कपिला अग्नि ७७.१ ( कपिला गौ पूजा की विधि ), ३८३.१८ ( ज्येष्ठ पुष्कर में १०० कपिला दान के फल का अग्नि पुराण पठन फल के तुल्य होने का उल्लेख ), कूर्म २.४१.९३ ( कपिला तीर्थ का माहात्म्य ), नारद १.४५.८ ( कपिली ब्राह्मणी का दुग्धपान करने से पञ्चशिख मुनि की कापिलेय संज्ञा होना, पञ्चशिख - जनक संवाद में सांख्य योग का प्रतिपादन ), १.६५.२६( अग्नि की १० कलाओं में से एक ), २.२२.७६ ( आमिष त्यागी के लिए कपिला गौ दान का निर्देश ), पद्म २.१९ ( कपिला - रेवा सङ्गम पर सोमशर्मा द्वारा तप व विष्णु के दर्शन ), ३.१३.३६ ( नर्मदा के दक्षिण में स्थित कपिला नदी का माहात्म्य ), ३.२०.४ ( नर्मदा तटवर्ती कपिला तीर्थ का माहात्म्य ), ३.२६.४३ ( कुरुक्षेत्र के अन्तर्गत कपिला तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ब्रह्म २.७१ ( पृथु द्वारा कपिला गौ का दोहन, कपिला का नदी बनकर गौतमी से सङ्गम होना ), २.८५ ( अङ्गिरसों द्वारा आदित्यों से दुष्ट भूमि के बदले कपिला गौ का विनिमय करना ), ब्रह्माण्ड २.३.७.१३८ ( खशा - पुत्री, कुम्भ - भार्या, कापिलेय राक्षसगण - माता ), भविष्य ४.१६१ ( कपिला गौ दान का माहात्म्य ), मत्स्य १३.३३ ( महालिङ्ग तीर्थ में कपिला नाम से सती का वास ), १९१.७२ ( नर्मदा के तटवर्ती कपिला तीर्थ में कपिला गौ दान का संक्षिप्त माहात्म्य ), वराह १११+ ( कपिला धेनु दान का माहात्म्य व कपिला गौ के प्रकार ), वायु ६९.१७० ( खशा की ७ कन्याओं में से एक, कुम्भ दैत्य से कापिल दैत्य राक्षसों को उत्पन्न करना ), १०८.५७ ( गया तीर्थ के अन्तर्गत कपिला नदी में स्नान व श्राद्ध का संक्षिप्त माहात्म्य ), विष्णु ६.८.५४ ( विष्णु पुराण के १० अध्यायों का श्रवण करने से कपिला गौ दान के फल की प्राप्ति ), स्कन्द ४.२.६२.४७ ( काशी में गोलोक से अवतरित पांच गायों के दुग्ध से निर्मित कपिला ह्रद का माहात्म्य ), ४.२.९७.१९ ( कपिला ह्रद का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.१.३५.१ ( स्वर्ण क्षुर तीर्थ में स्नान से १०० कपिलाओं के दान के फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.२१.५५ ( नर्मदा के दक्षिण तटवर्ती कपिला नदी का माहात्म्य : कपिल के तप का स्थान ), ५.३.३९ ( ब्रह्मा के अग्निकुण्ड से कपिला का प्राकट्य, ब्रह्मा द्वारा स्तुति, कपिला गौ के शरीर में देवों की स्थिति का वर्णन ), ५.३.२१.५५ ( नर्मदा के दक्षिण तीर पर स्थित कपिला नदी के माहात्म्य का कथन ), ५.३.२१.७१ ( कपिला नदी के उद्भव के कारण का कथन : पार्वती के वस्त्र निष्पडीन आदि से उत्पत्ति ), ५.३.२२.३३ ( कपिला नदी के विशल्या नाम का कारण : कपिला में स्नान से कुमार अग्नि का शल्य रहित होना ), ५.३.८५.८५ ( कपिला दान से सात जन्मों के पापों के नाश का उल्लेख ), ५.३.११९.३ ( नर्मदा तट पर कपिला दान आदि के माहात्म्य का कथन ), ५.३.१९८.७० ( महालिङ्ग तीर्थ में उमा की कपिला नाम से स्थिति का उल्लेख ), ७.१.३५.६५ ( ब्रह्मा द्वारा उत्पन्न सरस्वती - सखियों में से एक नदी ), ७.१.३४३ ( कपिल द्वारा आहूत नदी, कपिला षष्ठी व्रत विधि व माहात्म्य ), ७.३.२९ ( कपिला तीर्थ का माहात्म्य : व्याघ्र रूपी सुप्रभ राजा की कपिला गौ से संवाद से मुक्ति ), हरिवंश २.७६.१२ ( नारद द्वारा कपिला गौ को पाकर कृष्ण को बन्धन मुक्त करना ), महाभारत आश्वमेधिक ९२ दाक्षिणात्य पृ. ६३४४, लक्ष्मीनारायण १.२४२.५५ ( कपिला ब्राह्मणी द्वारा भूलोक में अन्नदान न करने के कारण वैकुण्ठ में क्षुधाग्रस्त रहना, षट्-तिला एकादशी व्रत के पुण्य की प्राप्ति से शान्ति ), १.५५०.६ ( कपिला तीर्थ व कपिला षष्ठी का माहात्म्य ), १.५६२.१८ ( राजा वसुदान द्वारा यज्ञ के पश्चात् त्रिदेवों के अभिषेक जल व गायों के मूत्र प्रवाह आदि प्रवाह से कपिला नदी का प्राकट्य ), १.५६४.१०५ ( त्रिनेत्रा कपिला नदी द्वारा राजा धुन्धुमार को दर्शन, समस्त कामों की पूर्ति करना ), कथासरित् १४.४.२९ ( देवरक्षित ब्राह्मण की कपिला गौ द्वारा नागस्वामी ब्राह्मण की योगिनी से रक्षा का वृत्तान्त ) । kapilaa
कपिलाश्व भागवत ९.६.२३ ( धुन्धु की मुखाग्नि से सुरक्षित बचे कुवलाश्व के तीन पुत्रों में से एक ), मत्स्य १२.३२ ( कुवलाश्व / धुन्धुमार के तीन पुत्रों में से एक ), शिव ५.३७.३९ ( कुवलाश्व - पुत्र, धुन्धु राक्षस के कोप से अप्रभावित ३ पुत्रों में से एक ) ।
कपिश मत्स्य ६.१७ ( कश्यप व दनु के १०० दानव पुत्रों में से एक ), कथासरित् १२.६.३३ ( कपिशभ्रू : सौदामिनी - सखी, सौदामिनी - पति अट्टहास को नडकूबर से प्राप्त शाप का वृत्तान्त सखी से बताना ) ।
कपिशा ब्रह्माण्ड २.३.७.१७२, २.३.७.३७४ ( कपिशा द्वारा कूष्माण्ड से १६ पिशाच मिथुनों की उत्पत्ति, मिथुनों के नामोल्लेख ), वायु ६९.२०५ ( पुलह व क्रोधा की १२ कन्याओं में से एक ), ६९.२५७ ( कपिशा द्वारा कूष्माण्ड से १६ पिशाच मिथुनों की उत्पत्ति, मिथुनों के नाम ), विष्णुधर्मोत्तर १.१९८.१ ( कपिशा - पुत्रों अज व षण्ड पिशाचों का वृत्तान्त ) । kapishaa
कपिष्ठल पद्म ३.२६.७० ( कपिष्ठल के केदार की यात्रा का संक्षिप्त माहात्म्य ) ।
कपीवान शिव ५.३४.२४ ( चतुर्थ मन्वन्तर में सप्त ऋषियों में कपीतम, कपीवान आदि का उल्लेख ) ।
कपोत अग्नि ३४१.१७ ( संयुत कर के १३ प्रकारों में से एक ), गरुड १.२१७.२७ ( काष्ठ हरण से कपोत योनि की प्राप्ति का कथन ), नारद १.५६.७५३ ( दिन में कपोतों के कोलाहल की उत्पात के अन्तर्गत गणना ),पद्म ६.१६२ ( कापोती तीर्थ का माहात्म्य : श्येन अतिथि हेतु कपोत द्वारा शरीर का उत्सर्ग ), ब्रह्म २.१०.२२ ( कपोती का लुब्धक के जाल में बन्धन, लुब्धक अतिथि की सेवा हेतु कपोत का अग्नि में प्रवेश ), २.५५ ( अनुह्राद कपोत की पत्नी हेति का अग्नि - उपासक उलूक परिवार से युद्ध, कपोती द्वारा अग्नि की शरण लेने पर युद्ध की शान्ति का वर्णन ), ब्रह्माण्ड २.३.१३.५४ ( ब्रह्मा द्वारा वेद रूपी शिरों से पुष्प नामक कपोतों की सृष्टि ), भविष्य २.२.२.३१ ( लक्ष्मी का वाहन चित्र कपोत ), ३.३.९.४७ ( हरिणी नामक अश्वी द्वारा उच्चैःश्रवा अश्व के वीर्य से कपोत नामक अश्व पुत्र को जन्म देना ), ३.३.११.५० ( सुखखानि का कपोत हय पर आरूढ होकर नभ मार्ग से पृथ्वीराज पर आक्रमण करना ), ३.३.२५.५१ ( बलखानि द्वारा कपोत हय पर आरूढ होकर पृथ्वीराज द्वारा निर्मित १२ गर्तों को पार करने का प्रयास, १३वें गुप्त गर्त में गिरने से कपोत व बलखानि की मृत्यु ), भागवत १.१४.१४ ( कपोत का मृत्युदूत विशेषण ), ११.७.३३, ११.७.५३ ( दत्तात्रेय योगी द्वारा कपोत परिवार के लुब्धक के जाल में फंसकर नष्ट होने से आसक्तिहीन होने की शिक्षा की प्राप्ति ), मत्स्य ६.३२ ( ताम्रा - पुत्री गृध्री द्वारा कपोतों आदि को जन्म देना ), मार्कण्डेय १५.४ ( भ्रातृ - पत्नी की अवमानना करने पर कपोत योनि की प्राप्ति ), ७१.१७ ( मनोरमा - पति नागराज कपोतक द्वारा उत्तम मनु की पत्नी बहुला का हरण, कपोतक - पुत्री सुनन्दा द्वारा बहुला को छिपा देने पर कपोतक द्वारा सुनन्दा को मूक होने का शाप ), विष्णुधर्मोत्तर १.२४८.३२ ( गरुड के पुत्रों में से एक ), स्कन्द १.१.१८.५ ( बलि द्वारा स्वर्ग पर आक्रमण करने पर निर्ऋति देवता का कपोत रूप धारण करके पलायन ), २.२.१३.१० ( शिव द्वारा कपोत सदृश सूक्ष्म रूप धारण करके कुशस्थली में श्री हरि की आराधना, कपोतेश्वर का माहात्म्य ), ३.३.४.२६ ( कपोती की शिव मन्दिर में मृत्यु से कपोती का जन्मान्तर में राजमहिषी बनना ), ४.१.४५.३७ ( कपोतिका : ६४ योगिनियों में से एक ), ४.२.७६ ( पारावत व पारावती द्वारा त्रिलोचन लिङ्ग की प्रदक्षिणा से क्रमश: विद्याधर - पुत्र परिमलालय व नागकन्या रत्नावली के रूप में जन्म ), महाभारत वन १३०.२३( राजा शिबि की परीक्षा हेतु अग्नि द्वारा कपोत व इन्द्र द्वारा श्येन रूप धारण ), १९७, शान्ति १४३, अनुशासन ३२, लक्ष्मीनारायण १.६९.१ ( १० कपोतों का कथा उपरान्त उच्छिष्ट भोजन खाकर जाति स्मरण करना, कपोतों के पूर्व जन्म का वृत्तान्त, कपोत से सुपोत बनना ), १.८३.२८( कपोतिका : ६४ योगिनियों में से एक ), १.५८६.४ ( शिव द्वारा कपोत की भांति सूक्ष्म होकरश्री हरि की आराधना , आराधना स्थल पर इन्द्रद्युम्न द्वारा अश्वमेध यज्ञ स्थल का निर्माण ), कथासरित् १.७.८८ ( राजा शिबि की कथा : श्येन रूप धारी इन्द्र द्वारा कपोत रूपी धर्म का पीछा, शिबि द्वारा कपोत के बदले स्व मांस अर्पित करना ) । kapota
कपोल विष्णुधर्मोत्तर १.४२.९( कपोलों की मधूक पुष्प से उपमा ), १.४२.२२( कपोलों में ज्योत्स्ना देवी की स्थिति का उल्लेख ), शिव ५.३२.२६ ( कश्यप व दनु के पुत्रों में से एक ) ।
कफल्ल भविष्य ३.२.४.५३ ( पिशाच द्वारा जारासक्त जयलक्ष्मी की नासिका दंशन होने पर जयलक्ष्मी द्वारा पति श्रीदत्त पर दोषारोपण, कफल्ल चोर द्वारा रात्रि में दृष्ट घटना का राजा से वर्णन करके श्रीदत्त की रक्षा करना ) ।
कबन्ध गरुड ३.९.७(७ आवरणों में प्रथम), ब्रह्माण्ड १.२.२०.१६ ( प्रथम अधोतल में कबन्ध असुर के मन्दिर का उल्लेख ), १.२.३५.५६ ( सुमन्तु -शिष्य, पथ्य व देवदर्श - गुरु ), भागवत ९.१०.१२ ( राम द्वारा कबन्ध वध का उल्लेख ), वायु ५०.१६ ( प्रथम अधोतल / पाताल में कबन्ध असुर के भवन का उल्लेख ), ६१.५० ( सुमन्तु -शिष्य, पथ्य व वेदस्पर्श - गुरु ), विष्णु ४.४.९६ ( राम द्वारा कबन्ध वध का उल्लेख ), वा.रामायण ३.७०+( राक्षस, स्वरूप का वर्णन, राम द्वारा दाह, पूर्व जन्म का वृत्तान्त ), ३.७१ ( स्थूलशिरा ऋषि के शाप से राक्षस बनना, इन्द्र के वज्र से विकृति की प्राप्ति, दाह के पश्चात् राम का मार्गदर्शन करना ), ४.४.१५ ( दनु नामक राक्षस का रूप ), कथासरित् १२.१३.८(शुद्धपट रजक - पुत्री व धवल - भार्या मदनसुन्दरी द्वारा भ्राता व पति के कटे हुए सिरों को भूल से एक दूसरे के कबन्धों से जोड देने का वृत्तान्त), १४.३.१०४ ( युद्ध में रक्त रूपी नदियों में कबन्ध की ग्राह से उपमा ) । kabandha
Remarks on Kabandha by Dr. Fatah Singh-
कबन्ध क अर्थात् प्रजापति जो अनिर्वचनीय है । जिसने क को बांध रखा है , वह कबन्ध है । हमारा यह स्थूल देह ही कबन्ध है । रामायण के कबन्ध का मुख उसके उदर में है । पेट, भक्षण ही उसके लिए सब कुछ है । कं ब्रह्म खं ब्रह्म तभी बनेगा जब कबन्ध रूपी देह को राम - लक्ष्मण अग्नि में जला देंगे । तब यह सीता प्राप्ति का उपाय बताएगा । - फतहसिंह
कबीर भविष्य ३.४.१७.३७ ( धान्यपाल वैश्य - पुत्र, अलिक म्लेच्छ द्वारा पालन, रामानन्द - शिष्य, अनिल नामक द्विज का अवतार ) ।
कब्र द्र. अवट
कमठ गणेश २.८७.३६ ( गणेश द्वारा कमठासुर का वध ), नारद १.६६.११२( कूर्मेश की शक्ति कमठी का उल्लेख ), भागवत १.३.१६ ( विष्णु द्वारा समुद्रमन्थन काल में कमठ / कच्छप रूप धारण करके मन्दराचल को धारण करना ), स्कन्द १.२.४९.२५+ ( हारीत के अष्टवर्षीय पुत्र कमठ द्वारा अतिथि सूर्य के प्रश्नों के उत्तर देना, भोजन के तत्त्वों का निरूपण, देह की उत्पत्ति का वर्णन, देह में स्थित लोकों, नाडियों का वर्णन, जीव की पारलौकिक गति, पापकर्म अनुसार फल का वर्णन, जयादित्य की स्थापना ), ४.२.६१.२०७ ( विष्णु के ३० कमठ रूपों का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.५१९.८९ ( मानसरोवर स्थित चिरजीवी कमठ / कच्छप से इन्द्रद्युम्न राजा का संवाद )। kamatha
कमण्डलु गणेश २.१०८.१ ( गणेश के ब्रह्मकमण्डलु नदी में स्नान का उल्लेख ), गरुड xxx /२.४.९, २.४.२२(कमण्डलु दान से निर्जल प्रदेश में सुखी होने का उल्लेख), २.८.१६ / २.१८.१६ ( प्रेत के आठ पदों के रूप में छत्र, उपानह, कमण्डलु आदि का उल्लेख ), ब्रह्म २.३.२६ ( शिव - पार्वती विवाह में शिव द्वारा भूमि को कमण्डलु का रूप देकर ब्रह्मा को प्रदान करना ; कमण्डलु की महिमा ), भविष्य २.२.९.२०( कमण्डल गोत्र के ३ प्रवरों के नाम ), भागवत ८.२१.४ ( ब्रह्मा द्वारा वामन उरुक्रम के पाद प्रक्षालन से कमण्डलु में स्थित जल का गङ्गा में रूपान्तरित होना ), मत्स्य २४५.८६ ( वसिष्ठ द्वारा वामन त्रिविक्रम को कमण्डलु भेंट करना ), वामन ५७.१०३ ( कुटिला द्वारा कार्तिकेय को कमण्डलु भेंट करना ), ८९.४७( बृहस्पति द्वारा वामन को कमण्डलु प्रदान का उल्लेख), वायु १०१.२७३ ( शिव का शतकुम्भमय कमण्डलु ) । kamandalu
कमल गणेश १.८३.३ ( मयूरेश्वर गणेश द्वारा कमलासुर का वध ), २.७६.१२ ( विष्णु व सिन्धु असुर के युद्ध में कमल का यक्षराज से युद्ध ), २.१०१.१२( शङ्कासुर - भ्राता, अश्वारूढ होकर गणेश से युद्ध, गणेश द्वारा पाश, शूल आदि से वध ), २.१०३.२१ ( गणेश के स्तोत्र में कमल शब्दों द्वारा स्तुति ), गरुड २.३०.५४/२.४०.५४( मृतक की नाभि में कमल देने का उल्लेख ), गर्ग २.२०.३३ ( कृष्ण द्वारा कमल पुष्पों से निर्मित यष्टि धारण ), नारद १.११६.१४ ( वैशाख शुक्ल सप्तमी को कमल व्रत की विधि ), पद्म १.२१.२७८ ( कमल सप्तमी व्रत ), ६.१६.१९ ( जालन्धर के भय से पार्वती का कमल / सरोज में प्रवेश करना, पार्वती - सखियों का कमल में भ्रमरियां बनना ), भविष्य १.१४८.९( कालमय चक्र के कमल नाम से अभिहित होने का कारण ), ३.४९ ( कमल षष्ठी व्रत विधि ), ४.५० ( कमल सप्तमी व्रत विधि ), ४.८५.२०( राजा पुष्पवाहन द्वारा ब्रह्मा से काञ्चन कमल की प्राप्ति के कारण की कथा ), भागवत ११.१४.३६( हृदय कमल के अधोमुखी होने तथा उसमें से ऊर्ध्वमुखी अष्टदल कमल के विकसित होने का उल्लेख ), मत्स्य ७८ ( कमल सप्तमी व्रत की विधि ), शिव ३.१७.११( शिव के १० अवतारों में से दशम अवतार का नाम ), ५.५१.४८ ( उमा देवी को पुष्पों में कमल अधिक प्रीतिकर होने का उल्लेख ), स्कन्द ३.१.९.५३ ( अशोकदत्त द्वारा वेतालों से सुवर्ण कमलों की प्राप्ति की कथा ), लक्ष्मीनारायण १.३०८.११८( अधिक मास द्वितीय पक्ष की प्रतिपदा को व्रतादि से राजा सहस्राक्ष द्वारा वैराज पद प्राप्ति तथा ब्रह्मा के मूल नाभि कमल बनने का वृत्तान्त ), १.५४१.७ ( नन्द द्वारा अङ्गुष्ठ मात्रपुरुष / ब्रह्म से युक्त पद्म को ग्रहण करने की चेष्टा पर कृष्णता प्राप्ति की कथा ), २.१४०.८१( कमलकन्द प्रासाद के लक्षण ),३.२००.३८ ( भाण्डीरपुर में कमलायन साधु द्वारा कालीन्दर भक्त को वैष्णव भक्तों के सत्संग का उपदेश ), कथासरित् ५.२.२१२ ( अशोकदत्त द्वारा अपनी सास व राक्षसों से सुवर्णकमल प्राप्त करने की कथा ), ७.६.४३ ( कमलप्रभा : राजा विनयशील की भार्या, भार्या से चिरकाल तक रमण करने पर राजा को जरावस्था की प्राप्ति ), ७.६.८४ ( नर कंकाल से पतित जल बिन्दुओं के स्वर्ण कमल बनने की कथा ), ९.२.३६७ ( कमलवती : राजा समरवर्मा की पुत्री, समुद्रवर्मा की पत्नी ), ९.६.४ ( कमलपुर के राजा कमलवर्मा के राज्य में चन्द्रस्वामी ब्राह्मण का वृत्तान्त ), १२.२.१६१ ( कमलोदय नामक तरुण ब्राह्मण पर लावण्यमञ्जरी कन्या की आसक्ति की संक्षिप्त कथा ), १२.४.६७ ( राजा विमलाकर के पुत्र कमलाकर द्वारा हंसावली कन्या को प्राप्त करने का वृत्तान्त ), १२.५.२४ ( प्रतीहार कमलमति के पुत्र विनीतमति का वृत्तान्त ), १२.६.४१७ ( पथ्या व अबला - पति कमलगर्भ ब्राह्मण के जन्मान्तरों का वृत्तान्त ), १२.२८.१९ ( राजपुरोहित - पुत्र कमलाकर व अनङ्गमञ्जरी की परस्पर आसक्ति, मिलन होने पर प्राण त्याग की कथा ), १४.२.२४ ( नागस्वामी ब्राह्मण द्वारा योगिनी से भिक्षा में रक्तकमल की प्राप्ति, कमल का नरहस्त बनना आदि ), १८.४.२५२ ( देवस्वामी ब्राह्मण - कन्या कमललोचना के कुसुमायुध से विवाह का वृत्तान्त ) ; द्र. पद्म, पुण्डरीक । kamala
टिप्पणी : कमल पुष्प अष्टधा प्रकृति ( पञ्चभौतिक तत्त्व और मन, बुद्धि व अहंकार ) से बने जड चेतना जगत का प्रतीक है और जिस प्रकार कमल सूर्य रश्मियों का स्पर्श पाकर खिल उठता है, वैसे ही ज्ञान ज्योति का स्पर्श पाकर अष्टधा प्रकृति रूप कमल खिल कर पूर्ण चेतना परमात्मा तत्त्व की छटा बिखेरता है । - लक्ष्मीनारायण धूत, दैनिक भास्कर २४ अक्तूबर २०००
कमला गणेश १.१९.४२ ( भीम - पत्नी , कुरूप पुत्र दक्ष को जन्म देना ), १.२२.३५ ( कल्याण - पत्नी इन्दुमती को भावी जन्म में कल्याण / वल्लभ - जननी कमला होने का वरदान ), पद्म २.५.२३ ( हिरण्यकशिपु- पत्नी, प्रह्लाद - माता कमला द्वारा पुत्र की मृत्यु पर शोक, प्रह्लाद को पुन: जन्म देना ; द्र. कयाधू ), ६.६२ ( पुरुषोत्तम मास कृष्ण पक्ष की कमला एकादशी व्रत की विधि व माहात्म्य : जयशर्मा द्वारा व्रत के चीर्णन से लक्ष्मी से वर प्राप्ति ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.६.६४ ( कमला के अंश से सुबल - सुता, वृषभानु - पत्नी, राधा - माता कलावती का व्रज में जन्म ), ४.६.११७ ( कमला का भीष्मक - पुत्री रुक्मिणी के रूप में जन्म ), ४.६.१७५ ( कमला की कला से कृष्ण की १६ हजार पत्नियों का जन्म ), ४.६.१८० (कमला के अंश से पाण्डव - पत्नी द्रौपदी का जन्म ), ब्रह्माण्ड ३.४.३९.६७ ( कमला नाम की निरुक्ति ), मत्स्य १३.३२ ( कमलालय तीर्थ में सती का कमला नाम से वास ), वायु ६९.७ ( ३४ मौनेया अप्सराओं में से एक ), विष्णुधर्मोत्तर १.१६४.१३ ( राजा दधिवाहन की भार्या कमला द्वारा ब्राह्मणी सखी को तिल द्वादशी के फल का दान करना ), शिव ३.१७.११ ( शिव के कमल नामक दशम अवतार की भार्या का नाम ), स्कन्द ४.१.२९.४४ ( गङ्गा सहस्रनामों में से एक ), ४.२.७२.६० ( कमला देवी द्वारा हस्ताङ्गुलियों की रक्षा ), ५.१.१८.२७ ( वैश्यों के लिए कमला देवी मुख्य होने का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.२०६.४६( मृगशृङ्ग मुनि की ४ पत्नियों में से एक ), १.२६३.६( पुरुषोत्तम मास की कमला नामक कृष्ण पक्ष एकादशी के माहात्म्य का वर्णन : शाकटायन ऋषि द्वारा कमला से धनदायक मणि की प्राप्ति ), १.२६५.१०( वामन की पत्नी कमला का उल्लेख ), ४.१०१.६४ ( वैराजनाभि - पुत्री, कृष्ण - पत्नी, पद्मनाभ व नभोवती की माता ) । kamalaa
कमलाक्ष मत्स्य १३.३४ ( कमलाक्ष तीर्थ में सती की महोत्पला नाम से स्थिति ), ६१.४ ( वायु व अग्नि द्वारा दैत्यों के पीडन पर कमलाक्ष आदि दैत्यों का समुद्र में छिपना, अगस्त्य द्वारा समुद्र शोषण का प्रसंग ), लिङ्ग १.७१.९ ( तारकासुर के तीन पुत्रों में से एक, रजतपुर का अधिपति, विष्णु द्वारा माया रूप धारण करके पुरवासियों को पथभ्रष्ट करना, शिव द्वारा त्रिपुर दाह ), शिव २.५+ ( वही), स्कन्द ४.१.२९.४२ ( कमलाक्षी : गङ्गा सहस्रनामों में से एक ) ।
कमलालया मत्स्य १३.३२ ( कमलालय तीर्थ में सती की कमला नाम से स्थिति ), स्कन्द ३.१.३४.१८ ( विश्वनाथ - भार्या, वेदनाथ - माता, वानर के पूर्वजन्म का प्रसंग ) ।
कम्पन देवीभागवत ९.२१.५१( राहु से ग्रस्त होने पर चन्द्रमा के कम्पित होने का उल्लेख ), पद्म २.१०३.९८( हुण्ड दैत्य का अमात्य, हुण्ड को नहुष के अपहरण का परामर्श ), ब्रह्मवैवर्त्त २.३१.१८ ( विप्र का दण्ड द्वारा कम्पन कराने पर प्रकम्प नरक प्राप्ति का उल्लेख ), मत्स्य १७९.२४ ( कम्पिनी : अन्धकों के रक्त पान हेतु शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक ), वामन ६९.१३०( पृथिवी के कम्पन से शमीक - भार्या के एक पुत्र के द्विगुणित हो जाने का कथन ), हरिवंश ३.४६.३५ ( हिरण्यकशिपु के कारण पृथ्वी का कम्पित होना, कम्पित होने वाले गणों के नाम ), वा.रामायण ६.७६.१ ( रावण - सेनानी, अङ्गद द्वारा वध ) ; द्र. निष्प्रकम्प । kampana
कम्पा ब्रह्माण्ड ३.४.४०.१७ ( पार्वती द्वारा शिव के नेत्रपिधान के पाप से मुक्ति हेतु काञ्ची पुरी में कम्पा नदी तट पर तप ), ३.४.४०.१०२ ( सन्तान प्राप्ति हेतु राजा दशरथ द्वारा कम्पा सरसी में स्नान करके त्रिपुराम्बा देवी की आराधना ), स्कन्द १.३.१.३.६१+ ( शिव के नेत्र पिधान करने के पश्चात् पार्वती का कम्पा नदी तट पर तप, कम्पा नदी में बाढ आने पर पार्वती द्वारा सिकता लिङ्ग का आलिङ्गन करना, शिव का प्रकट होना आदि )। kampaa
कम्बर विष्णुधर्मोत्तर १.५६.२४ ( कम्बर की किन्नरों में श्रेष्ठता का उल्लेख ) ।
कम्बल अग्नि १११.५ ( प्रयाग में कम्बल व अश्वतर नागों की स्थिति ), कूर्म १.१२.१८९ ( कम्बलाश्वतरप्रिया : पार्वती सहस्रनामों में से एक ), पद्म ३.४३.२८ ( प्रयाग में यमुना के दक्षिणी तट पर कम्बल व अश्वतर नागों की स्थिति ), ब्रह्माण्ड १.२.२०.२३ ( सुतल नामक द्वितीय अधोतल में कम्बल आदि नागों का वास ), १.२.२३.२१ ( शिशिर ऋतु में कम्बल व अश्वतर नागों की सूर्य रथ व्यूह में स्थिति ), भविष्य ३.२.१८.१ ( सुदत्त राजा द्वारा पालित कम्बलक पुरी में धनवती कन्या के शूलारोपित चोर से विवाह का वृत्तान्त ), भागवत ५.२४.३१ ( पाताल नामक सप्तम अधोतल में कम्बल आदि नागों का वास ), १२.११.४३ ( आश्विन मास में कम्बल नाग की सूर्य रथ व्यूह में स्थिति ), मत्स्य ६.३९ ( कद्रू के २६ प्रधान पुत्रों में से एक ), मार्कण्डेय २३.४९ ( अश्वतर नाग द्वारा सरस्वती को प्रसन्न करके स्वयं व कम्बल भ्राता के लिए संगीत विद्या की प्राप्ति, तदनन्तर शिव को प्रसन्न करके मदालसा को पुत्री रूप में प्राप्त करना ), वराह २४.६(कम्बल का तक्षक से साम्य?), वायु ४४.४ ( केतुमाल वर्ष के ७ कुलपर्वतों में से एक, केतुमाल वर्ष के एक राष्ट्र का नाम व कम्बला नामक एक नदी ), ५०.२३ ( द्वितीय अधोतल में कम्बल व अश्वतर नागों का वास ), ६९.१२ ( प्रचेता व सुयशा के यक्ष पुत्रों में से एक ), विष्णु १.२१.२१ ( कद्रू के प्रधान नाग पुत्रों में से एक ), २.१०.१६ ( कम्बल नाग की माघ मास में सूर्य रथ व्यूह में स्थिति ), ६.८.४७ ( कम्बल द्वारा अश्वतर से विष्णु पुराण सुनकर एलापुत्र को सुनाना ), स्कन्द १.१.२२.८१ ( शिव के कर्णों में कम्बल व अश्वतर नागों की स्थिति ), १.२.६२.२८( क्षेत्रपालों के ६४ प्रकारों में से एक ), ४.२.८४.८२ ( कम्बल - अश्वतर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.२.१०.५ ( कद्रू द्वारा शाप के पश्चात् कम्बल सर्प द्वारा पितामह लोक में तप का उल्लेख ), ५.३.३९.३१ ( कपिला गौ के गलकम्बल में पाशधारी वरुण की स्थिति ), ७.४.१७.२३ ( द्वारका के नैर्ऋत द्वार पर कम्बली की स्थिति का उल्लेख ), योगवासिष्ठ ( सर्प कम्बल द्वारा भूमण्डल के आच्छादन का उल्लेख ), कथासरित् ८.२.३५२ ( कम्बल - कन्या मालिनी : महल्लिका की सखी ), ८.५.२६ ( सूर्यप्रभ - सेनानी कम्बल का श्रुतशर्मा - सेनानी कम्बलिक से युद्ध )। kambala
कम्बलबर्हिष ब्रह्माण्ड २.३.७१.१४२ ( देवबाहु - पुत्र, असमौजा - पिता ), भागवत ९.२४.१९ ( अन्धक के ४ पुत्रों में से एक, वृष्णि वंश ), मत्स्य ४४.२५ ( मरुत्त - पुत्र, रुक्मकवच - पिता, क्रोष्टु वंश ), ४४.६१ ( बभ्रु के कङ्क - कन्या से उत्पन्न ४ पुत्रों में से एक ), ४४.८३ ( देवार्ह - पुत्र, असोमजा - पिता ), वायु ९५.२४ ( मरुत्त - पुत्र, रुक्मकवच - पिता ), ९६.११५ ( सत्यक व काशिदुहिता के ४ पुत्रों में से एक ), ९६.१४० ( देवार्ह - पुत्र, असमौजा - पिता, अन्धक वंश ), विष्णु ४.१४.१२ ( अन्धक के ४ पुत्रों में से एक, वृष्णि वंश ) । kambalabarhisha
कम्बु देवीभागवत ५.१७.११ ( राजा चन्द्रसेन की कन्या मन्दोदरी द्वारा सुधन्वा - पुत्र कम्बुग्रीव से विवाह न करने का निश्चय ), पद्म ६.१४२.१ ( कम्बु तीर्थ का माहात्म्य : विष्णु लोक की प्राप्ति, विश्वामित्र द्वारा प्रजाकाम होना ), ब्रह्माण्ड १.२.३६.६४ ( पञ्चम मनु रैवत के पुत्रों में से एक ), भागवत ४.९.४ ( श्रीहरि द्वारा तपोरत ध्रुव का ब्रह्ममय कम्बु / शंख से स्पर्श करने का उल्लेख ), स्कन्द ४.२.७२.९९ ( कम्बुशिरा : ६४ वेतालों में से एक ), ५.३.१२० ( कम्बुकेश्वर तीर्थ का माहात्म्य : शम्बर - पुत्र कम्बु द्वारा काल पर विजय ), लक्ष्मीनारायण १.३००.१२२ ( ब्रह्मा के ९ मानस पुत्रों में से एक, पुरुषोत्तम अष्टमी व्रत के प्रभाव से कृष्ण - पार्षद बनना, पूजा में कम्बु द्वारा तीर्थ जल से भ्रामण का कार्य ), कथासरित् ५.३.१९५ ( कम्बुक नगर वासी देवदत्त ब्राह्मण का वृत्तान्त ), ७.८.१९८ ( मुक्तसेन विद्याधरराज की भार्या कम्बुवती के पुत्र पद्मसेन का वृत्तान्त ), १०.४.१६८ ( हंसों द्वारा यष्टि की सहायता से अन्यत्र ले जाए जा रहे कम्बुग्रीव नामक कूर्म की मुख खोलने से मृत्यु होने का वृत्तान्त ) । kambu
कम्बुग्रीव अग्नि ३६४.२४(सामुद्रिक लक्षणों में त्रिरेखा कम्बुग्रीव का उल्लेख), देवीभागवत ५.१७.११ ( राजा चन्द्रसेन की कन्या मन्दोदरी द्वारा सुधन्वा - पुत्र कम्बुग्रीव से विवाह न करने का निश्चय ), विष्णुधर्मोत्तर १.२२१.६५(राम का कम्बुग्रीव विशेषण), महाभारत आदि १००.४(शन्तनु का कम्बुग्रीव विशेषण), आदि १५१.१४(भीमसेन का कम्बुग्रीव विशेषण), वन १६१.३७(भीमसेन के लिए कम्बुग्रीव विशेषण का प्रयोग), ३०७.९(कुन्ती द्वारा सूर्य का आह्वान करने पर सूर्य के कम्बुग्रीव होने का उल्लेख), विराट १४.३१(द्रौपदी के लिए कम्बुग्रीवा विशेषण का प्रयोग), उद्योग १३८.१६(गुडाकेश अर्जुन के लिए कम्बुग्रीव विशेषण), कथासरित् १०.४.१६८ ( हंसों द्वारा यष्टि की सहायता से अन्यत्र ले जाए जा रहे कम्बुग्रीव नामक कूर्म की मुख खोलने से मृत्यु होने का वृत्तान्त )t Comments on Kambugreeva
कम्बोज गरुड १.५५.१३ ( दक्षिणापथ के देशों में से एक ) ।
कम्भरा लक्ष्मीनारायण १.१५९.९१ ( रुक्मिणी का कम्भरा रूप में अवतार ), १.३१५.७६ ( कम्भरा की निरुक्ति, लक्ष्मी का प्रेम द्विज की कन्या कम्भरा के रूप में अवतरण ), १.४१९.३ ( गोपालकृष्ण द्विज की पत्नी कम्भरा का पति के साथ तप हेतु वन में गमन, कृष्ण से वर प्राप्ति ), ४.२६.५४ ( काम्भरेय कृष्ण द्वारा पाप से रक्षा का उल्लेख ) । kambharaa