म्य ) । kankaala
कङ्कोल मत्स्य ९६.७ ( रजतमय १६ फलों में से एक ), स्कन्द ६.२५२.२२( चातुर्मास में सिद्धों की कङ्कोल वृक्ष में स्थिति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.४४१.८४ ( वृक्ष, सिद्धों का रूप ) ।
कच अग्नि ३४८.१२ ( कच हेतु सं एकाक्षर का प्रयोग ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१०४.४५( कच के शिष्यों की संख्या ), मत्स्य २५ ( बृहस्पति- पुत्र, शुक्राचार्य व देवयानी की सेवा, मृत संजीवनी विद्या की प्राप्ति ), २६ ( देवयानी के पाणिग्रहण के अनुरोध को अस्वीकृत करना, शाप - प्रतिशाप ), योगवासिष्ठ ४.५८ ( कच द्वारा सर्वत्र आत्मा के दर्शन सम्बन्धी गाथा का कथन ), ६.१.५६.२० ( चित्त के प्रकचन पर क्षण में ही जगत के निर्माण व संक्षय का उल्लेख ), ६.१.९६.४८ ( आत्मा में केवल चिन्मात्र के कचन का उल्लेख ; अकचित के नाम तथा कचित के सर्ग वेदन होने का कथन ), ६.१.१११ ( कच द्वारा संसार सागर से पार उतरने हेतु तप, बृहस्पति द्वारा अहंकार पर विजय के उपाय का कथन ), ६.२.१६१.३८( अजा द्वारा चित् के कचन का उल्लेख ), द्र. विकच ।Kacha
कच्छ गर्ग ७.५.७ ( देश, शुभ्र राजा, हालापुरी राजधानी, प्रद्युम्न द्वारा विजय ), पद्म ६.२०१.८( ५ कच्छों का उल्लेख ), भविष्य ३.३.२७.११( कच्छ देश के राजा कमलापति व राजपुत्र जननायक का वृत्तान्त ), भागवत १२.११.३४ ( माधव / वैशाख मास में सूर्य रथ व्यूह में कच्छनीर सर्प की स्थिति ), लक्ष्मीनारायण ४.४५.१४ ( कच्छ देश के राजा माधवराय द्वारा श्री हरि के स्वागत - सत्कार का वर्णन ), कथासरित् १.६.७७ ( भरुकच्छ देश के आलसी ब्राह्मण द्वारा सिद्धि प्राप्ति व उद्यान स्थापना की कथा ), ३.४.२६२ ( कच्छप नृप का दुःखलब्धिका नामक वधू को प्राप्त करना, वधूवास गृह में प्रवेश करने पर मृत्यु का कथन ) ; द्र. भरुकच्छ, भृगुकच्छ । kachchha
कच्छप गरुड १.५३ ( निधि का नाम, स्वरूप ), १.२१७.१५ (पितरों को पीडा देने पर प्राप्त योनि ), देवीभागवत ८.१०.१ ( हिरण्मय वर्ष में अर्यमा द्वारा कच्छप की आराधना ), भविष्य १.१३८.४०( वरुण की कच्छप ध्वज का उल्लेख ), भागवत ५.१८.२९ ( हिरण्मय वर्ष में अर्यमा देव द्वारा भगवान कूर्म की आराधना का वर्णन ), ८.७.८ ( समुद्र मन्थन कार्य में कच्छप द्वारा मन्दराचल रूपी मथानी को धारण करना ), मार्कण्डेय ६८.२० ( पद्मिनी विद्या के आश्रित एक तामसी निधि, स्वरूप का कथन ), वायु ४१.१० ( कुबेर की ८ निधियों में से एक ), ६९.७३ ( कण्डू / कद्रू के प्रधान नाग पुत्रों में से एक ), ९१.९७/२.२९.९३( विश्वामित्र के पुत्रों में से एक ),विष्णु ४.७.३८ ( विश्वामित्र के पुत्रों में से एक ), स्कन्द ३.१.३८.५७ ( कश्यप द्वारा गरुड को कच्छप व गज का भक्षण करके क्षुधा निवृत्ति करने का निर्देश, कच्छप के पूर्व जन्म का वृत्तान्त : पूर्व जन्म में सुप्रतीक - भ्राता विभावसु ), ५.३.१५९.२४ ( द्विजातियों को परिवाद करने पर कच्छप योनि प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.१८१.६५+ ( भृगु कच्छ तीर्थ की उत्पत्ति : श्री व भृगु के कच्छप पृष्ठ पर विराजमान होने का वर्णन ), महाभारत आदि २९.२७( गरुड द्वारा भक्षित गज व कच्छप के पूर्व जन्म का वृत्तान्त : सुप्रतीक व विभावसु महर्षियों का परस्पर शाप से क्रमश: हस्ती व कच्छप बनना ), शान्ति ३०१.६५ (प्रज्ञा द्वारा तमः कूर्म व रजो मीन को तरने का निर्देश), योगवासिष्ठ १.१८.४६ ( संसार समुद्र में काया रूपी कच्छप ), लक्ष्मीनारायण १.५१९.८९ ( इन्द्रद्युम्न राजा द्वारा ब्रह्मलोक से प्रत्यागमन पर चिरंजीवियों के दर्शन प्रसंग में मानसरोवर पर कच्छप से भेंट, कच्छप द्वारा पूर्व जन्मों के वृत्तान्त का कथन : पूर्व जन्म में लक्ष्मी के पार्षद वसुहारी का शाप से कूर्म बनना, ब्रह्मा के वरदान से कूर्म पर अनन्त का स्थित होना व अनन्त पर विष्णु का शयन, इन्द्रद्युम्न द्वारा कूर्म पृष्ठ पर यज्ञ करने से कूर्म पृष्ठ का दग्ध होना आदि ), १.५२०.१०(कच्छप द्वारा अनन्त/शेष को पीठ पर धारण करने का कारण ), ३.१६.५९ ( शेष के कच्छप तथा कच्छप के मेघ वाहन का उल्लेख ), कथासरित् २.४.१४० ( गरुड द्वारा कच्छप भक्षण का प्रसंग ) । Kachchhapa
कज्जल लक्ष्मीनारायण २.२८३.५५( अमृता द्वारा बालकृष्ण को कज्जल देने का उल्लेख ) ।
कञ्चन लक्ष्मीनारायण १.४०३.४२( भद्रमति की भार्याओं में से एक, पति को दारिद्र्य से मुक्ति के उपाय का कथन ) ।
कञ्चुक ब्रह्म १.३४.८०( मेघ रूपी कञ्चुक का उल्लेख ), शिव ६.१६.८४ ( जीव को आच्छादित करने वाले ५ कञ्चुकों / आवरणों का कथन ), लक्ष्मीनारायण २.२२५.९३( सिद्धियों को स्वर्णकञ्चुकी दान का उल्लेख ), २.२२५.९५( भूत, प्रेत, पिशाचों हेतु कञ्चुक दान का उल्लेख ) ; द्र. हेमकञ्चुक । Kanchuka
कट अग्नि ३४१.१८ ( कटक : संयुत कर के १३ प्रकारों में से एक ), भागवत ११.१७.४९ ( शूद्र के लिए आपत्तिकाल में कट क्रिया वृत्ति द्वारा निर्वाह का निर्देश ), स्कन्द ५.३.१५.१५ ( अमरकण्टक पर्वत में कट की शरीर रूप में निरुक्ति ), ७.३.६२ ( कटेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : गौरी व गङ्गा में शिव दर्शन की स्पर्धा होने पर गौरी द्वारा कटक / अद्रि नितम्ब रूपी शिवलिङ्ग के दर्शन ), योगवासिष्ठ ४.२५+ ( शम्बरासुर द्वारा देवताओं से युद्ध हेतु दाम, व्याल व कट नामक सेनानियों की सृष्टि, सेनानियों द्वारा देवों को त्रास, सेनानियों में अहंकार उत्पन्न होने पर उनका नष्ट होना, विभिन्न योनियों को भोगने के पश्चात् काश्मीर देश में सरसी में मत्स्य होना, अन्त में कट का नृसिंह नामक मन्त्री के गृह में क्रकर / सारिका बनना, पूर्वजन्म के वृत्तान्त को सुनने पर मुक्ति ), लक्ष्मीनारायण ४.३१ ( गङ्गाञ्जनी नामक कटकर्त्री द्वारा श्री हरि की भक्ति से मोक्ष की प्राप्ति ) ; द्र. विकट,कटङ्कट द्र. कामकटङ्कट, शालकटङ्कट, सालकटङ्कट । Kata
कटञ्ज योगवासिष्ठ ५.४६.११( कटञ्ज नामक श्वपच का मङ्गल हस्ती द्वारा वरण होने पर कीर देश में राजा बनना, प्रजा द्वारा राजा के श्वपच होने के ज्ञान पर राजा का तिरस्कार आदि )
कटपूतना स्कन्द ४.१.४५.४१ ( ६४ योगिनियों में से एक ), लक्ष्मीनारायण १.८३.३२( ६४ योगिनियों में से एक ) ।
कटाह वामन ९०.३४ ( कटाह में विष्णु का ब्राह्मणप्रिय नाम ), स्कन्द २.१.२८ ( वेङ्काटचल के अन्तर्गत कटाह तीर्थ का माहात्म्य : कटाह तीर्थ के जल का पान करने से केशव द्विज की ब्रह्महत्या से मुक्ति ), कथासरित् २.५.७४ ( देवस्मिता - पति गुहसेन का कटाह द्वीप जाना, गमन से पूर्व पति व पत्नी द्वारा सदाचार की रक्षा के लिए पद्म प्राप्त करना ), ९.६.५९ ( चन्द्रस्वामी ब्राह्मण का अपने बालकों को प्राप्त करने के लिए कटाह द्वीप जाना ), १०.५.३ ( मुग्धबुद्धि वणिक् द्वारा कटाह द्वीप में अगुरु काष्ठ को कोयले के रूप में बेचने की कथा ), १८.४.१०५ ( कटाह द्वीप के राजा गुणसागर द्वारा स्वकन्या गुणवती का विक्रमादित्य से विवाह करने का वृत्तान्त )। Kataaha
कटि गरुड १.१२७.१५ ( वराह न्यास में कटि में क्रोडाकृति के न्यास का उल्लेख ), पद्म ६.३६.१०( एकादशी को ऊरु में ज्ञानगम्य व कटि में ज्ञानप्रद विष्णु का न्यास ),हरिवंश ३.७१.५३ ( वामन के विराट रूप में लक्ष्मी, मेधा आदि के कटि प्रदेश होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.१५५.५३ ( अलक्ष्मी की तैलि यन्त्र सम कटि का उल्लेख ) । Kati
कठ ब्रह्म २.५१ ( भरद्वाज - शिष्य कठ द्वारा गुरु की कुरूप कन्या रेवती से विवाह, रेवती द्वारा सुन्दरता प्राप्त करने का वृत्तान्त ), मत्स्य १९१.६३ ( नर्मदा तटवर्ती कठेश्वर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), वराह ३८.४( तपोरत व्याध द्वारा पर्ण भक्षण को उद्धत होने पर आकाशवाणी द्वारा सकठ के भक्षण का निषेध )। Katha
कणाद भविष्य १.४२.२८ ( उलूकी के गर्भ से उत्पन्न कणाद ऋषि के तप से ब्राह्मण होने का उल्लेख ), वायु २३.२१६ ( २३वें द्वापर में शिव - अवतार सोमशर्मा के एक पुत्र ), शिव ७.२.९.२० ( शिव के योगाचार्य शिष्यों में से एक ), स्कन्द ४.२.९७.१७५( कणादेश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ) । kanaada
कण्ट भविष्य ३.४.१०.१४( कण्टकों के स्पर्शमणियों में बदलने का कथन ), स्कन्द ४.१.१.१६टीका ( कण्टक : रोमाञ्च का अर्थ ), ४.१.४१.१८८ ( कलि, काल व कृतकर्म की त्रिकण्टक संज्ञा ), ५.१.३७.२७ ( कण्टेश्वर लिङ्ग की उत्पत्ति व माहात्म्य : शिव द्वारा सिंहनाद से उत्पत्ति ), ५.२.५४ ( कण्टेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : सत्यविक्रम राजा को निष्कण्टक राज्य की प्राप्ति ), ७.१.१०२ ( कण्टक शोधिनी देवी का माहात्म्य ), ७.१.३१७ ( कण्टक शोषिणी देवी का माहात्म्य : यज्ञ में आहुति से उत्पत्ति, कण्टक रूपी दैत्यों का नाश ), ७.४.१७.३३ ( कण्टेश्वरी : द्वारका के उत्तर द्वार पर स्थित देवी का नाम ), लक्ष्मीनारायण १.३७०.८१ ( नरक में तीक्षण कण्टक कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख ) ; द्र. त्रिकण्टक । Kantaka
कण्टकी वामन १७.५ ( वृक्ष, विश्वकर्मा से उत्पत्ति )।
कण्ठ अग्नि २१४.३१ ( पुरुष के कण्ठ में विष्णु की स्थिति का उल्लेख ), गणेश २.११५.१७ ( सिन्धु असुर द्वारा गणेश - सेनानी लम्बकर्ण के कण्ठ के विभेदन का उल्लेख ), वायु ९९.१३० ( धुर्य - पुत्र, वृष्णि वंश ), ९९.१६९ ( अजमीढ व केशिनी - पुत्र, मेधातिथि - पिता, पुरु / भरत वंश ), महाभारत शान्ति ३४२.२६ ( सर्पों के दंशन से महादेव का कण्ठ नीला हो जाने का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.५८०.२ ( त्रिलोचन - पुत्र, शम्बर - पौत्र, मृग रूप धारी द्विजों की हत्या से ब्रह्महत्या द्वारा पत्नी बनकर कण्ठ का अनुगमन करना, सोमतीर्थ में नर्मदा - नाग संगम पर कण्ठ की ब्रह्महत्या से मुक्ति का वृत्तान्त ), कथासरित् ९.४.१०६ ( समुद्रशूर वैश्य द्वारा शव से कण्ठाभरण की प्राप्ति, राजा द्वारा कण्ठाभरण के कारण वैश्य का बन्धन व मुक्ति, गृध्र द्वारा कण्ठाभरण का हरण, समुद्रशूर द्वारा पुन: प्राप्ति का वर्णन ), १८.४.९६( सूकर के कण्ठ का स्पर्श करने से कृपाण में रूपान्तरित होना ), द्र. नीलकण्ठ, श्रीकण्ठ ।Kantha
कण्डरीक मत्स्य २०.२४ ( ब्रह्मदत्त - मन्त्री, पूर्व जन्म में कौशिक ऋषि - पुत्र ), हरिवंश १.२३.२१, १.२४.३१ ( ब्रह्मदत्त - मन्त्री, सांख्य योग वेत्ता, सामवेदी ) ।
कण्डु ब्रह्म १.६९ ( कण्डु मुनि के तप में प्रम्लोचा अप्सरा द्वारा विघ्न का वर्णन, मारिषा कन्या की उत्पत्ति ), भागवत ४.३०.१३ ( कण्डु व प्रम्लोचा - पुत्री मारिषा का वृक्षों द्वारा पालन ), वायु ६१.४३ ( सामवेद शाखा प्रवर्तक लाङ्गलि के ६ शिष्यों में से एक ), विष्णु १.१५.११ ( मुनि, प्रम्लोचा अप्सरा से रमण की कथा ), १.१५.५४ ( कण्डु द्वारा केशव की ब्रह्मपार स्तोत्र द्वारा आराधना ), हरिवंश १.२९.४७ ( कण्डुक : वाराणसी पुरी में कण्डुक नापित / नाई द्वारा स्वप्नादेश के अनुसार निकुम्भ गणेश की प्रतिष्ठा करना, वाराणसी के नष्ट होने का वृत्तान्त ), वा.रामायण ६.१८.२६ ( कण्व - पुत्र कण्डु ऋषि द्वारा शरणागत की रक्षा विषयक गाथा का कथन )। Kandu