कवच अग्नि ८४.४६( भोग की कवच मन्त्र से प्राप्ति?), ३२३.३६ ( १०५ अक्षरों के कवच मन्त्र का कथन ), गणेश २.८५.१८ ( मरीचि - पठित गणेश कवच का वर्णन ), गरुड १.१९४.१ ( श्री हरि द्वारा शिव को प्रोक्त वैष्णव कवच ), १.१९६.१ ( श्री हरि द्वारा शिव को २४ विष्णु अवतारों से निर्मित कवच का वर्णन ), गर्ग १.१३.१५ ( पूतना वध पर कृष्ण की रक्षा हेतु गोपियों द्वारा पठित कृष्ण रक्षा कवच ), १.१४.५३ ( ब्राह्मणों द्वारा कृष्ण की रक्षा के लिए पठित कवच ), ४.१६ ( सौभरि ऋषि द्वारा मान्धाता को यमुना कवच का उपदेश ), ८.१२.३ ( गर्ग ऋषि द्वारा गोपियों को प्रदत्त बलराम कवच ), देवीभागवत ३.१९.३४ ( मनोरमा द्वारा सुदर्शन पुत्र की रक्षा हेतु पठित मातृका कवच ), ९.४.७१ ( कृष्ण द्वारा ब्रह्मा को वर्णित सरस्वती कवच ), १२.३.४ ( नारायण द्वारा नारद को वर्णित गायत्री कवच ), नारद १.७१.११४ ( केशवादि रक्षा कवच का कथन ), १.७७+ ( कार्त्तवीर्य व हनुमत्कवच का निरूपण ), १.८९.२२ ( ललिता कवच का वर्णन ), पद्म ६.७१.१२०( विष्णु सहस्रनाम के कवच सूर्यवंशध्वज का उल्लेख ), ६.७३.१ ( शिव द्वारा नारद को प्रदत्त राम रक्षा स्तोत्र कवच ), ब्रह्म १.५७.४० ( विष्णु कवच ), १.७५.१३ ( पूतना वध पर नन्द द्वारा पठित कृष्ण रक्षा कवच ), २.९३.२९ ( शाकल्य द्वारा परशु राक्षस से स्व - रक्षा हेतु पठित कवच ), ब्रह्मवैवर्त्त १.१९.३३ ( कृष्ण द्वारा ब्रह्मा को प्रदत्त कृष्ण कवच ), १.१९.४९ ( शिव द्वारा बाणासुर को प्रदत्त शिव कवच ), २.४.७१ ( ब्रह्मा द्वारा भृगु को प्रदत्त सरस्वती कवच ), २.५६.१ ( शिव द्वारा कृष्ण से प्राप्त राधा कवच का माहात्म्य व विधि ), २.६७.१ ( कृष्ण द्वारा ब्रह्मा को प्रदत्त ब्रह्माण्डमोहन नामक प्रकृति / दुर्गा कवच ), ३.१९.१९ ( बृहस्पति द्वारा इन्द्र को प्रदत्त सूर्य कवच ), ३.२२.५ ( श्रीहरि द्वारा नारद को प्रदत्त लक्ष्मी कवच ), ३.३१.२४ ( परशुराम द्वारा त्रैलोक्य विजय हेतु शिव से प्राप्त कृष्ण कवच ), ३.३७.६ ( नारायण द्वारा नारद को प्रदत्त काली कवच ), ३.३८.४१ ( सनत्कुमार द्वारा पुष्कराक्ष को प्रदत्त महालक्ष्मी कवच ), ३.३९.३ ( कृष्ण द्वारा ब्रह्मा को प्रदत्त दुर्गा कवच ), ४.१२.१७ ( शकट भञ्जन के पश्चात् योगनिद्रा द्वारा कृष्ण हेतु पठित कृष्ण कवच ), ब्रह्माण्ड २.३.३३.१ ( परशुराम द्वारा क्षत्रिय वध हेतु शिव से प्राप्त त्रैलोक्य विजय कवच का वर्णन ), भविष्य १.२००.१२ ( सूर्य पूजा में कवच न्यास का कथन ), १.२१२.१४ ( सूर्य पूजा में यकार आदि से निर्मित कवच ), भागवत ६.८.३ ( विश्वरूप पुरोहित द्वारा इन्द्र को प्रदत्त नारायण कवच ), १०.६.२२ ( पूतना वध के पश्चात् गोपियों द्वारा पठित कृष्ण रक्षा कवच ), वामन ८६.९( विष्णु कवच का वर्णन ), विष्णु ५.५.१४ ( गोपों द्वारा कृष्ण रक्षा हेतु पठित श्रीहरि कवच ), विष्णुधर्मोत्तर १.१९५ ( मार्कण्डेय द्वारा वज्र को प्रदत्त विष्णु पञ्जर कवच ), १.२३७ ( शिव द्वारा रक्षा हेतु प्रयुक्त विष्णु कवच ), स्कन्द २.२.३०.७८( विष्णु के विभिन्न नामों द्वारा कवच ), ३.३.१२.१ ( ऋषभ योगी द्वारा भद्रायु राजकुमार को प्रदत्त शिव कवच ), ४.२.७२.५५ ( विन्ध्यवासिनी देवी द्वारा दुर्ग दैत्य के वध के पश्चात् देवों द्वारा पठित दुर्गा कवच ), ६.२१३.८९ (जाम्बवती द्वारा साम्ब पुत्र की रक्षा हेतु पठित कृष्ण कवच ), महाभारत द्रोण ९४.६२, १०३.२०, लक्ष्मीनारायण १.९.४९ ( विष्णु से युद्ध के पश्चात् ब्रह्मा द्वारा पठित विष्णु भक्ति कवच ), १.१०५.५२ ( गणेश कवच ), १.१०६.१४ ( माली - सुमाली द्वारा व्याधि नाश हेतु पठित सूर्य कवच ), १.३३५.१२४ ( विष्णु द्वारा ब्राह्मण रूप धारण करके शङ्खचूड से कवच प्राप्त करने का उद्योग ), १.४५७.१२ ( परशुराम द्वारा शिव से प्राप्त त्रैलोक्यविजय नामक विष्णु कवच ), १.४५८.६१ ( विष्णु द्वारा परशुराम को प्रदत्त लक्ष्मी कवच ), २.६१.३६( लोमश - प्रोक्त कृष्ण कवच ) ; द्र. नारीकवच, निवातकवच, न्यास, रुक्मकवच kavacha
कवष ब्रह्म २.६९.११ ( कवष द्वारा पैलूष पुत्र को ज्ञान प्राप्ति के लिए ईशान शिव की आराधना का आदेश ; द्र. ऋग्वेद १०.३० के ऋषि कवष ऐलूष ), भागवत ९.२२.३७ ( तुर: कावषेय का जनमेजय के अश्वमेध यज्ञ का पुरोहित बनने का उल्लेख ), वा.रामायण ७.१.४( पश्चिम दिशा में निवास करने वाले ऋषियों में से एक ) । kavasha
कवष कबन्ध का उलटा है कवष, जो ब्रह्म के वश में हो गया, ब्रह्म से एकाकार हो गया । ऋग्वेद के कुछ सूक्तों (१०.३०) का ऋषि कवष ऐलूष है । इलूष का अर्थ है जिसने इल, तर्कशक्ति को भी जला दिया । - फतहसिंह
कवि ब्रह्माण्ड ३.४.१.५१ ( कवि व भूति के पुत्र भौत्य मनु का उल्लेख ), ३.४.१.८९ ( सुतार संज्ञक देवगण में से एक ), भागवत ४.१.७ ( यज्ञ व दक्षिणा के १२ पुत्रों में से एक, स्वायम्भुव मन्वन्तर में तुषित देव बनना ), ४.१.४५ ( भृगु - पुत्र, उशना / शुक्राचार्य - पिता ), ५.१.२५ ( प्रियव्रत व बर्हिष्मती के अग्नि संज्ञक १० पुत्रों में से एक, ब्रह्मचर्य व्रत का पालन ), ५.४.११ ( ऋषभ व जयन्ती के १०० पुत्रों में से एक ), ७.९.३४ ( विष्णु के नाभिकमल से प्रकट ब्रह्मा की संज्ञा ), ९.१.१२ ( श्राद्धदेव मनु व श्रद्धा के १० पुत्रों में से एक ), ९.२.१५ ( मनु के कनिष्ठ पुत्र कवि द्वारा किशोर अवस्था में परम गति की प्राप्ति का उल्लेख - कविः कनीयान् विषयेषु निःस्पृहो विसृज्य राज्यं सह बन्धुभिर्वनम् । निवेश्य चित्ते पुरुषं स्वरोचिषं विवेश कैशोरवयाः परं गतः ॥ ), ९.२१.१९ ( दुरितक्षय के तीन पुत्रों में से एक, मन्यु / भरद्वाज वंश - गर्गाच्छिनिस्ततो गार्ग्यः क्षत्राद् ब्रह्म ह्यवर्तत । दुरितक्षयो महावीर्यात् तस्य त्रय्यारुणिः कविः ॥ ), ९.२२.४० ( कविरथ : चित्ररथ - पुत्र, वृष्टिमान् - पिता, जनमेजय वंश ), १०.६१.१४ ( कृष्ण व कालिन्दी के १० पुत्रों में से एक ), १०.९०.३४ ( कृष्ण के १८ महारथी पुत्रों में से एक ), ११.२.२१(कविर्हरिरन्तरिक्षः प्रबुद्धः पिप्पलायनः । आविहोत्रोऽथ द्रुमिलश्चमसः करभाजनः ॥), ११.२.३३ ( ऋषभ मुनि - पुत्र कवि द्वारा राजा निमि को भागवत धर्म का उपदेश - मन्येऽकुतश्चिद्भयमच्युतस्य पादाम्बुजोपासनमत्र नित्यम् ।… ), मत्स्य ९.१५ ( तामस मन्वन्तर के ७ मुनियों में से एक ), ९.२१(रैवत मनु के १० पुत्रों में से एक), २०.३ ( कौशिक ऋषि के ७ पुत्रों में से एक, गर्ग ऋषि की कपिला गौ के भक्षण व ५ जन्मान्तरों का वृत्तान्त ), ४९.३९ ( उरुक्षव व विशाला के ३ पुत्रों में से एक, भरद्वाज / भरत वंश ), १४५.१०३ ( ३३ मन्त्रकर्ता अङ्गिरस ऋषियों में से एक ), वामन ९.२२ ( कवियों के शुक वाहन का उल्लेख - शुकारूढाश्च कवयो गन्धर्वाश्च पदातिनः।। ), वायु २३.२०५/१.२३.१९३ ( २३ वें द्वापर में शिव - अवतार श्वेत के ४ पुत्रों में से एक ), शिव ३.५.३४ ( २३ वें द्वापर में शिव - अवतार श्वेत के ४ पुत्रों में से एक ), हरिवंश १.२१.५ ( कौशिक ऋषि के ७ पुत्रों में से एक, गर्ग ऋषि की कपिला गौ के भक्षण व ५ जन्मान्तरों का वृत्तान्त - वाग्दुष्टः क्रोधनो हिंस्रः पिशुनः कविरेव च । खसृमः पितृवर्ती च नामभिः कर्मभिस्तथा ।। ) । kavi
कव्य ब्रह्माण्ड २.३.७२.२६ ( कव्य भक्षण करने वाले पितरों का उल्लेख ), वायु ५२.६८ ( संवत्सर रूपी पितर गण की संज्ञा ), ५६.४ ( अग्नि का एक रूप ) महाभारत आश्वमेधिक दाक्षिणात्य पृ. ६३४९ । kavya
कव्यवाहन गरुड २.२.१९.७२( राजा नग्नजित् के पूर्व जन्म में कव्यवाह होने का उल्लेख ), २.२.१९.३०( कृष्ण - पत्नी नाग्नजिती / नीला द्वारा पूर्व जन्म में कव्यवाह - पुत्री होकर तप करने का वृत्तान्त ), ३.१९.२८(नीला कन्या का पितृव्य), ३.१९.७२(कव्यवाह का नाग्निजित् रूप में जन्म लेकर नीला – पिता बनना), ब्रह्माण्ड १.२.१२.५ ( पितरों के कव्यवाहन अग्नि विशेष का उल्लेख ), मत्स्य ५१.४ ( पवमान अग्नि के पुत्र का नाम ), ५१.५ ( पितरों के कव्यवाहन अग्नि विशेष का उल्लेख ), वायु २९.४ ( पवमान अग्नि के पुत्र का नाम ), ७५.५६ ( कव्यवाहन अग्नि के लिए स्वधा इति होम मन्त्र का उल्लेख ), ११०.१० ( पिण्डदान काल में कव्यवाहन अग्नि का आवाहन ), शिव ७.१.१७.३९( पवमान - पुत्र?, पितृ प्रकृति ), लक्ष्मीनारायण ३.३२.७ ( पवमान अग्नि - पुत्र ) । kavyavaahana
कषाय ब्रह्मवैवर्त्त २.३१.३१ ( स्ववर्ण की पर - दारा से भोग करने पर कषाय तप्तोदक नरक में जाने का उल्लेख )
कशा स्कन्द ५.२.८०.४ ( राजा कल्माषपाद द्वारा वसिष्ठ - पुत्र शक्ति का कशा से ताडन व शाप प्राप्ति का वृत्तान्त )।
कशिपु भागवत २.२.४ ( क्षिति के होने पर कशिपु के निरर्थक होने का उल्लेख ) ; द्र. हिरण्यकशिपु।
कशेरु नारद १.४६.४२ ( राजा केशिध्वज द्वारा कशेरु से व्याघ्र द्वारा गौ की हत्या का प्रायश्चित्त पूछने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१६.९ ( कशेरुमान् : भारतवर्ष के ९ खण्डों में से एक ), मत्स्य ११४.८ ( वही), वामन ९०.१२ ( कशेरु देश में विष्णु का देवेश / विश्वरूप नाम से वास ), वायु ४५.७९ ( वही), विष्णु २.३.६ ( वही), हरिवंश २.६३.७ ( भौमासुर / नरकासुर द्वारा त्वष्टा - पुत्री कशेरु का हरण ) । kasheru
कश्यप अग्नि १९.१ ( अरिष्टनेमि कश्यप की अदिति, दिति, ताम्रा, कद्रू, विनता आदि भार्याओं से उत्पन्न सन्तानों का कथन ), कूर्म १.१८.८ ( कश्यप - भार्याओं से उत्पन्न सन्तानों का कथन ), १.२०.४३ ( कश्यप द्वारा राजा वसुमना को मुक्ति उपाय के विषय में स्वमत का कथन ), गणेश २.९.४ ( कश्यप आश्रम में हा हा, हू हू गन्धर्वों का आगमन, महोत्कट गणेश द्वारा अतिथियों की पंच मूर्तियों को नष्ट करने का वृत्तान्त ), गर्ग १.५.२३ ( कश्यप का वसुदेव रूप में अवतरण ), देवीभागवत २.९.४८ ( तक्षक द्वारा दंशन से राजा परीक्षित की भावी मृत्यु पर परीक्षित को पुन: जीवित करने के लिए कश्यप ब्राह्मण का गमन, तक्षक द्वारा दष्ट वृक्ष को जीवित करना व तक्षक से धन प्राप्ति पर वापस लौटने का वृत्तान्त ), ४.२.४२, ४.३.३ ( कश्यप द्वारा वरुण की गौ न लौटाने पर वरुण व ब्रह्मा के शाप से कश्यप का कृष्ण - पिता वसुदेव के रूप में जन्म तथा कश्यप - भार्याओं अदिति व सुरसा का देवकी व रोहिणी रूप में जन्म ), नारद १.११.७२ ( वामन अवतार के प्राकट्य पर कश्यप द्वारा वामन की स्तुति ), पद्म १.१९.२४३ ( हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति व मृणाल चोरी पर कश्यप की प्रतिक्रिया ), २.६.२३+ ( श्रीहरि द्वारा कालनेमि आदि दनु - पुत्रों के वध पर कश्यप द्वारा शोक संतप्त दनु व दिति भार्याओं को सान्त्वना देना तथा पञ्च तत्त्वों से मैत्री करने के कारण आत्मा के दुःख सागर में पडने के दृष्टान्त का वर्णन करना ), ५.१०.३८ ( राम के अश्वमेध में कश्यप की दक्षिण द्वार पर स्थिति का उल्लेख ), ५.९९.५+ ( विषयों में आसक्त राजा महीरथ के पुरोहित कश्यप द्वारा राजा को प्रतिबोधन, विषयों के प्रति अनुराग उत्पन्न करने वाली कपाल में स्थित कृमियों का वर्णन, पाप से मुक्ति के लिए राजा को वैशाख मास में स्नान, दान आदि का परामर्श ), ६.१३५.१ ( कश्यप द्वारा तप से शिव से साभ्रमती गङ्गा की प्राप्ति ), ६.१६४.१ ( कश्यप ह्रद का माहात्म्य : कश्यप ह्रद में कुशेश्वर शिव की स्थिति, कश्यप द्वारा तप से काश्यपी गङ्गा का अवतारण ), ब्रह्म २.१३.३ ( कश्यप द्वारा प्रमति - पुत्र भौवन नामक यजमान द्वारा एक साथ दस अश्वमेधों के अनुष्ठान योग्य भूमि के अन्वेषण का वृत्तान्त ), २.३०.४ ( बालखिल्यों द्वारा प्रेरित करने पर कश्यप प्रजापति द्वारा कद्रू व सुपर्णा भार्याओं से इन्द्र दर्पहर पुत्रों को जन्म देने का उद्योग, गर्भवती भार्याओं के संकटग्रस्त होने पर गौतमी नदी के सेवन से भार्याओं की मुक्ति कराने का उद्योग ), २.५४.१२ ( कश्यप द्वारा दिति भार्या को लोक विजेता पुत्र हेतु गर्भ धारण कराना व दिति को पालनीय व्रत का उपदेश ), २.५४.८२ ( इन्द्र द्वारा दिति के गर्भ छेदन पर कश्यप द्वारा दिति के गर्भ की शान्ति व इन्द्र पुत्र के दोष की निवृत्ति के लिए गौतमी तट पर शिव की आराधना ), ब्रह्मवैवर्त्त २.५१.१८ ( सुयज्ञ नृप द्वारा अतिथि के तिरस्कार पर कश्यप द्वारा व्यक्त प्रतिक्रिया ), ३.१८.८ ( शिव द्वारा कश्यप - पुत्र सूर्य का शूल से ताडन व वध करने पर कश्यप द्वारा शिव को पुत्र के शिर छेदन का शाप ), ब्रह्माण्ड १.२.३२.९८ ( तप से ऋषिता प्राप्त करने वाले ऋषियों में से एक ),१.२.३२.११२ ( ६ ब्रह्मवादी काश्यप ऋषियों का उल्लेख ), १.२.३५.९५ ( देवर्षिगण में कश्यप - पुत्रों नारद व पर्वत का उल्लेख ), २.३.१.५३ ( प्रजापतियों में से एक ), २.३.१.१२१ ( कश्यप नाम प्राप्ति का कारण व निरुक्ति : मद्यपान व हास ), २.३.३.५५ ( कश्यप की १४ भार्याओं के नाम ), २.३.३.८४, २.३.३.१०५ ( ब्रह्मा के राजसी तनु से मारीच कश्यप का जन्म ), २.३.४.३४ ( कश्यप - भार्या अदिति से साध्यों के अंशरूप १२ आदित्यों के जन्म का उल्लेख ), २.३.५.४ ( कश्यप के अश्वमेध यज्ञ में सौत्य दिन में अतिरात्र में दिति से हिरण्यकशिपु का जन्म ), २.३.७१.२३८ ( कश्यप के ब्रह्मा का अंश व अदिति के पृथ्वी का अंश होने का उल्लेख ), २.३.७.४६५ ( कश्यप की अदिति आदि भार्याओं की प्रकृतियों का कथन ), २.३.८.२७ ( पुत्र उत्पत्ति के पश्चात् कश्यप द्वारा गोत्रकार पुत्रों की उत्पत्ति के लिए तप, वत्सार व असित पुत्रों को जन्म देना, वंश वर्णन ), २.३.४७.५४ ( परशुराम द्वारा यज्ञ के पश्चात् काश्यप को भूमि दान करने के कारण भूमि की काश्यपी संज्ञा होना ), ३.४.१.२० ( सुखा संज्ञक गण के २० देवों का मारीच कश्यप के पुत्र बनने का उल्लेख ), भविष्य ३.४.१०.६३ ( सूर्य का क्रमश: कश्यप व मरीचि बनने का उल्लेख, कश्यप की निरुक्ति ), ३.४.२१.१३ ( कलियुग में कश्यप के कण्व व आर्यावती के पौत्रों के रूप में जन्म का उल्लेख ), ३.४.२५ ( कलियुग में कश्यप का कल्कि अवतार के पिता विष्णुयशा रूप में अवतरण ), भागवत ३.१४.७ ( कामातुर दिति का कश्यप पति से कुसमय में गर्भ धारण करने व हिरण्यकशिपु व हिरण्याक्ष पुत्रों को जन्म देने का वृत्तान्त ), ४.१.१३ ( मरीचि ऋषि व कर्दम - कन्या कला से कश्यप का जन्म ), ८.१६.२४ ( कश्यप द्वारा अदिति भार्या को पुत्र प्राप्ति हेतु पयोव्रत का उपदेश ), ९.१६.२२ ( कश्यप द्वारा परशुराम से दक्षिणा में मध्य भूमि प्राप्त करने का उल्लेख ), १०.७४.९ ( युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के ऋत्विजों में से एक ), १२.६.११ ( परीक्षित - तक्षक प्रसंग में कश्यप ब्राह्मण की भूमिका का उल्लेख ), १२.७.५ ( पुराणों के ६ आचार्यों में से एक ), १२.११.४१ ( मार्गशीर्ष मास में सूर्य रथ व्यूह में स्थित ऋषि ), मत्स्य ६.१ ( कश्यप की १३ भार्याओं की सन्तानों का वर्णन ), ४७.९ ( कश्यप के ब्रह्मा का अंश व अदिति के पृथ्वी का अंश होने का उल्लेख ), १४५.९२ ( तप से ऋषिता प्राप्त करने वाले ऋषियों में से एक ), १४६.१६ ( कश्यप द्वारा भार्याओं के रूप में प्राप्त दक्ष की १३ कन्याओं के नाम ), १४६.३८ ( इन्द्र द्वारा दिति के गर्भ छेदन के पश्चात् दिति द्वारा कश्यप से वज्राङ्ग पुत्र को जन्म देना, वज्राङ्ग द्वारा इन्द्र के बन्धन पर कश्यप द्वारा इन्द्र को मुक्त कराना ), १७१.३० ( कश्यप द्वारा भार्याओं के रूप में प्राप्त दक्ष की १२ कन्याओं के नाम ), १९९.१ ( कश्यप कुल के गोत्र प्रवर्तक ऋषियों का वर्णन ), वायु ६५.५३ ( प्रजापतियों में से एक ), ६५.११४ ( कश्यप नाम प्राप्ति का कारण व निरुक्ति : मद्यपान व हास ), ८४.२६ ( त्वष्ट्रा द्वारा अण्ड के द्वैधा विदारण पर कश्यप का दुखी होना व मार्तण्ड नाम देने का उल्लेख ), १११.५०/२.४९.५९( कश्यप पद पर श्राद्ध से पितरों को ब्रह्मलोक प्राप्ति का उल्लेख ), १११.५७/२.४९.६८( भारद्वाज द्वारा कश्यप पद पर श्राद्ध करने पर दो हस्तों के प्रकट होने का वृत्तान्त ), विष्णु १.१५.१२६ ( तुषित संज्ञक देवगण का कश्यप व अदिति के १२ आदित्य पुत्र बनना ), १.२१ ( कश्यप की दनु आदि पत्नियों की सन्तानों का वर्णन ), विष्णुधर्मोत्तर १.११५ ( मरीचि - पुत्र कश्यप के कुल के गोत्रकार ऋषियों का वर्णन ), ३.७३.२ ( भार्याओं सहित कश्यप की मूर्ति के स्वरूप का कथन ), ३.३४४.२ ( बलि द्वारा इन्द्र के राज्य के हरण पर कश्यप द्वारा विष्णु की स्तुति, विष्णु का कश्यप - पुत्र वामन रूप में अवतार, कश्यप - कृत स्तुति का वर्णन ), शिव ३.१८.३ ( दैत्यों से पीडित देवों की रक्षा हेतु कश्यप द्वारा काशी में तप व शिव की स्तुति, शिव का कश्यप व सुरभि के एकादश रुद्र पुत्रों के रूप में जन्म लेना ), ५.४.२९ ( शिव माया से प्रेरित कश्यप द्वारा धन्व नृपति की कन्या मांगने का उल्लेख ),५.३२ ( कश्यप - भार्याओं से उत्पन्न पुत्रों का वर्णन ), ५.३४.४० ( दशम मन्वन्तर के ऋषियों में से एक ? ), ५.३४.५१ ( ११वें मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), ७.२.४.५३ ( कश्यप : कालनाशक शिव का रूप ), स्कन्द १.२.४५.१०९ ( गरुड व कश्यप द्वारा सह्य पर्वत पर लिङ्ग स्थापित करने का उल्लेख ), ३.२.२३.१० ( कश्यप का धर्मारण्य में ब्रह्मा के सत्र में होता बनना ), ४.१.१७.६९( मारीच कश्यप से सूर्य/विवस्वान्/मार्तण्ड के जन्म का कथन ), ५.१.४६.१२ ( मरीचि से कश्यप की उत्पत्ति का उल्लेख ; मारीच कश्यप द्वारा अदिति भार्या सहित तप व वरदान प्राप्ति का वर्णन ), ५.३.४०.६ ( मरीचि - पुत्र कश्यप द्वारा दक्ष - पुत्री अदिति की पत्नी रूप में प्राप्ति व प्रजापति आदि बनने का कथन ), ६.३२.४० ( हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति पर कश्यप द्वारा अर्थ परिग्रह की निन्दा ), ७.१.२१.३ ( कश्यप की १३ भार्याओं में अदिति व दिति के पुत्रों का वृत्तान्त ), ७.१.२३.९६ ( चन्द्रमा के यज्ञ में कश्यप का प्रस्तोता ऋत्विज बनना ), ७.१.२१३.१ ( कश्यपेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : पातक नाशक ), ७.१.२५५.२५ ( हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति पर कश्यप द्वारा अर्थ संचय की निन्दा ), ७.१.२५५.५१ ( बिस चोरी पर कश्यप द्वारा व्यक्त प्रतिक्रिया ), ७.४.१७.२८ ( कश्यप की द्वारका के पश्चिम द्वार पर स्थिति ), हरिवंश १.५५.२१ ( कश्यप द्वारा वरुण पुत्र की गायों पर अधिकार कर लेने पर ब्रह्मा द्वारा कश्यप को वसुदेव रूप में पृथ्वी पर जन्म लेने का शाप ), २.७२.२१ ( पारिजात हरण प्रसंग में कृष्ण व इन्द्र के युद्ध की शान्ति हेतु कश्यप द्वारा शिव की स्तुति ), २.९१.१८, २.९६.१ ( कश्यप द्वारा असुरराज वज्रनाभ को इन्द्र से शत्रुता न करने का परामर्श, वज्रनाभ द्वारा परामर्श की उपेक्षा करने पर मृत्यु को प्राप्त होना ), ३.७१.५० ( वामन के विराट रूप में कश्यप के पुंस्त्व होने का उल्लेख ), ३.१०६.१७+ ( हंस व डिम्भक वीर भ्राताओं द्वारा कश्यप ऋषि के वैष्णव सत्र का दर्शन ), योगवासिष्ठ ६.१.१२८.१०( उपस्थ में कश्यप का न्यास ), लक्ष्मीनारायण १.३३६.६७ ( कश्यप की १३ भार्याओं से उत्पन्न पुत्रों के नाम व भार्याओं की प्रकृति ), १.४६३ ( कश्यप की कद्रू व विनता भार्याओं की सन्तति का वर्णन, कश्यप द्वारा गरुड पुत्र को क्षुधा निवृत्ति के लिए निषादों व मत्स्यों के भक्षण तथा विप्रों के अभक्षण का निर्देश ), १.५४३.७० ( दक्ष द्वारा कश्यप को अर्पित १३ कन्याओं के नाम ), २.१०४.२५ ( काश्मीर में काश्यपी प्रजा होने का उल्लेख ), ३.९५.७९ ( कश्यप व अदिति द्वारा प्रणद्ब्रह्म मुनि की सेवा करने पर प्रणद्ब्रह्म मुनि द्वारा कश्यप को प्रजापति होने आदि का वरदान ), कथासरित् ६.२.७४ ( कश्यप - पुत्र वत्स के सुलोचना से विवाह का वृत्तान्त ), ८.२.३६२ ( मय का सूर्यप्रभ व सुनीथ पुत्रद्वय सहित पिता कश्यप के दर्शन को जाना, कश्यप द्वारा इन्द्र कोप से मय की रक्षा व मय को वरदान देना आदि ), ८.३.२१९ ( कश्यप द्वारा नमुचि असुर व देवों के बीच सन्धि कराना ), १६.३.२ ( कश्यप द्वारा राजा नरवाहनदत्त को तारावलोक नामक राजपुत्र द्वारा दानपारमिता के प्रभाव से विद्याओं का साम्राज्य प्राप्त करने का वृत्तान्त सुनाना ), १७.१.३ ( असित पर्वत पर कश्यप के आश्रम में विद्याधरों के चक्रवर्ती राजा नरवाहनदत्त का निवास ), १८.१.३ ( वही), कृष्णोपनिषद २१( कश्यप उलूखल का रूप ) । kashyapa
कश्यप कश्यं पाति इति कश्यप । कश धातु प्रकाश के अर्थ में है । प्रकाश में लाने योग्य वस्तु - ब्रह्मवीर्य, ब्रह्मबल, उसका पालन करने वाला कश्यप कहलाता है । इन्द्रियों को भीतर ले जाकर देखने वाला, समाधि में, पश्यक कहलाता है । समाधि की ओर आरोहण करता हुआ जीवात्मा कश्यप कहलाता है । समाधि से व्युत्थान की अवस्था में वह मारीच कश्यप कहलाता है, मरीचियों, किरणों से युक्त । कश्यप दैवी और आसुरी, दोनों वृत्तियों का पालक है । - फतहसिंह
कसेरु शिव ५.१८.४ ( भारत के ९ खण्डों में से एक ? ) ; द्र. कशेरु
कहोड नारद १.९१.१०९ ( कहोल : मृत्युञ्जय मन्त्र के ऋषि ), पद्म ६.१३९.२७ ( साभ्रमती तट पर अग्निपाल तीर्थ में कहोड द्वारा कुकर्दम राजा के प्रेत की मुक्ति का उद्योग ), ६.१५७.१० ( दधीचि - पुत्र पिप्पलाद का उपनाम, कहोड द्वारा कोल असुर के वधार्थ कृत्या को उत्पन्न करना ), ब्रह्माण्ड १.२.३३.१६ ( मध्यमाध्वर्युओं में से एक ) । kahoda
टिप्पणी : कहिक: टोपी से कहोड शब्द की व्युत्पत्ति - लक्षु सिद्धान्त कौमुदी ।