कलि / कलियुग कूर्म १.३० ( कलियुग में धर्म की स्थिति ), गणेश २.१४१.१५ ( कलियुग में आचार - विचार की स्थिति का वर्णन ), गरुड ३.१६.६३(कलि की वायु से विपरीतता का कथन), ३.२९.१६(कलि – भार्या रूप में यम – भार्या श्यामला का वर्णन), गर्ग १.५०.३० ( कलि का दुर्योधन रूप में अवतरण ), ८.२.१७ ( निवातकवचों के राजा ), १०.६१ ( कलियुग में कृष्ण नाम कीर्तन की महिमा ), देवीभागवत ४.२२.३७ ( कलि का दुर्योधन रूप में अवतरण ), नारद १.४१ ( कलियुग में धर्म की स्थिति ), पद्म ७.१.१० ( कलिकाल में धर्म की दुरावस्था होने पर कर्मों को विष्णु को अर्पित करना एकमात्र मुक्ति का उपाय ), ब्रह्म १.१२२ ( कलियुग में धर्म की दुरावस्था का वर्णन ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१२६.११ ( कलियुग में धर्म की स्थिति का वर्णन ), ब्रह्माण्ड २.३.५९.६ ( वरुण - पुत्र, वैद्य - भ्राता, सुरा, हिंसा व निकृति - पति, मद, नाक, विघ्नादि का पिता, सन्तति का वर्णन ), भविष्य ३.१.४.११ ( राजा प्रद्योत द्वारा म्लेच्छ यज्ञ में म्लेच्छों को नष्ट करने के पश्चात् कलि म्लेच्छ द्वारा विष्णु की आराधना, विष्णु द्वारा आदम व हव्यवती युगल द्वारा म्लेच्छ वंश वृद्धि होने का आश्वासन ), ३.१.५++ ( कलियुगीय इतिहास का आरम्भ ), ३.३.३२.२२२ ( पृथ्वीराज - आह्लाद व उदयसिंह के युद्ध के पश्चात् कलि द्वारा पृथ्वी का भार हरण करने वाले बलराम के अंश आह्लाद की स्तुति व आह्लाद को वर देना ), ३.४.८.३३ ( पांशुशर्मा द्विज द्वारा कलि के द्वारा प्रस्तुत फलों का तिरस्कार करने पर बन्धनग्रस्त होना, सूर्य की आराधना से बन्धन मुक्त होकर कलिञ्जर नगर में तप करके सूर्य से सायुज्य प्राप्त करना ), ३.४.९.४८ ( कलि चोर द्वारा जयदेव के धन का हरण व हस्त - पाद कर्तन करना, पुन: जयदेव को राज्याश्रय मिलने पर कलि द्वारा राजा के पास वैष्णव द्विज रूप धारी चोरों का प्रेषण, जयदेव की चोरों पर कृपा ), ३.४.२३.३२ ( कलि गन्धर्व द्वारा ब्राह्मण वेश धारण करके राजा पुष्यमित्र को श्राद्ध आदि के विषय में पथभ्रष्ट करने का प्रयत्न, राजा के दृढ रहने पर कलि का राजा पुष्यमित्र का मित्र बनना ), ३.४.२३.१०९ ( कलि का आधा भाग वज्रमय व आधा कोमल होने का उल्लेख, गुर्जर देश में सिंहिका आभीरी के गर्भ से राहु पुत्र के रूप में जन्म लेना ), ३.४.२४.३२ ( कलि की प्रार्थना पर वामन अवतार का भोगसिंह व केलिसिंह के रूप में जन्म लेकर पृथ्वी पर कलियुगी मनुष्यों का विस्तार करना , कलियुग के ४ चरणों में धर्म आचार की स्थिति का वर्णन ), ३.४.२५.१४ ( कलियुग के चतुर्थ चरणान्त में विष्णुयशा व विष्णुकीर्ति से विष्णु अवतार के जन्म का वृत्तान्त ), ४.१२२.१ ( कलियुग के शूद्र होने का उल्लेख ), भागवत १.१७ ( शूद्र रूप धारी कलि द्वारा गौ - वृषभ का ताडन, परीक्षित द्वारा दमन, कलि द्वारा वास स्थानों की प्राप्ति ), १२.१ ( कलियुग में राजवंशों का वर्णन ), १२.२ ( कलियुग में धर्म की स्थिति, कल्कि अवतार का वर्णन ), मत्स्य ५०.७२ ( कलियुग में राजाओं के नाम ), २७१ ( कलियुग में राजाओं के वंश ), मार्कण्डेय ५१.१ ( कलि की भार्या से उत्पन्न निर्माष्टि कन्या का दुःसह की भार्या बनकर सन्तान उत्पत्ति करना ), ६२.१९ ( वरूथिनी अप्सरा द्वारा कलि गन्धर्व के समागम के अनुरोध का तिरस्कार करने पर कलि द्वारा वरूथिनी के प्रिय मनुष्य ब्राह्मण का रूप धारण करके समागम, समागम से स्वारोचिष मनु के पिता स्वरोचि का जन्म ), वराह ७१.४० ( गौतम ऋषि द्वारा छल से मायामयी गौ प्रस्तुत करने वाले ब्राह्मणों को कलियुग में आचार - भ्रष्ट होने का शाप ), वामन ७५.२ ( बलि के राज्य में धर्म का वर्चस्व देखकर कलि / तिष्य का बिभीतक वन में पलायन ), वायु ६९.३ ( १६ मौनेय देवगन्धर्वों में से एक ), वा.रामायण ०.१ ( कलियुग में रामायण पाठ का महत्व ), विष्णु ४.२४ ( कलियुगी राजाओं के वंशों का वर्णन ), ४.२४.१०६ ( कलियुग आरम्भ समय में सप्तर्षि तारागणों की स्थिति ), ६.१ ( कलियुग में धर्म का निरूपण ), ६.२.१५ ( कलियुग में नाम कीर्तन का महत्व ), स्कन्द १.१.७.३२( कलि में भद्रेश्वर लिङ्ग की स्थिति का उल्लेख ), १.२.४०.२४८ ( कलियुग के राजाओं का वर्णन ), २.२.३८.२६ ( कलियुग में धर्म की स्थिति का वर्णन ), २.७.२२.१६ ( कलियुग के दोषों का दर्शन कर धर्मवर्ण द्विज का विवाह न करने का निश्चय, पितरों द्वारा कलियुग की बाधा से मुक्ति के विकल्प का कथन, पितरों के प्रबोधन पर धर्मवर्ण का विवाह करना ), ३.२.३६.१६ ( कलियुग में धर्म की स्थिति, कान्यकुब्ज - अधिपति आम का कलियुग के आगमन पर बौद्ध धर्म ग्रहण करना व आम - पुत्री रत्नगङ्गा का जैन बनना, ब्राह्मणों की वृत्ति का लोप होना आदि ), ४.२.५७.९९ ( कलि प्रिय विनायक का संक्षिप्त माहात्म्य : तीर्थ - द्रोहियों में कलह उत्पन्न करना ), ४.२.८४.७५ ( कलि तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : कलि काल से निर्भयता ), ५.३.१५५.६० ( कलि : चित्रगुप्त का विशेषण ? ), ७.१.१३.१० ( कलियुग में अवतीर्ण सूर्य का अर्कस्थल नाम ), ७.४.१.१६ ( द्वापर के पश्चात् कलियुग से भयभीत असित - देवल आदि ऋषियों द्वारा प्रह्लाद से कलियुग में विष्णु का पृथ्वी पर निवास स्थान पूछना, प्रह्लाद द्वारा द्वारका में केशव के वास का कथन ), ७.१.४.१३ ( दुर्वासा को दिए गए वचन/ वर के कारण कृष्ण का कलियुग में द्वारका में वास ), हरिवंश १.४१.१६९ ( कलियुग में कल्कि अवतार के पश्चात् कृतयुग की प्रवृत्ति ), ३.३+ ( व्यास द्वारा जनमेजय को कलियुग में धर्म / आचार की दुरावस्था का वर्णन ), महाभारत शान्ति २६७.३४( कलियुग में धर्म की षोडशी कला ही शेष रहने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.२१५+ ( कलियुग में धर्म की स्थिति का वर्णन ), १.२१८.१०३ ( कलियुग में पापी मनुष्यों के उद्धार के लिए द्वारका का महत्त्व ), ४.१०४ ( कलि के दोषों व मोक्ष साधनों का वर्णन ), ४.१०७ ( वही) ; द्र. युग kali/kaliyuga
कलिक वा.रामायण ०.४ ( कलिक व्याध की उत्तङ्क ऋषि से रामायण कथा श्रवण से मुक्ति ) ।
कलिका भविष्य ३.४.४.१३ ( राजा कालिवर्मा द्वारा कालिका देवी - प्रदत्त पुष्प कलिकाओं से नगर को सजाना, नगर का कलिकाता नाम होना ), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१२२ ( कृष्ण - पत्नी, विकासास्य व प्रफुल्लिका युगल की माता ), कथासरित् १४.४.१७८ ( कालकूट के स्वामी विद्याधर की कन्या, वायुवेगयशा की सखी, नरवाहनदत्त से विवाह ) । kalikaa
कलिङ्ग गर्ग ७.५.१३ ( कलिङ्ग देश पर प्रद्युम्न की विजय का वर्णन ), नारद १.९.११३ ( कलिङ्ग देश वासी गर्ग ऋषि द्वारा हरिनाम कीर्तन व गङ्गा जल से राक्षस योनि प्राप्त राजा कल्माषपाद / मित्रसह का उद्धार करना ), १.५६.७४१( कलिङ्ग देश के कूर्म के बाहु रूप होने का उल्लेख ), पद्म ६.२१६ ( कलिङ्ग राजा का दुष्ट वृत्ति के कारण शाप से महिष बनना, बदरी तीर्थ में मुक्ति ), ६.२१७ ( कालिङ्ग चाण्डाल की हरिद्वार में मृत्यु पर मुक्ति की कथा ), ब्रह्माण्ड १.२.१६.४२ ( मध्य देश के जनपदों में से एक ), १.२.१६.५७ (दक्षिणपथ के देशों में से एक ), २.३.१३.१३ ( कलिङ्ग देश की पश्चिम सीमा पर स्थित माल्यवान पर्वत का माहात्म्य ), २.३.१४.३३ ( श्राद्ध हेतु वर्जित स्थानों में से एक ), २.३.७४.१९८ ( कलियुग में कलिङ्ग पर गुह के शासन का उल्लेख ), भविष्य ३.३.३२.१८१ ( पृथ्वीराज - सेनानी कलिङ्ग का कालीवर्मा से युद्ध ), मत्स्य ४८.७७ ( दीर्घतमा ऋषि के वीर्य से बलि - पत्नी सुदेष्णा द्वारा उत्पन्न पांच क्षेत्रज पुत्रों में से एक, पुत्रों के उत्पन्न होने का वृत्तान्त ), ९६.५ ( कालधौत / सुवर्णमय १६ फलों में से एक ), ११४.३६ ( मध्य देश के जनपदों में से एक ), ११४.४७ ( दक्षिणपथ के देशों में से एक ), १८६.१२ ( कलिङ्ग देश की पश्चिम सीमा पर अमरकण्टक पर्वत की स्थिति का उल्लेख ), लिङ्ग २.१.२३ ( कलिङ्ग राजा द्वारा कौशिक व कौशिक - शिष्यों को गान के लिए बाध्य करना ), वराह १३७.७८, १३७.२२५ ( गृध्र का वटमूल में मृत्यु को प्राप्त करके कलिङ्ग का राजा बनना ), वायु ३६.२२ ( मानसरोवर व मेरु के दक्षिण में स्थित पर्वतों में से एक ), ४२.२८ ( अलकनन्दा नदी द्वारा प्लावित पर्वत शिखरी में से एक ),४५.१२५ ( दक्षिण पथ के देशों में से एक ), ५८.११० ( कृतयुग के प्रथम पुरुष का कलिङ्ग में उत्पन्न होने का उल्लेख ), ७७.१३ (कलिङ्ग देश की पश्चिम सीमा पर अमरकण्टक पर्वत की स्थिति का उल्लेख ), ७८.२३ ( श्राद्ध हेतु वर्जित स्थानों में से एक ), ९९.८५( दीर्घतमा ऋषि के वीर्य से बलि - पत्नी सुदेष्णा द्वारा उत्पन्न पांच क्षेत्रज पुत्रों में से एक, पुत्रों के उत्पन्न होने का वृत्तान्त ), ९९.३२४ ( कलियुग में ३२ कलिङ्ग राजाओं का उल्लेख ), ९९.३८६ ( कलियुग में कलिङ्ग पर गुह के शासन का उल्लेख ), विष्णु ३.७.९ ( कलिङ्गदेशीय ब्राह्मण द्वारा भीष्म को यम गीता का कथन ), ५.२८.२४ ( रुक्मी वध प्रसंग में बलराम द्वारा कलिङ्गराज का दन्त भञ्जन ), शिव २.१.१८.३९ ( शिव मन्दिर में दीपदान के पुण्य से गुणनिधि विप्र चोर का कलिङ्ग -अधिपति अरिन्दम का पुत्र दम बनना ), स्कन्द ३.३.४.३५ ( राजा विमर्दन की पत्नी कुमुद्वती का जन्मान्तर में कलिङ्ग राजा की पुत्री बनकर सौराष्ट्र राजा की पत्नी बनना ), ४.१.१३.१२० ( शिव मन्दिर में दीपदान के पुण्य से गुणनिधि विप्र चोर का कलिङ्ग - अधिपति अरिन्दम का पुत्र दम बनना ), ४.१.२८.३९ ( कलिङ्ग देश के वाहीक नामक दुराचारी द्विज का मृत्यु पश्चात् गङ्गा में अस्थि पतन से नरक से मुक्त होकर स्वर्ग को जाना ), ५.२.६९.२ ( कलिङ्ग राज्य में राजा सुबाहु के शिर दर्द व पूर्व जन्म का वृत्तान्त ), ७.३.२२ ( बाष्कलि उपनाम वाले जरा - मरण रहित कलिङ्ग दानव पर देवों द्वारा श्रीमाता देवी की आराधना से विजय प्राप्त करना ), लक्ष्मीनारायण ३.५८.२१ ( कौशिक आदि वैष्णव भक्तों द्वारा कलिङ्ग राजा के राज्याश्रय के प्रस्ताव को अस्वीकार करना ), कथासरित् ६.१.१२ ( तक्षशिला नगरी के बौद्ध राजा कलिङ्गदत्त द्वारा वैश्य - पुत्र के प्रतिबोधन का वृत्तान्त ), ७.२.१३ ( मुनि के शाप से गन्धर्व का कलिङ्ग देश में श्वेतरश्मि नामक गज के रूप में जन्म लेकर राजा रत्नाधिपति का वाहन बनना ), १२.८.८४ ( कलिङ्ग देश के राजा कर्णोत्पल के दन्तवैद्य की कन्या पद्मावती के विवाह का वृत्तान्त ), १३.१.१७( कलिङ्ग का शब्दार्थ : कलि से रहित? ), १८.४.१, १८.४.१४.१, १८.५.२७ ( कलिङ्ग राजा की पुत्री कलिङ्गसेना के राजा विक्रमादित्य से विवाह का वृत्तान्त ) । kalinga
कलिङ्गसेना कथासरित् ६.२.१, ६.२.९७ ( राजा कलिङ्गदत्त की रानी तारादत्ता से कलिङ्गसेना कन्या का जन्म, कन्या जन्म से राजा का विषादग्रस्त होना व बौद्ध आचार्य से कथाओं के रूप में उपदेश श्रवण ), ६.२.९७+ ( कलिङ्गसेना का मयासुर - कन्या सोमप्रभा की सखी बनकर यन्त्रमय पुत्तलिकाओं से क्रीडा करना ), ६.४.१ ( मदनवेग विद्याधर का कलिङ्गसेना पर आसक्त होकर उसे प्राप्त करने के लिए तप करना, शिव से वर प्राप्ति ), ६.५.१ ( कलिङ्गसेना द्वारा वृद्ध राजा प्रसेनजित् से विवाह को अस्वीकार करना, वत्सराज उदयन पर आसक्ति ), ६.६.१ ( वत्सराज उदयन के मन्त्री की युक्तियों से उदयन का कलिङ्गसेना से विवाह न करने का निश्चय ), ६.७.१६७ (मदनवेग विद्याधर द्वारा वत्सराज उदयन का रूप धारण करके कलिङ्गसेना से समागम, कालान्तर में पति - पत्नी बनना ), ६.८.१ ( मदनवेग - भार्या कलिङ्गसेना द्वारा वत्सराज उदयन की कामासक्ति का तिरस्कार ), ६.८.४५ ( कलिङ्गसेना द्वारा प्रसूत पुत्र का प्रजापति द्वारा हरण व पुत्र के स्थान पर अयोनिजा कन्या रति को रखना, मदनमञ्चुका नामक कन्या का कालांतर में नरवाहनदत्त से विवाह ), १८.४.१, १८.४.१४१, १८.५.२७ ( कलिङ्ग राजा की पुत्री कलिङ्गसेना के राजा विक्रमादित्य से विवाह का वृत्तान्त ) । kalingasenaa
कलिङ्गभद्रा भविष्य ४.१०३ ( दिलीप - पत्नी कलिङ्गभद्रा द्वारा कृत्तिका व्रत के पारण से मृत्यु के पश्चात् जाति स्मरण रखने वाली अजा व अहल्या - पुत्री के रूपों में जन्म, कृत्तिका व्रत से मुक्ति की प्राप्ति ) । कलिञ्जर भविष्य ३.४.४.४ ( शक्ति द्वारा राजा परिहर के लिए चित्रकूट पर कलिञ्जर नगर का निर्माण ) ; द्र. कालञ्जर kalinjara
कलिन्द पद्म ४.२१.२६ ( कलिन्दक : कार्तिक व्रत में कलिन्दक भोजन के गोवध तुल्य होने का उल्लेख ), भविष्य ३.४.८.३७ ( प्रांशुशर्मा द्विज द्वारा कलि द्वारा प्रस्तुत कलिन्द / बिभीतक वृक्ष के फलों को अस्वीकार करने का वृत्तान्त ) । kalinda
कलिप्रिया पद्म ४.२०.११ ( शङ्कर वृषल विप्र की जारासक्त भार्या कलिप्रिया द्वारा पति की हत्या, कार्तिक में राधा - दामोदर की आराधना से विष्णु लोक की प्राप्ति ) ।
कलिभोजन भविष्य ३.२.६.१४ ( कलिभोजन नामक रजक द्वारा चण्डिका की आराधना से कामाङ्गी कन्या को पत्नी रूप में प्राप्त करके चण्डी को स्वशिर अर्पित करने व पुनर्जीवित होने का वृत्तान्त ) ।
कलुषा पद्म ६.१२२.७४ ( श्रावण शुक्ल द्वितीया की कलुषा संज्ञा के कारण का वर्णन )
कल्कि अग्नि १६.८ ( विष्णुयशा - पुत्र कल्की द्वारा याज्ञवल्क्य के पौरोहित्य के अन्तर्गत म्लेच्छों का नाश ), गर्ग ५.१५.३३ ( कल्कि अवतार की शक्ति कृति का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.७३.१०४ ( प्रमिति नामक विष्णु के अंश से उत्पन्न दशम कल्कि अवतार द्वारा म्लेच्छों का वध आदि ), ३.४.२९.१३३ ( ललितादेवी के वाम हस्त पद्म के कनिष्ठिका के नख से कल्कि की उत्पत्ति, कल्कि द्वारा म्लेच्छों का संहार ), भविष्य ३.४.२५.१४ ( संभल ग्राम में विष्णु - भक्त दम्पत्ति विष्णुयशा व विष्णुकीर्ति से कल्कि का प्राकट्य, देवों द्वारा स्तुति, देवों के अनुरोध पर कल्कि द्वारा १४ कल्पों के विस्तार का वर्णन ), ३.४.२५.८९ ( कल्कि की वैवस्वत मन्वन्तर में तुला राशि में उत्पत्ति ), ३.४.२६.२ ( कल्की भगवान् का दिव्य अश्व पर आरूढ होकर म्लेच्छों आदि का संहार करना, कल्कि के शरीर से चार वर्णों की उत्पत्ति, वैवस्वत मनु का कल्कि को नमस्कार करके अयोध्या का राज्य संभालना ), ३.४.२६.२१ ( कल्की भगवान् के अदृश्य होने पर दैत्यों का देवों से युद्ध ), भागवत १.३.२५ ( कल्कि का विष्णुयश के पुत्र रूप में २२वां अवतार ), १२.२.१८ ( कल्कि का देवदत्त नामक अश्व पर आरूढ होकर दस्युओं का संहार, कल्कि के अवतार के साथ ही सत्ययुग का आरम्भ ), मत्स्य ४७.२४८ ( दशम अवतार कल्की द्वारा व्यास व याज्ञवल्क्य के पौरोहित्य के आधीन पाखण्डियों आदि का नाश ), लिङ्ग १.४०.५१ ( कलि के अन्तिम चरण में प्रमिति नामक अवतार का चन्द्र गोत्र में जन्म लेकर म्लेच्छों का संहार करना ), वराह ४८ ( कल्कि द्वादशी व्रत विधि व माहात्म्य : राजा विशाल का कल्कि द्वादशी व्रत के प्रभाव से चक्रवर्ती बनना ), ४८.२२ ( शत्रुघात के लिए कल्कि के यजन का उल्लेख ), वायु ९८.१०४ ( प्रमिति नामक विष्णु के अंश से उत्पन्न दशम कल्कि अवतार द्वारा म्लेच्छों का वध आदि ), स्कन्द ५.३.१५१.२७ ( कल्कि अवतार के जन्म के समय की परिस्थितियों का कथन ), हरिवंश १.४१.१६४ ( कल्कि का १२वें अवतार के रूप में शम्भल ग्राम में याज्ञवल्क्य सहित प्राकट्य ) । kalki
कल्प अग्नि ३२१+ ( अघोर अस्त्र आदि शान्ति कल्प का वर्णन ), नारद १.५१.२ ( नक्षत्र, वेद, संहिता, आङ्गिरस व शान्ति नामक पांच कल्पों के अन्तर्गत कर्म विधान का वर्णन ), १.५१.९ ( गृह्य कल्प विधान का कथन ), ब्रह्मवैवर्त्त १.५.१३ ( ब्राह्म कल्प में मधु - कैटभ के मेद से मेदिनी का निर्माण, वाराह कल्प में वाराह द्वारा पृथ्वी का रसातल से उद्धार, पाद्म कल्प में नाभि पद्म से ब्रह्मा के आविर्भाव का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.१.४ ( पुरुष द्वारा सत्, रज, तम के माध्यम से लोक कल्पन का वर्णन ), १.२.६.५ ( पूर्व व अपर कल्प की प्रतिसन्धि की प्रत्याहार संज्ञा, कल्पवासी वैमानिक देवों का कल्प - कल्प में ऊर्ध्वगमन करके आनन्द ब्रह्म को प्राप्त करना, कल्पादि में सृष्टि व कल्पान्त में संहार का वर्णन ), १.२.३३.५३( पुराकल्प की परिभाषा ), ३.४.३२.१८ ( कल्पा : महाकाल के चार द्वारपालों में से एक ), भविष्य १.१७+ ( प्रतिपदा कल्प का वर्णन : कृष्ण व शुक्ल प्रतिपदा तिथियों में ब्रह्मा की अर्चना का विधान ), १.१९+ ( द्वितीया , तृतीया आदि तिथियों के कल्पों का वर्णन ), ३.३.९.३१ ( देशराज - भार्या देवकी द्वारा मूल गण्डान्त में उत्पन्न पुत्र चामुण्ड का कल्प क्षेत्र में कालिन्दी में त्याग ), ३.४.६.४३ ( कल्प आख्यान के अन्तर्गत १२ मासों के १२ आदित्यों, ११ रुद्रों , ८ वसुओं व अश्विनी द्वय के कलियुग में अंशावतारों का वर्णन ), ३.४.९.२० ( कलियुग में कल्पदत्त के पुत्र धन्वन्तरि द्वारा कल्पवेद / आयुर्वेद की सृष्टि का वृत्तान्त ), ३.४.२५.२४( अजा की बाहुओं से उत्पत्ति के संदर्भ में कल्पों का कथन ), ३.४.२५.५० ( कल्कि अवतार - प्रोक्त कूर्म, मत्स्य, वाराह आदि १८ कल्पों के नाम ), ३.४.२५.७८ ( युगान्त में कर्म भूमि का लय होने पर कल्प संज्ञा, मनु के अन्त में सर्वभूमि का प्रलय होने पर कल्पक संज्ञा, पुराण पुरुष के दिनान्त पर प्रलय होने पर मुख्य कल्प संज्ञा ), ३.४.२५.९७ ( १० अतीत व एक वर्तमान महाकल्पों का वर्णन ), भागवत ४.१०.१ ( ध्रुव व भ्रमि के कल्प व वत्सर पुत्रों का उल्लेख ), मत्स्य ६.२६ ( विप्रचित्ति व सिंहिका के १३ पुत्रों में से एक ), ५३.१६( विभिन्न पुराणों के विभिन्न कल्पों से सम्बन्धों का कथन ), ९७ ( आदित्यवार कल्प व्रत विधान का वर्णन ), १०१.५० ( कल्प व्रत विधि : कल्पवृक्ष का दान ), २९०.३ ( श्वेत आदि ३० कल्पों के नाम, कल्पों के संकीर्ण, तामस आदि ५ भेदों का कथन, कल्पानुसार पुराण की रचना व श्रवण का माहात्म्य ), लिङ्ग १.२३.२ ( श्वेत आदि कल्पों में शिव के स्वरूप का वर्णन ), वायु २१.२६+ ( भव आदि ३३ कल्पों के स्वरूपों का वर्णन ), विष्णुधर्मोत्तर १.७६+ ( कल्पान्त में प्रलय व सृष्टि का वर्णन ), १.७८+ ( कल्पान्त प्रलय काल में मार्कण्डेय व ब्रह्मा द्वारा शिशु के उदर में ब्रह्माण्ड के दर्शन ), ३.७३.४४ ( कल्प नामक वेदाङ्ग के ब्रह्मा अधिदेवता का उल्लेख ), ३.२१६ ( सुगति पूर्णिमा /व्रत विधि व माहात्म्य का वर्णन ), ३.३०७ ( घृतधेनु कल्प / व्रत विधि व माहात्म्य का वर्णन ), स्कन्द २.१.३६.३४ ( श्वेत वाराह कल्प में १४ मन्वन्तरों के पश्चात् कल्पान्त प्रलय व सृष्टि का वर्णन ), ५.२.५ ( अनादिकल्पेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : ब्रह्मा व विष्णु द्वारा लिङ्गान्त दर्शन की स्पर्धा की कथा ), ५.२.७०.१० ( कल्प ऋषि द्वारा राजा दुर्धर्ष को स्वकन्या प्रदान करना, राक्षस द्वारा कन्या हरण पर राजा को महाकाल वन में लिङ्ग पूजा का निर्देश ), ५.३.५+ ( ब्राह्म कल्प में शिव - पार्वती के स्वेद से उत्पन्न नर्मदा कन्या का परवर्ती सात कल्पों में अमरत्व का वर्णन ), ५.३.१३.४१ ( कपिल आदि १४ पूर्व कल्पों व मयूर आदि ७ अपर कल्पों में नर्मदा की अमरता का वर्णन ), ७.१.७.१३ ( कल्प - कल्प में ब्रह्मा, शिव व पार्वती के नाम ), ७.१.१०५.४५ ( श्वेत आदि ३० कल्पों के नाम ), हरिवंश १.८.२१ ( ब्रह्मा के दिवस के काल की कल्प संज्ञा ), महाभारत शान्ति १६०.२९( गृह त्याग कर मोक्ष मार्ग का आश्रय लेने पर तेजोमय लोकों द्वारा कल्पन करने का उल्लेख ), १६७.२६( धर्मयुक्त मनुष्य पर सभी का विश्वास होने पर सर्व का कल्पन हो जाने का उल्लेख ), २८०.६२( कल्पान्त में भगवान् के जल में शयन करने का उल्लेख ), ३०२.१४( १२ हजार युगों का एक चतुर्युग/कल्प होने का उल्लेख ), ३४०.६२( देवों द्वारा यज्ञ में नारायण के लिए भागों का कल्पन करने पर नारायण द्वारा देवताओं को वही- वही भाग प्राप्त होने का वरदान ), ३४२.९९( अथर्ववेद के पञ्च कल्पात्मक होने का उल्लेख ),योगवासिष्ठ ६.२.१४०+ ( योग में दृष्ट कल्पान्त प्रलय व सृष्टि का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.२१४.४ ( वाराह, भव आदि ३४ कल्पों के नाम ; तु. : वायु पुराण ), १.३४८.८७( कल्प ग्राम में वराह विष्णु के वास का उल्लेख ), ३.२.४० ( ब्राह्म आदि कल्पों के नाम ) । kalpa
कल्पना स्कन्द ६.२६३.१३ ( योगी द्वारा कल्पना पर विजय से सौत्रामणी यज्ञ के फल की प्राप्ति का उल्लेख ), योगवासिष्ठ ६.२.१.३ ( अहंभावना, पदार्थ रस आदि का नाम ) । kalpanaa
कल्पवृक्ष नारद २.५५.२३ ( कुरुक्षेत्र में कल्पवृक्ष रूपी न्यग्रोध वृक्ष की पूजा विधि व माहात्म्य ), पद्म २.१०२.३४ ( पार्वती द्वारा नन्दनवन में कल्पवृक्ष के परीक्षण हेतु अशोकसुन्दरी नामक सर्वाङ्गसुन्दर स्त्री को उत्पन्न करना, कालान्तर में अशोकसुन्दरी का नहुष की पत्नी बनने का वृत्तान्त ), ६.८८.१ ( कृष्ण द्वारा सत्यभामा रानी हेतु स्वर्ग से कल्पवृक्ष के हरण का वृत्तान्त, जन्म - जन्म में कल्पवृक्ष प्राप्ति हेतु सत्यभामा द्वारा कृष्ण सहित कल्पवृक्ष का तुला दान करना ), ब्रह्म १.५७.१६ ( विभिन्न युगों में कल्प वृक्ष के प्रमाणों का कथन ),भविष्य ४.१७८.१२ ( पुत्रहीन व्यक्ति के लिए स्वर्ण निर्मित कल्पवृक्ष दान विधि व माहात्म्य : पार्वती - शिव संवाद ), मत्स्य २७७ ( कल्पवृक्ष दान विधि व माहात्म्य ), मार्कण्डेय ४९.२७,४९.५४ (सत्ययुग में गृह संज्ञक कल्पवृक्षों द्वारा मनुष्य की कामनाओं की पूर्ति, कालान्तर में कल्पवृक्षों के नष्ट होने पर मनुष्य द्वारा कल्पवृक्षों की शाखाओं की अनुकृति के अनुसार शालाओं का निर्माण ), लिङ्ग १.३९.२२ ( कृतयुग में सर्व कामना दायक गृह संज्ञक कल्पवृक्षों का कालान्तर में मनुष्यों द्वारा बलात् सेवन के कारण नष्ट होना, क्षुधा पीडित मनुष्यों का वृष्टि से उत्पन्न औषधियों के सेवन से जीवन यापन करना ), २.३३ ( रत्ननिर्मित कल्पपादप दान की विधि ), स्कन्द ४.२.५८.१६१ ( कल्प वृक्ष का शिव के रथ में ध्वज रूप होना ), ४.२.८२.६१ ( मित्रजित् राजा द्वारा पोत पर स्थित कल्पवृक्ष के दर्शन का वृत्तान्त ), ४.२.८७.६३ ( कल्पवृक्ष द्वारा दक्ष के यज्ञ में समित् व कुशाओं का भरण ), ५.२.८३.२ ( ब्रह्मा के ध्यान से कल्पवृक्षों की उत्पत्ति तथा उनसे बिल्व वृक्ष की उत्पत्ति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.३०१.२० ( सृष्टि आरम्भ में कल्पवृक्ष की विद्यमानता के कारण अग्नि व अग्नि - पुत्र सुवर्ण की उपेक्षा होना, कालन्तर में कल्पवृक्ष के लीन होने पर सुवर्ण की कल्पद्रुम के रूप में प्रतिष्ठा होना ), १.३०६.३१( पुरुषोत्तम मास की चर्तुदशी माहात्म्य प्रसंग में कल्पद्रुम की कन्या श्री द्वारा कल्पपादपों से फल संगृहीत कर कृष्ण को अर्पित करना व कृष्ण - पत्नी बनना ), १.४४१.९३ ( वृक्ष रूपी कृष्ण के दर्शन हेतु श्रीवत्स का कल्पवृक्ष बनना ), ३.२७.२ ( कल्पद्रुम वत्सर में यम द्वारा मारित कुबेर के उज्जीवनार्थ स्वर्ण नारायण का प्राकट्य ), ३.१२७.१ ( कल्प वृक्ष दान विधि व माहात्म्य ), कथासरित् ४.२.१९ ( जीमूतकेतु विद्याधर द्वारा कल्पवृक्ष की कृपा से जीमूतवाहन नामक पुत्र प्राप्त करना, जीमूतवाहन द्वारा कल्पवृक्ष को याचकों के लिए दान करना, कल्पवृक्ष का निष्प्रभावी होना ), १२.५.२१८ ( दान पारमिता की कथा : मलयप्रभ राजा के पुत्र का प्रजा के हित के लिए तप द्वारा कल्पवृक्ष बनना ), १२.१९.४१, १२.१९.१०८ ( राजा यशकेतु द्वारा यान्त्रिक कल्पवृक्ष पर आरूढ होकर दर्शन देने वाली मृगाङ्कवती कन्या को प्राप्त करने की कथा ), १२.२३.७ (जीमूतवाहन द्वारा कल्पवृक्ष को याचकों के लिए दान करने पर कल्प वृक्ष का अदृश्य होकर स्वर्ग जाना ) । kalpavriksha
कल्पलता भविष्य ४.१७९.६ ( महाकल्पलता दान विधि व माहात्म्य ), मत्स्य २८६ ( वही), लक्ष्मीनारायण ३.१३१.१ ( महाकल्प लता दान विधि व माहात्म्य ), ३.१३१.२६ ( कल्पप्रिया / पत्नी दान विधि व माहात्म्य ) ।
कल्माष भविष्य १.७६.१८, १.१२४.२५ ( सूर्य के द्वारपाल व पक्षी प्रेतों के अधिपति २ पक्षियों की संज्ञा ), हरिवंश २.१२२.३० ( स्वाहाकार नामक ५ अग्नियों में से एक ) । kalmaasha
कल्माषपाद पद्म १.८.१५२ ( ऋतुपर्ण - पुत्र, सर्वकर्मा - पिता ), ब्रह्माण्ड १.१.२.११ ( शक्ति मुनि द्वारा नैमिष नामक स्थान पर कल्माषपाद को शाप, नैमिष क्षेत्र की महिमा का प्रसंग ), २.३.६३.१७६ ( सुदास या हंसमुख - पुत्र सौदास की कल्माषपाद व मित्रसह संज्ञा, ऋतुपर्ण - प्रपौत्र, वसिष्ठ द्वारा कल्माषपाद के क्षेत्र में अश्मक पुत्र उत्पन्न करने का उल्लेख ), भागवत ९.९.१८ ( सुदास - पुत्र, ऋतुपर्ण - प्रपौत्र, सौदास राजा द्वारा कल्माषपाद नाम प्राप्ति का कारण, वसिष्ठ के शाप से राक्षस बनने के पश्चात् वसिष्ठ - पुत्र शक्ति के भक्षण आदि का वर्णन, अश्मक पुत्र प्राप्ति का वृत्तान्त ), मत्स्य१२.४६ ( ऋतुपर्ण - पुत्र, सर्वकर्मा - पिता , इक्ष्वाकु / सगर वंश ), लिङ्ग १.६४.१ ( रुधिर / कल्माषपाद राक्षस द्वारा विश्वामित्र की प्रेरणा से वसिष्ठ - पुत्र शक्ति का भक्षण करने पर वसिष्ठ व अदृश्यन्ती का विलाप ), वायु २.११ ( शक्ति मुनि द्वारा नैमिष नामक स्थान पर कल्माषपाद को शाप, नैमिष क्षेत्र की महिमा का प्रसंग ), ८८.१७६ ( सुदास या हंसमुख - पुत्र सौदास की कल्माषपाद व मित्रसह संज्ञा, ऋतुपर्ण - प्रपौत्र, वसिष्ठ द्वारा कल्माषपाद के क्षेत्र में अश्मक पुत्र उत्पन्न करने का उल्लेख ), वा.रामायण १.७०.४० ( रघु - पुत्र, शङ्खण - पिता, प्रवृद्ध नाम, इक्ष्वाकु / सगर वंश ), विष्णु ४.४.५७ ( वसिष्ठ को शाप देने को उद्धत राजा सौदास का स्व संकल्पित जल से कल्माषपाद बनने का वृत्तान्त, वन में शक्ति का भक्षण करने पर शक्ति - पत्नी से शाप प्राप्ति ), स्कन्द ३.३.२.३७ ( राजा मित्रसह / सौदास द्वारा कल्माषपाद नाम प्राप्ति का वृत्तान्त, राजा का वसिष्ठ ऋषि के शाप से प्राप्त राक्षस योनि से मुक्त होकर गौतम ऋषि से गोकर्ण क्षेत्र का माहात्म्य श्रवण ), ५.२.८०.२ ( राजा सौदास का शक्ति मुनि के शाप से कल्माषपाद राक्षस बनकर शक्ति मुनि का भक्षण करना, रात्रि में दु:स्वप्न देखने पर वसिष्ठ के परामर्श से स्वप्नेश्वर लिङ्ग पूजा से निष्कल्मषता प्राप्त करना ), लक्ष्मीनारायण १.३८७ ( सौदास राजा का गुरु वसिष्ठ के शाप व स्व - अभिमन्त्रित जल के चरणों पर गिरने से कल्माषपाद राक्षस बनने का वृत्तान्त, कल्माषपाद राक्षस द्वारा वसिष्ठ - पुत्र वेदश्रवा के भक्षण पर वेदश्रवा - पत्नी सुश्रुता द्वारा कल्माषपाद को शाप ), १.४१० ( कल्माषपाद द्वारा शक्ति का भक्षण करने पर अदृश्यन्ती पत्नी द्वारा विश्वामित्र, रुद्र, यम आदि को जड करने का वृत्तान्त ) । kalmaashapaada/ kalmashpada
कल्या स्कन्द २.१.३५.१ ( वृषभाचल से निःसृत कल्या नदी के सुवर्णमुखरी नदी से सङ्गम का माहात्म्य ) ।
कल्याण गणेश १.२२.८ ( पल्ली पुरी में कल्याण वैश्य के पुत्र बल्लाल की गणेश भक्ति का वृत्तान्त ), १.२२.३५ ( भावी जन्म में कल्याण वैश्य के वल्लभ क्षत्रिय होने आदि का कथन ),मत्स्य ७४ ( कल्याण सप्तमी व्रत विधि : अष्ट दल कमल पर आदित्य पूजा ), स्कन्द ५.३.१९८.७० ( रुद्रकोटि तीर्थ में उमा देवी की कल्याणी नाम से स्थिति का उल्लेख ), ५.३.१९८.७४ ( मलयाचल पर उमा की कल्याणी नाम से स्थिति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.१०७ ( कीशादन नगरी के राजा कल्याणदेवानीक द्वारा पत्नी सहजाश्री सहित श्रीचिह्न नामक मुनि की सेवा से वर प्राप्ति का वृत्तान्त ), कथासरित् ९.१.१९४ ( कल्याणगिरि : राजा पृथ्वीरूप द्वारा रूपलता से विवाह के पश्चात् रूपलता को जयमङ्गल हाथी पर बैठाकर व स्वयं कल्याणगिरि नामक हाथी पर आरूढ होकर प्रतिष्ठानपुर में प्रत्यागमन ), १०.२.१०९ ( शूरवीर राजा सिंहबल की रानी कल्याणवती की कायर परपुरुष पर आसक्ति का वृत्तान्त ), १०.५.२२३ ( धवलमुख नामक राजसेवक द्वारा स्वमित्रों कल्याणवर्मा व वीरबाहु की आपेक्षिक मित्रता की परीक्षा का वृत्तान्त ) । kalyaana
कल्याणमित्र ब्रह्मवैवर्त्त १.१०.१३१,१.११.६ ( सुतपा विप्र की पत्नी व अश्विनौ के समागम से उत्पन्न पुत्र, पिता सुतपा द्वारा त्याग व अश्विनौ द्वारा पुत्र को चिकित्सा, शिल्प, गणना आदि की शिक्षा देना ) ।
कल्याणी देवीभागवत ३.२६.४१ ( चार वर्षीया कन्या का नाम, विद्यार्थी व सुखार्थी आदि द्वारा पूजा ), पद्म १.२३.६४ (कल्याणिनी संज्ञक भीम द्वादशी व्रत की विधि व माहात्म्य ), ६.२३८.९( उत्तानपाद - सुता, हिरण्यकशिपु- भार्या, प्रह्लाद - माता ), मत्स्य ५.२४ ( धर वसु की भार्या, द्रविण व हव्यवाह की माता ), १३.३६ ( मलयाचल पर पार्वती का कल्याणी नाम से निवास ), ६९.५७ ( कल्याणिनी संज्ञक भीम द्वादशी व्रत की विधि व माहात्म्य ), १७९.७० ( अन्धकासुर वध हेतु शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक, माया की अनुचरी ), लक्ष्मीनारायण ३.३४.१०७ ( अग्निहोत्र द्विज की कल्याणिका नामक पुत्री का श्री पुण्यनारायण नामक कृष्ण अवतार से विवाह का उल्लेख ) । kalyaani
कल्लोल लक्ष्मीनारायण २.२५९.१ ( ब्रह्मकल्लोल भक्त विप्र के पुत्र त्रिविक्रम का वृत्तान्त ) ।
कल्होडी स्कन्द ५.३.९३ ( कल्होडी तीर्थ का माहात्म्य : जाह्नवी गङ्गा का पशु रूप में स्नानार्थ आगमन ), ५.३.११९ ( कल्होडी तीर्थ में कपिला दान का माहात्म्य ) ।