काकभुशुण्डि गर्ग २.१३.१५ ( अश्वशिरा मुनि का वेदशिरा मुनि के शाप से काकभुशुण्डि बनना ), योगवासिष्ठ ६.१.१५+ ( वसिष्ठ द्वारा कल्प वृक्ष के कोटर में निवास करने वाले चिरञ्जीवी काकभुशुण्ड के दर्शन ), ६.१.१६(, ६.१.१७( ), ६.१.१८+ ( काकभुशुण्ड द्वारा स्व वृत्तान्त का वर्णन : चण्ड व हंसियों के समागम से काकभुशुण्डि के २१ भ्राताओं का जन्म, तप, कल्पवृक्ष में स्थित होना ), ६.१.२०+ ( वसिष्ठ द्वारा काकभुशुण्डि से कल्पवृक्ष के सर्वदा क्षोभरहित रहने का कारण पूछना ), ६.१.२१.१५ ( प्रलयकाल में काकभुशुण्डि का आकाश में वास ), ६.१.२३ ( काकभुशुण्डि द्वारा जगत में व्यवहार करते हुए भी मृत्यु से देह को बाधा न पहुंचने की स्थितियों का वर्णन ), ६.१.२४ ( प्राणचिन्ता : काकभुशुण्डि का प्राण व अपान वायुओं का नित्य अनुसरण ), ६.१.२५ ( काकभुशुण्डि द्वारा शरीर में प्राण व अपान की प्रकृति का वर्णन ), ६.१.२६ ( काकभुशुण्डि द्वारा चिरञ्जीविता के हेतु का कथन ), ६.२.५.७+ ( विद्याधर - भुशुण्ड वार्तालाप के अन्तर्गत विद्याधर द्वारा इन्द्रियों से बद्ध होने के विषाद का वर्णन ), ६.२.७ ( काकभुशुण्डि द्वारा अहंकार रूपी बीज से उत्पन्न जगत वृक्ष का वर्णन ), ६.२.८ ( काकभुशुण्डि द्वारा मायामण्डप में उपलब्ध क्रीडा सामग्री का वर्णन ), ६.२.१० ( काकभुशुण्डि द्वारा कारणों के कारण अज शिव की ज्ञेयता का कथन ), ६.२.११ ( स्व संविद के अर्थ ज्ञान से अग्निरूपी पदार्थ को तरने के उपाय का कथन ), ६.२.१२ ( स्व को जानने से अविद्या के नाश का कथन ), ६.२.१३ ( शत्रुओं से पीडित होने पर इन्द्र द्वारा अपने अन्त:करण में प्रवेश व अन्तर्मुखी संसार के दर्शन के दृष्टान्त का कथन ), ६.२.१४ ( बिस बाल में स्थित इन्द्र के अन्तर्मुखी होने पर ब्रह्मतत्त्व के दर्शन का दृष्टान्त ), ६.२.१५ ( जगत में स्वत्व के दर्शन से अहंकार की विलीनता का कथन ) । kaakabhushundi/ kakbhushundi Comments on Kaakabhushundi
काकोदरी नारद १.६६.११४( आषाढी की शक्ति काकोदरी का उल्लेख ) ।
काकोली अग्नि १९१.४( काकोल प्राशक द्वारा फाल्गुन में नीर की पूजा का निर्देश ), २९९.४ ( काकोली ग्रही से आक्रान्त बालक के लक्षण व चिकित्सा का कथन ) ।
काचरक कथासरित् ८.५.६३ ( श्रुतशर्मा विद्याधर के सेनानी काचरक द्वारा प्रभास से युद्ध ) ।
काञ्च योगवासिष्ठ ६.१.९०.१९ ( तप की कांच मणि से उपमा )
काञ्चन पद्म ४.१५.४५ ( काञ्चन नगर में वल्लभ - पत्नी हेमप्रभा द्वारा अनायास एकादशी व्रत चीर्णन से स्वर्ग प्राप्ति ), भागवत ९.१५.३ ( भीम - पुत्र, होत्र - पिता, पुरूरवा वंश ), वायु ४८.२४ ( मलय द्वीप के पर्वत कञ्चनपाद की शोभा का कथन ), ६९.१२ ( प्रचेता व सुयशा के यक्ष पुत्रों में से एक ), ९१.५३ ( भीम - पुत्र, होत्र - पिता, पुरूरवा वंश ), वा.रामायण ७.१०८.८ ( शत्रुघ्न द्वारा शरीर त्याग से पूर्व रघुकुल के पुरोहित काञ्चन के आह्वान का उल्लेख ), विष्णु ४.७.३ ( भीम - पुत्र, होत्र - पिता, पुरूरवा वंश ), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१०४ ( श्रीकृष्ण की पत्नी काञ्चनी के पुत्र चामीकर व पुत्री सुवर्णिनी का उल्लेख ), कथासरित् १०.३.९ ( हिमालय पर काञ्चनशृङ्ग पर निवास करने वाले स्फटिकयश नामक विद्याधर की कन्या शक्तियशा का वृत्तान्त ), १०.३.८६ ( काञ्चनाभ नगर के विद्याधर राजा पद्मकूट की कन्या मनोरथप्रभा की कथा ) १०.५.३१९ ( शाप से अजगर बने काञ्चनवेग विद्याधर की सती से संवाद पर मुक्ति ), १७.५.२४ ( इन्द्र द्वारा राजा मेरुध्वज को काञ्चनगिरि व काञ्चन शेखर नामक दो हाथी प्रदान करने का उल्लेख ) । kaanchana/ kanchan
काञ्चनदंष्ट्र कथासरित् १५.१.११८, १५.१.१४६ (नरवाहनदत्त व मन्दरदेव राजाओं के युद्ध में काञ्चनदंष्ट्र का मन्दरदेव की ओर से चण्डसिंह से युद्ध ), १५.२.३३ ( काञ्चनदंष्ट्र की पुत्री कनकवती के नरवाहनदत्त से विवाह का उल्लेख ), १८.४.६७ ( शबरों के राजा काञ्चनदंष्ट्र द्वारा एकाकिकेसरी की सेनापति पद पर नियुक्ति ) ।
काञ्चनपुर भविष्य ४.१४७.२०( काञ्चनपुरी व्रत की विधि व माहात्म्य ), वायु ९९.३७१ ( दोहित्र , शिशुक और प्रवीर द्वारा कांचनका पुरी में ६० वर्ष तक राज्य करने का उल्लेख ), कथासरित् १०.१.७३ ( ईश्वरवर्मा नामक वैश्य के काञ्चनपुर में वेश्या की मिथ्या आसक्ति के जाल में फंसने की कथा ), १०.३.२२ ( काञ्चनपुरी के राजा सुमना के समक्ष वेदपाठी शुक के उपस्थित होने का वृत्तान्त ), १२.२३.५ ( काञ्चनपुर के राजा जीमूतकेतु के पुत्र जीमूतवान का वृत्तान्त ), १२.३६.१२८ ( मृगाङ्कदत्त राजकुमार का शशाङ्कवती के साथ काञ्चनपुर के शबर अधिपति मायाबटु के यहां ठहरना ) ।
काञ्चनप्रभा कथासरित् ९.१.१६ ( अलंकारशील व काञ्चनप्रभा की कन्या अलङ्कारवती के नरवाहनदत्त से विवाह का वृत्तान्त ) ।
काञ्चनमालिनी नारद २.६३.७७ ( कलिङ्ग राजा की वेश्या का प्रयाग में माघ स्नान से पार्वती की अप्सरा सखी बनना, काञ्चनमालिनी अप्सरा द्वारा माघ स्नान के पुण्य दान से राक्षस का उद्धार करना ), पद्म ६.१२७.५७ ( विस्तार में वही कथा ), कथासरित् २.५.२२ ( वत्सराज उदयन की भार्या वासवदत्ता की सखी ) ।
काञ्चनाक्षी वामन ३७.२८ ( नैमिषारण्य में सरस्वती का काञ्चनाक्षी नाम से प्रकट होना ), ६३.६० ( विश्वकर्मा की पुत्री चित्राङ्गदा का सरस्वती जल में गिरना और काञ्चनाक्षी सरस्वती का उसे गोमती में फेंकना ), स्कन्द ४.१.२९.४१ ( गङ्गा सहस्रनामों में से एक ) ।
काञ्ची गर्ग ४.१९.२६ ( यमुना सहस्रनामों में से एक ), देवीभागवत १२.६.३३ ( गायत्री सहस्रनामों में से एक ), ब्रह्माण्ड ३.४.५.१ ( काञ्ची नगरी में अगस्त्य - हयग्रीव संवाद ), ३.४.३९.१५ ( शिव के नेत्र रूपी काञ्ची की महिमा ), पद्म ६.२२२.३६ ( इन्द्रप्रस्थ तीर्थ के अन्तर्गत शिव काञ्ची का माहात्म्य : हेरम्ब ब्राह्मण का शिव व विष्णु लोक गमन ), वराह १३७.८० ( ब्रह्मदत्त - पुत्र सोमदत्त द्वारा हत सृगाली का काञ्चीराज की सुता के रूप में जन्म लेकर कलिङ्गराज की रानी बनने का वृत्तान्त ), वायु ४३.२५ ( भद्राश्व वर्ष की महानदियों में से एक ), ४४.१८ ( केतुमाल वर्ष की महानदियों में से एक ), १०४.७६.२.४२.७६ ( काञ्ची की शरीर में लिङ्ग देश में स्थिति ), १०४.८० ( काञ्ची पीठ की शरीर में कटि में स्थिति ), स्कन्द १.३.१.३.५९ ( शिव के नेत्र पिधान के पाप से मुक्ति पाने के लिए पार्वती द्वारा काञ्ची में कम्पा नदी तट पर तप का वृत्तान्त ), २.४.२६.५ ( काञ्चीपुरी के चोल राजा की विष्णुदास द्विज से भक्ति में स्पर्धा का वृत्तान्त ), लक्ष्मीनारायण ३.१२०.२५ ( काञ्चीपुरी में महालक्ष्मी की शिव - भार्या व विष्णु - भार्या, द्वैध रूप में स्थिति का वृत्तान्त ), कथासरित् ७.९.९० ( प्राणधर नामक तक्षा द्वारा यन्त्र की सहायता से काञ्ची के राजा बाहुबल के कोष के हरण का वृत्तान्त ), ८.१.४४ ( काञ्ची के राजा कुम्भीर की कन्या वरुणसेना की सूर्यप्रभ पर आसक्ति ) । kaanchi/ kanchi
काजल पद्म २.८६.७० ( दीपक के काजल के संदर्भ में विषयों को काजल बनाने का निर्देश ) ।
काण स्कन्द ५.३.१.१५ ( श्रुति अथवा स्मृति से हीन विप्र की काण संज्ञा का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.१७६.३७ ( ज्योतिष में ग्रहों व नक्षत्रों के विशिष्ट काण नामक योग का फल ), कथासरित् १.१.५९ ( काणभूति : सुप्रतीक यक्ष का कुबेर के शाप से काणभूति पिशाच बनना व पुष्पदन्त नामक शिवगण को काणभूति के दर्शन पर जाति स्मरण होना ), १.२.१९ ( वही), १.२.३०+ ( काणभूति का पुष्पदन्त / वररुचि से उसके जन्म का वृत्तान्त सुनना ), १.६.३ ( काणभूति के दर्शन पर माल्यावान / गुणाढ~य को जाति ज्ञान होना, काणभूति का गुणाढ्य से उसके जीवन का वृत्तान्त सुनना ), १.८.१ ( काणभूति द्वारा गुणाढ्य को पुष्पदन्त से सुनी हुई सात कथामयी दिव्य कथाएं सुनाना ), ३.२.११ ( काणवटु : वत्सराज उदयन के सचिव वसन्तक द्वारा धारित छद्म रूप ) । kaana
काण्ड लक्ष्मीनारायण ३.७९.३४ ( काण्डायन महर्षि की पुत्री ब्रह्मप्रथा का हरिप्रथ मनु से विवाह ), ३.१९४.९८ ( चक्रधर राजा के अमात्य देवविश्राम द्वारा काण्डिका नामक अभिचारिका योगिनी के वध पर स्त्री वध पाप से मुक्ति हेतु विष्णुयाग का अनुष्ठान करना, यज्ञ में विष्णु का प्रकट होना, अभिचारिका का विद्युत रूप में विष्णु में लीन होना ), ४.१०१.१२९ ( श्रीकृष्ण - पत्नी वैष्णवी से उत्पन्न पुत्री का काण्डिका नाम ) । kaanda
काण्व ब्रह्म २.७८.४ ( कण्व - पुत्र बाह्लीक का उपनाम, काण्व द्वारा आहुति देते समय अग्नि के उपशान्त होने व कोटितीर्थ स्थापित होने का वृत्तान्त ), विष्णु ३.५.३० ( याज्ञवल्क्य द्वारा प्रवर्तित यजुर्वेद की १५ शाखाओं में से एक ) । kaanva
कण्व वैदिक निघण्टु में कण्व मेधावि नामों के अन्तर्गत आता है । ऋग्वेद १०.११५.५ में सायण ने कण्व का अर्थ स्तुति योग्य किया है । कण्व शब्द कनि धातु से बना प्रतीत होता है जिससे कनक, सोना शब्द बना है । कन् धातु दीप्ति, कान्ति, गति के अर्थों में प्रयुक्त होती है । कण धातु शब्द के अर्थ में है । कण और अण धातु साथ - साथ आती हैं। अण धातु से अणु शब्द बना है जिसका तात्पर्य होता है अल्प परिधि का द्रव्य । लोकोक्ति है कि कण का या अणु का प्रतिपादन कणाद ऋषि ने किया । अथर्व वेद २.२५ में कण्व को गर्भ को खाने वाले, पाप कहा गया है ।
काण्वायन भागवत १२.१.१९ ( काण्वायन उपनाम वाले वसुदेव द्विज अमात्य द्वारा शुङ्गवंशी राजा देवभूमि का वध करके राजा बनना, वसुदेव के पुत्र राजाओं की काण्वायन संज्ञा ) मत्स्य ४९.४७ ( कण्व - पुत्र मेधातिथि के द्विज पुत्रों की संज्ञा ), १९६.२१ ( काण्वायन गोत्र के प्रवर आदि का कथन ), २७२.३३ ( काण्वायन उपनाम वाले वसुदेव द्विज अमात्य द्वारा शुङ्गवंशी राजा देवभूमि का वध करके राजा बनना, वसुदेव के पुत्र राजाओं की काण्वायन संज्ञा ) ; द्र. कण्व, ऋग्वेद ८.५५.४ ।
कातन्त्र कथासरित् १.७.१३ ( स्कन्द / कार्त्तिकेय द्वारा निर्मित संक्षिप्त व्याकरण का नाम, अन्य नाम कलाप ) ।
कात्यायन अग्नि ११७ ( कात्यायन द्वारा श्राद्ध कल्प का वर्णन ), ३४९+ ( कात्यायन द्वारा कार्त्तिकेय से व्याकरण रूपी उपदेश का श्रवण ), ३५१.१ ( स्कन्द द्वारा कात्यायन को विभक्ति सिद्ध रूपों का वर्णन ), ब्रह्म १.११.९२( विश्वामित्र - पुत्र कति से कात्यायन नाम की प्रसिद्धि का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त २.४.५६(कात्यायन द्वारा शिव से सरस्वती कवच की प्राप्ति), २.५१.४१ ( सुयज्ञ नृप द्वारा अतिथि की उपेक्षा करने पर कात्यायन द्वारा कृतघ्नता दोष का निरूपण - कृत्वा शपथरूपं च सत्यं हन्ति न पालयेत् ।। स कृतघ्नः कालसूत्रे वसेदेव चतुर्युगम् ।। ), भविष्य ३.२.३४.६( कात्यायन द्वारा शूद्र राजा महानन्द को सप्तशती के मध्यम चरित्र का उपदेश ), ३.२.३५.३( सप्तशती के उत्तम चरित्र के माहात्म्य के संदर्भ में कात्यायन की महाभाष्यकार पतञ्जलि से वाद में विजय व पराजय का कथन ), ३.४.२१.१४ ( कलियुग में कात्यायन का कण्व - पौत्रों के रूप में जन्म का उल्लेख ), मत्स्य १९२.१० ( शुक्ल तीर्थ का सेवन करने वाले ऋषियों में से एक ), १९६.३३ ( कात्यायन गोत्र के प्रवर का उल्लेख ), वामन १८.७ ( कात्यायन ऋषि द्वारा देवों के एकत्रित तेज में अभिवृद्धि करने पर कात्यायनी देवी के प्राकट्य का कथन ), वायु १०६.३७ ( ब्रह्मा के गयासुर की देह पर हो रहे यज्ञ के ऋत्विजों में से एक ), वा.रामायण १.७.५ ( राजा दशरथ के मन्त्रियों मे से एक ), स्कन्द १.२.२.३० ( कात्यायन द्वारा सारस्वत मुनि से तप व दान के बीच श्रेष्ठता की पृच्छा, सारस्वत द्वारा दान की श्रेष्ठता का प्रतिपादन ), ६.१२९.७१ ( कात्यायनी व याज्ञवल्क्य के वेद सूत्रकार पुत्र का उल्लेख ), ६.१३२.३० ( याज्ञवल्क्य व कात्यायनी - पुत्र, वररुचि - पिता, कात्यायन द्वारा वास्तु नामक भयङ्कर प्राणी की शान्ति के लिए सर्वप्रथम वास्तु पूजा विधान करना ), लक्ष्मीनारायण १.५०१.१०१ ( वही), कथासरित् १.२.१ ( शाप से मानव शरीर धारण करने पर पुष्पदन्त नामक शिव के गण का नाम, अन्य नाम वररुचि, पुष्पदन्त /कात्यायन का काणभूति को महाकथा का वाचन करना ) ; द्र. वररुचि ; प्रश्नोपनिषद १ में कबन्धी कात्यायन का पिप्पलाद मुनि से प्रजा की उत्पत्ति विषयक प्रश्न व पिप्पलाद द्वारा प्राण व रयि का निरूपण । kaatyaayana /katyayana
कात्यायनी देवीभागवत १२.६.२८ ( गायत्री सहस्रनामों में से एक ), नारद १.११५.३४ ( आश्विन शुक्ल षष्ठी को कात्यायनी देवी की पूजा का विधान ), भविष्य १.५७.५( कात्यायनी हेतु यवागू बलि का उल्लेख - कात्यायन्यै यवागूं च श्रियै दद्यात्तथा दधि । ।), भागवत १०.२२.१ ( गोपियों द्वारा कृष्ण की पति रूप में प्राप्ति के लिए मार्गशीर्ष मास में कात्यायनी देवी की पूजा, कृष्ण द्वारा चीर हरण प्रसंग ), मार्कण्डेय ९१.१/८८.१( शुम्भ असुर के वध पर देवों द्वारा कात्यायनी की स्तुति : देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य । प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य॥), वामन १८.८ ( देवताओं व कात्यायन ऋषि के एकीभूत तेज से कात्यायनी देवी के विभिन्न अङ्गों का प्राकट्य, देवों द्वारा कात्यायनी को अस्त्रों आदि की भेंट ), १९.१ ( चण्ड व मुण्ड द्वारा महिषासुर से कात्यायनी देवी के सौन्दर्य का वर्णन ), १९.२१ ( महिषासुर द्वारा कात्यायनी से विवाह के प्रस्ताव के लिए दुन्दुभि दैत्य का प्रेषण ), २०.१ ( कात्यायनी देवी का महिषासुर से युद्ध व उसका वध ), ५४.२४ ( पार्वती के परित्यक्त कृष्ण कोश से कात्यायनी देवी का प्राकट्य, अन्य नाम कौशिकी व विन्ध्यवासिनी ), स्कन्द ४.२.७२.५८ ( कात्यायनी से वदनमण्डल की रक्षा की प्रार्थना - पायात्सदैव चिबुकं जयमंगला नः कात्यायनी वदनमंडलमेव सर्वम् ।।), ५.३.२६.११८ ( नवमी तिथि को कात्यायनी हेतु गन्ध धूप दान का फल ), ६.१२०.१३+ ( देवों व कार्त्तिकेय के तेजों के मिश्रण से कात्यायनी देवी की उत्पत्ति, निरुक्ति, देवों द्वारा आयुधों की भेंट, महिषासुर से युद्ध व महिषासुर का पराभव ), ६.१३०.३ ( याज्ञवल्क्य - पत्नी, मैत्रेयी - सपत्ना कात्यायनी द्वारा सौभाग्य प्राप्ति हेतु शाण्डिली के परामर्श से तृतीया तिथि को पञ्चपिण्डा गौरी की आराधना, कात्यायन पुत्र की प्राप्ति ), ७.३.२४.१ ( अर्बुद पर्वत वासिनी कात्यायनी देवी द्वारा शुम्भ दैत्य के वध का वृत्तान्त ), लक्ष्मीनारायण १.१६३.३० ( देवताओं व कात्यायन ऋषि के एकीभूत तेज से कात्यायनी देवी का प्राकट्य, देवों द्वारा कात्यायनी को अस्त्रों आदि की भेंट ), १.१६५.२५ ( कात्यायनी द्वारा महिषासुर के वध पर महिषासुर - भार्या कुण्ढी द्वारा कात्यायनी को पति मरण का शाप, कात्यायनी का कालान्तर में दक्ष - पुत्री व हिमालय - कन्या आदि बनना ), २.२७.६२ ( कात्यायनी का अष्टमी को शयन ), २.२७.१०२ ( कात्यायनी से शमी की उत्पत्ति ), कथासरित् १२.१४.४५ ( राजा चण्डसिंह के अनुचर सत्त्वशील द्वारा कात्यायनी देवी के मन्दिर व देवी के प्रभा मण्डल से निर्गत कन्या के दर्शन करने का वृत्तान्त ), १२.३४.५४ ( कात्यायनी नामक तापसी द्वारा राजा महासेन के पुत्र सुन्दरसेन को मन्दारवती कन्या के सौन्दर्य से अवगत कराना ) ; कात्यायनी = कान्त्यायनी । kaatyaayani
कादम्बरी हरिवंश २.४१.१३ ( वारुणी का नाम, कदम्ब से उत्पत्ति ) ।
कादम्बिनी पद्म ६.२०३.५१( सारङ्ग द्वारा कादम्बिनी के जल की अभीप्सा का उल्लेख )
कानीन भागवत ९.२.२१( अग्निवेश्य का उपनाम, अन्य नाम जातूकर्ण्य ) ।
कान्त ब्रह्माण्ड ३.४.१.८८ ( १२वें रुद्रसावर्णि / ऋतुसावर्णि मन्वन्तर में सुकर्मा नामक देवगण में से एक ), वराह ३६.७ ( कृतयुग के कान्त राजा का त्रेतायुग में दशरथ बनने का उल्लेख ), वायु १००.९३ ( १२वें रुद्रसावर्णि / ऋतुसावर्णि मन्वन्तर में सुकर्मा नामक देवगण में से एक ) ; द्र. चन्द्रकान्त, हेमकान्त । kaanta
कान्ति गरुड १.२१.३ ( सद्योजात शिव की ८ कलाओं में से एक ), १.२१.४ ( वामदेव की १३ कलाओं में से एक ), नारद १.६५.२९( चन्द्रमा की १६ कलाओं में से एक ), १.६६.८६ ( मातृका न्यास के संदर्भ में नारायण की शक्ति कान्ति का उल्लेख ), १.६६.१२६( द्विदन्त की शक्ति कान्ति का उल्लेख ), पद्म ६.१०८.५ ( कान्तिपुरी में चोल नृप व विष्णुदास विप्र की विष्णु भक्ति में स्पर्द्धा की कथा ), ब्रह्माण्ड २.३.१२.३२ ( कान्ति प्राप्ति हेतु गायों को पिण्ड दान का निर्देश ),
३.४.३५.९४ ( ब्रह्मा की १० कलाओं में से एक ), ३.४.४४.७२ ( ५१ गणेशों में से एक की शक्ति का नाम ), मत्स्य १०१.४५ ( कान्ति व्रत की विधि व संक्षिप्त माहात्म्य ), वराह ५७.१ ( कान्ति व्रत की विधि व माहात्म्य : सोम की यक्ष्मा रोग से मुक्ति ), विष्णुधर्मोत्तर १.४२.१९( ऊरुद्वय में कान्ति की स्थिति ), स्कन्द १.१.७.३३( कान्ति में मल्लालनाथ? लिङ्ग की स्थिति का उल्लेख ), १.३.२.२२.३ ( कान्तिशाली विद्याधर का दुर्वासा के शाप से वज्राङ्गद राजा का अश्व बनना, शोणाद्रि की परिक्रमा से शाप से मुक्ति का वर्णन ), ४.१.७.१०० ( महाकालवन की यात्रा के पश्चात् शिवशर्मा द्विज का कान्ति नगरी में आगमन, कान्ति नगरी की महिमा का वर्णन ), हरिवंश २.४१.२६ ( गोमन्त पर्वत पर कदम्ब वृक्ष से वारुणी के सेवन पर बलराम के समक्ष कान्ति आदि तीन देवियों का प्रकट होना, बलराम को भेंट देना व आत्मसमर्पण करना ) । kaanti
कान्तिमती गरुड ३.२८.५५(कुश - पत्नी, शची का अंश), पद्म १.१५.१३ ( ब्रह्मा की सभा का नाम ), ५.६७.३७( पुष्कल - पत्नी ), ५.९५.१२३ ( अम्बरीष की भार्या कान्तिमती के पूर्व जन्म का वृत्तान्त : देवदास हेमकार की वेश्या पत्नी द्वारा माधव मास धर्म के सेवन से कान्तिमती के रूप में जन्म ), भविष्य ३.३.३१.१२२ ( मद्रकेश - कन्या व सूर्यवर्मा - भार्या कान्तिमती का कर्बुर राक्षस द्वारा हरण, कृष्णांश / उदयसिंह द्वारा कान्तिमती की मुक्ति का उद्योग, कान्तिमती का पूर्वजन्म में कर्बुर - भार्या होने का उल्लेख ), स्कन्द २.७.१८.४० ( व्याध के पूर्व जन्म का वृत्तान्त :भार्या कान्तिमती द्वारा स्तम्ब नामक वेश्यारत द्विज पति की सेवा का वर्णन ), ३.१.८.९ ( गालव की कन्या कान्तिमती पर विद्याधर कुमारों सुदर्शन व सुकर्ण की आसक्ति, सुदर्शन द्वारा कान्तिमती से बलात्कार पर गालव द्वारा विद्याधर भ्राता - द्वय को मनुष्य व वेताल बनने का शाप ), ५.१.१.२१ ( देवों की कान्तमती सभा में स्थित सनत्कुमार द्वारा महाकालवन की महिमा का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.२६५.१०( श्रीधर की पत्नी कान्तिमती का उल्लेख ), १.४२८.३ ( राजा वीरबाहु की पतिव्रता पत्नी कान्तिमती के पूर्व जन्मों का वृत्तान्त : पूर्व जन्मों में शूद्र व विप्र की पतिव्रता पत्नी ), कथासरित् ८.१.४७ ( श्रीकण्ठ देश के राजा कान्तिसेन की कन्या कान्तिमती का सूर्यप्रभ की पत्नी बनना ), १२.१.५२ ( शूरदत्त के पुत्र वामदत्त का महिष योनि से मुक्ति पाकर योगिनी की कन्या कान्तिमती से विवाह करना, कान्तिमती की कन्या ललितलोचना का वृत्तान्त ) । kaantimati
कान्यकुब्ज पद्म १.३८.१२२, १.३८.१८६ ( लङ्का में विभीषण से प्राप्त वामन मूर्ति की राम द्वारा कान्यकुब्ज / महोदय में प्रतिष्ठा ), ६.१३३.८ ( जम्बू द्वीप के तीर्थों में विष्णु के नामों के संदर्भ में कान्यकुब्ज में वामन रूपी विष्णु की स्थिति ), भविष्य २.२.८.१२८( कान्यकुब्ज में महाकार्तिकी पूर्णिमा के विशेष फल का उल्लेख ), ३.१.६.४५ ( कान्यकुब्ज द्विज का अर्बुद शिखर पर ब्रह्महोम करके चार क्षत्रिय पुत्रों को प्राप्त करना, कान्यकुब्ज द्वारा बौद्धों व अशोक राजा का नाश ), ३.४.३.४३ ( राष्ट्रपाल राजा के पुत्र प्रजय द्वारा शारदा देवी की आराधना से कान्यकुब्ज नगर प्राप्त करने का वृत्तान्त, कान्यकुब्ज नाम का कारण ), भागवत ६.१.२१ ( कान्यकुब्ज नगर के भ्रष्ट द्विज अजामिल द्वारा नारायण शब्द उच्चारण से विष्णुलोक प्राप्ति की कथा ), मत्स्य १३.२९ ( कान्यकुब्ज पीठ में सती देवी का गौरी नाम से वास ), स्कन्द ३.२.३६.१२ ( कलियुग में कान्यकुब्ज के अधिपति आम की कन्या रत्नगङ्गा द्वारा जैन धर्म स्वीकार करने व स्वयं राजा द्वारा बौद्ध धर्म को प्रश्रय देने व ब्राह्मणों का तिरस्कार करने का वृत्तान्त ), ५.३.१९८.६६ ( कान्यकुब्ज तीर्थ में उमा की गौरी नाम से स्थिति का उल्लेख ), कथासरित् ३.६.१६८ ( कान्यकुब्ज वासी सुन्दरक पर गुरु - पत्नी कालरात्रि की आसक्ति, सुन्दरक द्वारा कालरात्रि देवी से उडने का मन्त्र सीखने व मालवा की मूली कान्यकुब्ज में बेचने आदि का वृत्तान्त ), ४.१.८६ ( राजकुमार जयदत्त द्वारा कान्यकुब्ज के चक्रवर्ती नृप की सहायता से अपने राज्य को शत्रुओं से मुक्त करने का वृत्तान्त ), १०.५.२१९ ( कान्यकुब्ज देश के चन्द्रापीड राजा के धवलमुख नामक राजसेवक द्वारा अपने मित्रों कल्याणवर्मा व वीरबाहु की मित्रता की परीक्षा का वृत्तान्त ), १२.१.३३ ( कान्यकुब्ज देश के वामदत्त ब्राह्मण की स्वैरिणी पत्नी द्वारा स्वपति को महिष बनाने व कालान्तर में वामदत्त के मुक्त होने की कथा ), १२.९.८ ( कान्यकुब्ज देश के तीन ब्राह्मणकुमारों की मन्दारवती कन्या पर आसक्ति व मन्दारवती की मृत्यु पर उसे पुन: जीवित करने व विवाह का वृत्तान्त ) । kaanyakubja/ kanyakubja
काम अग्नि ३४८.२ ( काम अर्थ में °इ° एकाक्षर के प्रयोग का उल्लेख ), गणेश १.८८.३ ( शिव द्वारा काम के भस्म होने पर रति द्वारा शिव से वर प्राप्ति, काम का मन स्मरण मात्र से प्रकट होने तथा प्रद्युम्न रूप में अवतरित होने का वर, काम द्वारा गणेश की आराधना से देह युक्त होना ), २.१४.१२ ( महोत्कट गणेश द्वारा खर रूप धारी काम व क्रोध राक्षसों का वध ), २.७६.१४ ( विष्णु व सिन्धु के युद्ध में शम्बर का मदन से युद्ध ),२.७७.४ ( सिन्धु असुर द्वारा मन्मथ के पादों? पर आघात ), गरुड १.२१.४( कामा : वामदेव की १३ कलाओं में से एक ), ३.२४.८६(आरोग्यों के अधिपति काम का उल्लेख), ३.२८.३०(काम का भरत रूप में अवतरण), ३.२८.३१(चक्राभिमानी काम का सुदर्शन नाम, स्कन्द के कामावतार होने का उल्लेख), ३.२८.३२(काम का सनत्कुमार आदि ६ रूपों में अवतार), गर्ग ७.३१.३६ ( काम वन में प्रद्युम्न का आगमन , स्व - स्वरूप में लीन होने का उल्लेख ), देवीभागवत ४.६.६ ( नर - नारायण की तपस्या से भयभीत इन्द्र की आज्ञा से कामदेव के रति सहित बदरिकाश्रम में वास का कथन ), ८.९.१० ( केतुमाल वर्ष में कामदेव रूप हरि की लक्ष्मी द्वारा आराधना , स्तोत्र कथन ), पद्म १.२०.५५ ( काम व्रत विधि व माहात्म्य ), १.२३.११० ( दाल्भ्य द्वारा वेश्या कल्याण के लिए कामदेव रूप विष्णु पूजन विधि का वर्णन ), १.४३.२०६ ( इन्द्र के कहने पर कामदेव द्वारा शिव के निकट जाने में असमर्थता व्यक्त करना ), १.४३.२११ ( पुन: रति और वसन्त के साथ शिव के निकट गमन ), १.४३.२४२ ( शिव नेत्र से निर्गत ज्वाला से काम का भस्म होना ), १.४३.२६२ ( रति की स्तुति से प्रसन्न शिव द्वारा कामदेव के पुनर्जन्म तथा अनङ्ग नाम से प्रसिद्ध होने का कथन ),१.५४ ( काम - पीडित इन्द्र द्वारा गौतम - पत्नी अहल्या से दुराचार की कथा ), २.७६.२० ( ययाति के चरित्र पतन हेतु धर्म के अनुरोध पर इन्द्र द्वारा कामदेव का आह्वान, कामदेव का रति, गन्धर्व आदि की सहायता से नाट्य रचना द्वारा ययाति को मुग्ध करना ), ब्रह्म १.३६.१२ ( शिव द्वारा काम के भस्म हो जाने पर रति का विलाप , कृष्ण - पुत्र प्रद्युम्न के रूप में काम का पुनर्जन्म , वर प्रदान ), २.२.३७ ( काम का शिव के समीप जाना , शिव द्वारा दग्ध होना ), ब्रह्मवैवर्त्त १.४.६ -८ ( परमात्मा कृष्ण के मन से कामदेव की उत्पत्ति , अपर नाम मन्मथ, रति - पति, पञ्च बाण धारक ), ४.३१.६५ ( ब्रह्मा के भाव को जानकर तथा अपना प्रयत्न निष्फल समझकर मोहिनी द्वारा काम की स्तुति ), ४.३९.४३ -५३ ( इन्द्र की आज्ञा से कामदेव का शिव के समीप गमन तथा शिव की क्रोधाग्नि से भस्म हो जाने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.९.५८,६२ ( श्रद्धा व धर्म - पुत्र, हर्ष - पिता ), १.२.११.३५ ( यशोधरा व कनकपीठ - पुत्र ), २.३.३.३० ( धर्म व विश्वा के दस पुत्रों में से एक विश्वेदेव ), २.३.७.२४ ( अप्सराओं के चौदह गणों में से १४वें गण शोभयन्ती की अप्सराओं के काम से उत्पन्न होने का उल्लेख ), २.३.८.१५ ( कामदेव को अप्सरा गणों का अधिपति बनाने का उल्लेख ), ३.४.१९.६९( कामराज, कंदर्प आदि ५ कामों के स्वरूप का कथन ), भविष्य ४.१११ ( पण्यस्त्री व्रत में विष्णुरूप कामदेव का पूजन ), ४.१३५ ( काम उत्सव वर्णन ), भागवत १.२.९ -१० ( पुरुषार्थ - चतुष्टय के अन्तर्गत जीवन में काम के स्थान का उल्लेख ), ३.१२.२६ ( ब्रह्मा के हृदय से काम की उत्पत्ति का उल्लेख ), ५.१८.१५, ५.१८.१८ ( केतुमाल वर्ष में भगवान की कामदेव रूप से स्थिति , लक्ष्मी द्वारा भगवान कामदेव की आराधना ), ६.६.१० ( दक्ष - कन्या संकल्पा का पौत्र, संकल्प - पुत्र ), ६.८.१७ ( नारायण कवच में सनत्कुमार से कामदेव से रक्षा की प्रार्थना ), ८.७.३२ ( शिव द्वारा काम को भस्म करने का उल्लेख ), ८.१०.३३ ( देवासुर संग्राम में कामदेव का दुर्मर्ष से युद्ध ), १०.५५ ( वासुदेव के अंश कामदेव का श्रीकृष्ण - पुत्र प्रद्युम्न के रूप में पुनर्जन्म का वर्णन ), ११.४.७ ( नर की तपस्या से भयभीत होकर इन्द्र द्वारा तप में विघ्न हेतु कामदेव का प्रेषण ), ११.१९.३७ ( काम त्याग का तप नाम होने का उल्लेख ), मत्स्य ३.३३ ( अपनी पुत्री सावित्री को देखकर कामबाण से पीडित ब्रह्मा के व्यथित होने का उल्लेख ), ४.१३ ( ब्रह्मा द्वारा कामदेव को रुद्र द्वारा भस्मीभूत होने का शाप दिए जाने पर कामदेव का ब्रह्मा को प्रसन्न करना, कर्त्तव्य पालन की याद दिलाने पर ब्रह्मा का कामदेव को कृष्ण - पुत्र प्रद्युम्न के रूप में उत्पन्न होने का वरदान ), ७.१३-२३ ( मदन द्वादशी व्रत विधि वर्णन में कदली दल के ऊपर काम की स्थापना, कामदेव नामक विष्णु की आराधना में विष्णु के पैरों में कामदेव की भावना करते हुए केशव के सांगोपांग पूजन का वर्णन, कामदेव की स्वर्ण निर्मित प्रतिमा का द्विज को दान ), २३.२३ ( चन्द्रमा के अवभृथ स्नान कर लेने पर कामबाण से तप्त अंगों वाली लक्ष्मी , सिनीवाली आदि नौ देवियों द्वारा चन्द्रमा की सेवा का उल्लेख ), १००.३२ ( विभूति द्वादशी व्रत के प्रभाव से अनंगवती वेश्या का कामदेव की पत्नी तथा रति की सपत्नी होने का उल्लेख, काम - पत्नी बनकर अनंगवती का प्रीति रूप से प्रसिद्ध होना ), १०१.१० ( प्रद्युम्न के प्रीत्यर्थ कामव्रत विधि व फल वर्णन ), १५४.२१९ ( इन्द्र के कहने पर रति सहित कामदेव का मित्र मधुमास को साथ लेकर हिमालय पर शिव के निकट गमन ), १५४.२३६ -२७२ ( काम द्वारा शिव का मोहन , दग्ध होना , रति द्वारा शिव स्तुति, शिव द्वारा काम के पुनर्जन्म का कथन ), १९१.११० ( नर्मदा के दक्षिण तट पर स्थित कुसुमेश्वर तीर्थ में शिव की उपासना कर कामदेव द्वारा पुन: देवत्व प्राप्ति ), २६१.५३ ( कामदेव प्रतिमा का रूप ), २७७.६ ( कल्पवृक्ष दान के संदर्भ में कल्पवृक्ष के अधोभाग में पत्नी सहित कामदेव की कल्पना करने का निर्देश ), महाभारत वन ३३.३०( द्रव्यों के स्पर्श तथा धनादि लाभ से प्रसन्नता होने पर तदर्थ चित्त में उठे संकल्प का ही °काम° नाम से उल्लेख ), ३३.३८ ( ज्ञानेन्द्रियों , मन तथा बुद्धि की विषयों में प्रवृत्ति होने पर उत्पन्न हुई प्रीति के ही काम होने तथा धर्म अर्थ व काम - तीनों के परस्पर अविरोधपूर्वक सेवन करने का कथन ), ३१३.७८ ( काम के त्याग से अर्थवान् बनने का उल्लेख : यक्ष - युधिष्ठिर संवाद ), ३१३.९७ ( यक्ष द्वारा युधिष्ठिर से °काम ° के विषय में प्रश्न करने पर युधिष्ठिर द्वारा संसारहेतु (वासना) को ही काम बतलाने का उल्लेख ), शान्ति १६३.८ ( संकल्प से काम की उत्पत्ति , सेवन से वृद्धि तथा विरक्ति से काम के तत्काल नष्ट हो जाने का उल्लेख ), १६७.८ ( विदुर द्वारा धर्म, अर्थ तथा काम के त्रिवर्ग में से काम की कनिष्ठता का उल्लेख ), १६७.१२ ( अर्जुन द्वारा अर्थ की श्रेष्ठता बतलाते हुए अर्थ के बिना धर्म और काम की असिद्धि का कथन ), १६७.२७ ( नकुल व सहदेव द्वारा धर्म व अर्थ की अनुकूलता रखते हुए काम सेवन का कथन ), १६७.२८ ( भीमसेन द्वारा त्रिवर्ग में काम की श्रेष्ठता का प्रतिपादन ), १७७.१६ ( मङ्कि गीता के अन्तर्गत काम को त्यागने के संकल्प का वर्णन ),१७८, २५४.१७८ ( काम / कामना रूपी अद्भुत् वृक्ष का तथा उसे काटकर मुक्ति प्राप्त करने के उपाय का कथन ), अनुशासन ४४ ( कामोपभोग से काम वृद्धि का उल्लेख ), आश्वमेधिक १३.१२ ( कामगीता के अन्तर्गत वास्तविक उपाय का आश्रय लेकर ही काम / कामना के नाश का कथन ), मार्कण्डेय ५०.२४-२५ ( धर्म व श्रद्धा - पुत्र, अतिमुद हर्ष - पिता ), लिङ्ग १.१०१.३२ ( इन्द्र द्वारा काम का स्मरण तथा काम को स्वकार्य से अवगत कराना , शिव की नेत्राग्नि से काम का भस्म होना , रति विलाप, शिव द्वारा रति को काम के अनंग रूप से रहने तथा पश्चात् कृष्ण - पुत्र प्रद्युम्न रूप से पति प्राप्ति की सान्त्वना का वृत्तान्त ), वराह २७.३५ (आठ मातृकाओं में से एक योगीश्वरी मातृका ), ६१( कामना सिद्धि हेतु काम व्रत विधि व माहात्म्य का वर्णन), वामन ६.२४ ( कन्दर्प : हर्ष - पुत्र, शंकर द्वारा भस्म होकर अनंगत्व प्राप्ति का उल्लेख ), ६.४३ ( पूर्व में उन्मादन बाण से विद्ध शिव को कामदेव द्वारा सन्तापन बाण से विद्ध करने का उल्लेख ), वायु १०.३३, ३७ ( श्रद्धा व धर्म - पुत्र , हर्ष - पिता ), २८.३० ( यशोधारी व कनकपीठ के एक पुत्र का नाम ), ६६.३१ ( धर्म व विश्वा के दस विश्वेदेव पुत्रों में से एक विश्वेदेव ), ६९.५८ ( अप्सराओं के चौदह गणों में से चौदहवें गण शोभयन्ती की अप्सराओं का काम - कन्याएं होने का उल्लेख ), ७०.१४ ( कामदेव को अप्सरा गणों का अधिपति बनाने का उल्लेख ), ९३.९४ ( नहुष -पुत्र ययाति के प्रसंग में जीवन में कामनाओं के उपभोग से काम के शान्त न होने का उल्लेख ), विष्णु १.७.२८ ( श्रद्धा व धर्म - पुत्र , हर्ष - पिता ), १.८.२० ( इच्छा - पति ), ५.२७.३० ( नारद द्वारा कामदेव के ही कृष्ण - पुत्र प्रद्युम्न रूप में अवतीर्ण होने तथा शम्बरासुर - दासी मायावती के कामदेव - पत्नी रति होने के रहस्य का वर्णन ), विष्णुधर्मोत्तर ३.७३.१९ ( कामदेव मूर्ति निर्माण विधि का वर्णन ), ३.१८३ ( शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी में कामदेव व्रत विधि व फल का वर्णन ), ३.२४१ ( धर्म, अर्थ से रहित काम सेवन से मनुष्य की दुरावस्था का उल्लेख ), शिव २.२.२ ( काम के प्रादुर्भाव का वर्णन ), २.२.३ ( काम के विविध नामों का उल्लेख, काम द्वारा विकार युक्त होने पर ब्रह्मा द्वारा काम को शाप, पश्चात् काम द्वारा स्व कर्त्तव्य की याद दिलाने पर ब्रह्मा द्वारा काम पर अनुग्रह रूप में पुनर्जन्म में शरीर प्राप्ति का कथन ), २.२.४ ( दक्ष - पुत्री रति से कामदेव के विवाह का वर्णन ), २.२.८.५० ( वसन्त तथा रति के साथ कामदेव के शिव के समीप गमन का उल्लेख ), २.२.९ (शिव सम्मोहन में काम की असफलता तथा स्वाश्रम को लौटना ),२.३.१३.५७ ( तारकासुर से पीडित देवों द्वारा ब्रह्मा की आज्ञा से कामदेव को शिव के समीप भेजने तथा काम के भस्म होने का उल्लेख ), २.३.१७ ( कामेदव - इन्द्र संवाद का वर्णन , इन्द्र के कहने से कामदेव का वसन्त तथा रति के साथ शिव के समीप गमन ), २.३.१९ ( शिव कृत काम दाह, रति विलाप , देवों के प्रार्थना करने पर शिव द्वारा काम का प्रद्युम्न रूप में पुनर्जन्म ), २.३.५१( विवाहोत्सव को अनुकूल अवसर जानकर रति द्वारा काम संजीवन हेतु शिव से प्रार्थना , शिव द्वारा काम का संजीवन ), स्कन्द १.१.२१.८२ ( देवों द्वारा काम के भस्म होने का कारण पूछने पर महादेव द्वारा काम के दोष का कथन, देवों द्वारा प्रत्युत्तर में काम की अनिवार्यता का उल्लेख ), १.२.१३.१६७ ( शतरुद्रिय प्रसंग में कामदेव द्वारा गुड के शिवलिङ्ग की रतिद नाम से पूजा ), १.२.२४.१८ ( शिव मोहन हेतु इन्द्र के प्रार्थना करने पर काम का स्वयं को त्याज्य बतलाना , पुन: इन्द्र द्वारा काम के तामस , राजस व सात्विक रूपों को बताकर काम की अनिवार्यता का निरूपण ), १.२.२४.४० ( शिव की क्रोधाग्नि से काम का भस्म होना, विलाप करती हुई रति को देखकर शिव द्वारा रति को कृष्ण - पुत्र प्रद्युम्न के रूप में पति प्राप्ति का उल्लेख ), २.७.८.८१( इन्द्र द्वारा कामदेव का आह्वान और स्वस्वार्थ साधन का आदेश ), २.७.८.९१ ( कामदेव द्वारा क्षुब्ध होकर शिव का नेत्रोन्मीलन, वाम पार्श्व में कामदेव के दर्शन , क्रुद्ध होकर काम के दहन का वर्णन ), ३.२.३१.७६ ( राम द्वारा धर्मारण्य यात्रा प्रसंग में रामेश्वर तथा कामेश्वर लिङ्गों की स्थापना ), ४.२.८५.७६ ( दुर्वासा द्वारा स्थापित शिव लिङ्ग की कामेश्वर लिङ्ग के नाम से प्रसिद्धि ), ४.२.९७.९६ (कामेश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.१.२५.६ ( कामेश्वर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.१.३१.८९ ( कामोदक तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : स्नान से रूप प्राप्ति आदि ), ५.१.३४.२४ ( इन्द्र का कामदेव को बुलाकर स्वकार्य से अवगत कराना , काम का मधु तथा रति के साथ शिव के निकट गमन , शिव की नेत्राग्नि से काम का भस्म होना , रति का विलाप , आकाशवाणी द्वारा रति को काम के प्रद्युम्न रूप में पुनर्जन्म का आश्वासन ), ५.१.७०.७२ ( अवन्ती क्षेत्र के तीर्थों में कामेश्वर तीर्थ का उल्लेख ), ५.२.१३ ( ब्रह्मा द्वारा काम को निवास हेतु १२ स्थान प्रदान करना व शिव द्वारा दग्ध अनंग काम द्वारा स्थापित कामेश्वर लिङ्ग के माहात्म्य का वर्णन ), ५.३.७१ (कामेश्वर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : कामनानुसार प्राप्ति ), ५.३.१०६ (कामद तीर्थ माहात्म्य : तीर्थ में स्नान व उमा - रुद्र की अर्चना से सौभाग्य प्राप्ति का कथन ), ५.३.१५० ( शंकर द्वारा काम को भस्म करने पर देवों की प्रार्थना से अनंग काम को अंग युक्त करना, काम द्वारा तप करके कुसुमेश्वर नाम से शिवलिङ्ग स्थापना ), ५.३.१९८.६५ ( मन्दर पर्वत पर उमा की कामचारिणी नाम से स्थिति का उल्लेख ), ६.१२७.१६ ( पार्वती की कृपा से रूप यौवन की प्राप्ति होने पर कर्णोत्पला पर कामदेव की प्रीति , विवाह , काम - पत्नी बनकर कर्णोत्पला का प्रीति नाम होने का वृत्तान्त ), ६.१३४ ( हारीत - पत्नी पूर्णकला पर काम की आसक्ति , हारीत के शाप से काम को कुष्ठ प्राप्ति , खण्डशिला की अर्चना से मुक्ति ), ७.१.६७ ( कामेश्वर लिङ्ग का नाम हेतु कथन व माहात्म्य ), ७.१.९६ ( कामेश्वर लिंग का माहात्म्य : रति द्वारा कामदेव प्राप्ति हेतु तप से शिवलिङ्ग का उद्भूत होना , लिंग पूजन से काम की प्राप्ति ), ७.१.२०० ( काम के भस्म होने पर सृष्टि कार्य रुकने से देवों की प्रार्थना पर शिव द्वारा काम की उत्पत्ति , उस स्थान की कामकुण्ड तथा कृतस्मर नाम से प्रसिद्धि ), ७.३.४० ( शिव कृपा से अनंग काम के पुन: संजीवन पर रति व काम द्वारा अर्बुद पर्वत पर स्थापित कामेश्वर लिङ्ग का वर्णन ), हरिवंश ३.१४.४४ ( धर्म व लक्ष्मी से काम की उत्पत्ति ), योगवासिष्ठ ३.४५.१० ( सत्यकाम : काम की ही अभीष्ट सिद्धि का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.३३.५ ( ताम्बूल रस जनित विकृति शान्ति हेतु नारायण द्वारा कामदेव की उत्पत्ति , काम परिवार के अन्य सदस्य ), १.१८४.११७ ( शिव को मोहित करने में सफल न होने पर रम्भा द्वारा मोहिनी को कामदेव की सहायता लेने का परामर्श, मोहिनी व काम के सम्मिलन से भृङ्गारक व वसन्तक की उत्पत्ति, शिव मोहन वृत्तान्त ), १.१८५.५९ ( इन्द्र के आह्वान पर काम का रति और वसन्त के साथ आगमन, निर्देशानुसार काम का शिव के समीप गमन और उन्हें मुग्ध करना , शिव की क्रोधाग्नि से भस्म होना, रति - विलाप, शिव द्वारा काम को अनंग रूप से रहने तथा द्वापर में श्रीकृष्ण - पुत्र प्रद्युम्न के रूप में अवतार लेकर पुन: रति को पति रूप में प्राप्त होने का वृत्तान्त ), १.१९४.१३३ ( रति के प्रार्थना करने पर शिव द्वारा रति द्वारा सुरक्षित काम भस्म की पोटली से काम की उत्पत्ति का उल्लेख ), १.१९८ ( सृष्टि विस्तार हेतु ब्रह्मा द्वारा काम की उत्पत्ति , काम के सौन्दर्य का वर्णन , काम के विविध नाम तथा दक्ष - पुत्री रति से काम के विवाह का वृत्तान्त ), १.२५४ ( कामिका : श्रावण कृष्ण एकादशी को कामिका व्रत करने से समस्त कामनाओं की प्राप्ति व समस्त संकल्पों की सिद्धि का वर्णन ; श्रवण नामक पितरों को व्रत प्रभाव से दूर श्रवण , दूरदर्शन व गुप्त वृत्तान्त ज्ञान सिद्धि , रति को कामिका व्रत प्रभाव से स्वपति काम की प्राप्ति ), १.३१४.१०१ ( सप्तमी व्रत के प्रभाव से पुरुषोत्तम के प्रकट होने पर अरुन्धती का केवल यौवनावस्था में कामोत्पत्ति रूप वर मांगना , श्री हरि द्वारा वर प्रदान का उल्लेख ), १.३८२.२०( विष्णु के काम व लक्ष्मी के कामना होने का उल्लेख ), १.४४१.८५ ( कन्दर्प का यष्टिमधु वृक्ष रूप में अवतरण का उल्लेख ), १.५००.६५ (सत्यसन्ध राजा की कन्या कर्णोत्पला के तप से प्रसन्न गौरी द्वारा कर्णोत्पला को रूप यौवन प्रदान करना , ब्रह्मा द्वारा प्रेषित कामदेव का कर्णोत्पला से विवाह , काम - पत्नी बनकर कर्णोत्पला की प्रीति नाम से प्रसिद्धि का वृत्तान्त ), १.५०२.२६ ( हारीत मुनि की पत्नी पूर्णकला पर काम की आसक्ति , मुनि के शाप से काम को कुष्ठ रोग की प्राप्ति तथा पूर्णकला का शिला रूप होना , सूर्याराधन से काम का कुष्ठ से मुक्त होकर स्वलोक गमन तथा पूर्णकला के स्वपिता हारीत के पास गमन का वर्णन ), १.५४३.६५ ( दक्ष द्वारा काम को अर्पित २ कन्याओं रति व प्रीति का उल्लेख ), ३.६३.७९ ( पति प्राप्ति हेतु चैत्र शुक्ल एकादशी को दमनक व्रत में कामदेव की पूजा विधि का वर्णन ), ३.११५.९ ( शिव मोहन हेतु कामदेव का आगमन , शिव द्वारा दहन , काम की भस्म से चित्रकर्मा गण द्वारा भण्डासुर की उत्पत्ति का उल्लेख ), ४.२४ ( निकाम : श्री पुरुषोत्तम द्वारा निकामदेव को प्रदत्त मोक्ष साधन का वर्णन ), ४.२६.५७ ( माणिकीश आदि कृष्ण की शरण से काम से मुक्ति का कथन ), ४.४४.६१ ( काम भाव को पैशाचिक बन्धन बताकर उसके त्याग में श्री हरि की प्रसन्नता का उल्लेख ), कथासरित् २.३.७८ ( राजा चण्डमहासेन की कन्या के उत्पन्न होते ही कन्या के गर्भ से पुत्र रूप में कामदेव के अवतार होने की आकाशवाणी का उल्लेख ), ३.१.१३० ( चण्डमहासेन की कन्या वासवदत्ता के प्रणाम करने पर नारद द्वारा पुत्र रूप में कामदेव के अंश को ही प्राप्त करने तथा पुत्र के विद्याधर राज होने का आशीर्वाद ), ४.३.७३ ( उदयन के पुत्र नरवाहनदत्त के उत्पन्न होते ही बालक के कामदेव का अवतार होने तथा विद्याधरराज होने की आकाशवाणी ), १०.८.१३२ ( शशी के पूछने पर कुष्ठी का स्वयं को कामदेव कहने का उल्लेख ); द्र. निकाम । kaama
टिप्पणी : काम का एक नाम स्मर भी है । तैत्तिरीय आरण्यक १०.६३.१ में चित्त से स्मृति, स्मृति से स्मर, स्मर से विज्ञान को प्राप्त करने का उल्लेख है । इस उल्लेख से ऐसा लगता है कि स्मृति के पठन का कार्य स्मर या काम का है ।
कामकटंकटा स्कन्द १.३.५९.३७ ( श्रीकृष्ण द्वारा मुर दैत्य का वध करने पर मुर - पुत्री कामकटंकटा का श्रीकृष्ण से युद्ध हेतु उद्यत होना , कामास्या देवी का प्रकट होकर कामकटंकटा को युद्ध से रोकना तथा भीम - पुत्र घटोत्कच से कामकटंकटा के विवाह की भविष्यवाणी करना , कामकटंकटा का घटोत्कच की बल बुद्धि की परीक्षा करके ही विवाह हेतु स्वीकृति देना , सभा में विद्यमान युधिष्ठिर द्वारा घटोत्कच विवाह हेतु चिन्ता व्यक्त करने पर श्रीकृष्ण द्वारा उपर्युक्त पूर्वघटित वृत्तान्त सुनाना तथा घटोत्कच का कामकटंकटा की शर्त को पूरा करने के लिए प्राग्ज्योतिषपुर नगरी के लिए प्रस्थित होना व कामकटंकटा की शर्त को पूरा कर विजयी होना , घटोत्कच का कामकटंकटा से विवाह तथा बर्बरीक पुत्र की उत्पत्ति का वृत्तान्
कामकल्पा लक्ष्मीनारायण ३.१९.३३ ( कामकल्पा नदी तट पर सन्त योगिनी द्वारा पशुओं के चारण का उल्लेख )।
कामकोटिगा ब्रह्माण्ड ३.४.१८.१६ ( ललिता देवी के २५ नामों में से एक )
कामकोष्ठक ब्रह्माण्ड ३.४.४०.१, ३.४.४४.९४ ( कामाक्षी देवी के पचास सिद्धपीठों में से एक ) ।
कामकोष्णी भागवत १०.७९.१४ ( तीर्थयात्रा करते हुए बलराम द्वारा कामकोष्णी देवी के दर्शन का उल्लेख ) ।
काम-क्रोधादि पद्म ७.१७.६७ ( भद्रतनु द्विज द्वारा पाप विच्छेद का उपाय पूछने पर दान्त ब्राह्मण का कामक्रोधादि विकारों को यत्नपूर्वक त्यागने का उपदेश ), ७.१७.७९,८० (काम, क्रोधादि विकारों के अभिप्राय का वर्णन ), मत्स्य ३.१० ( ब्रह्मा के हृदय से कुसुमायुध / काम तथा भ्रूमध्य से क्रोध की उत्पत्ति का उल्लेख ), महाभारत शान्ति १६३ ( काम, क्रोध आदि तेरह दोषों का निरूपण तथा उनके नाश के उपाय का कथन ), १९९.११५ ( काम, क्रोध द्वारा विरूप व विकृत नामक रूप धारण करके इक्ष्वाकु राजा की परीक्षा लेने का कथन ),आश्वमेधिक ९०.९४, वराह २७.३४, ३५ ( काम क्रोध आदि अष्ट मातृकाओं में काम का योगीश्वरी और क्रोध का माहेश्वरी रूप में उल्लेख ), स्कन्द २.४.३०.२५( काम , क्रोध आदि के गुरुतल्प, पितृघात आदि पुत्रों का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.२५१.५८ ( लोमश द्वारा काम, क्रोध आदि पर विजय के उपाय का उल्लेख ) ।
कामगम पद्म ५.६७.४०( कामगमा : उग्राश्व - पत्नी ), भागवत ८.१३.२५ ( धर्मसावर्णि मनु के ग्यारहवें मन्वन्तर में ३० - ३० देवों के त्रिविध देवगणों में से एक गण का नाम ), विष्णु ३.२.३० ( वही) ।
कामगिरि ब्रह्माण्ड ३.४.३९.१०५ ( काञ्ची में स्थित एक प्रमुख पीठरूप ), भागवत ५.१९.१६ ( भारतवर्ष का एक पर्वत ) ।
कामचारिणी मत्स्य १३.२८ ( मन्दर पर्वत पर स्थित एक सती देवी की प्रतिरूप देवी की मूर्त्ति ) ।
कामचूडामणि कथासरित् ८.३.१५९ ( प्रतीहार द्वारा श्रुतशर्मा को सुनीथ - कन्या कामचूडामणि को मुक्त करने का उल्लेख ), ८.७.१२४ ( पार्वती - प्रतीहारों जया का सुमेरु को स्वकन्या कामचूडामणि को सूर्यप्रभ को देने के सन्देश का उल्लेख ) ।
कामठक महाभारत आदि ५७.१६ ( जनमेजय राजा के सर्प यज्ञ में मारा गया धृतराष्ट्र वंश का एक नाग ) ।
कामद पद्म६.१९५.६ ( गङ्गाद्वार के समीप स्थित कामद नामक नगर में भागवत ज्ञान यज्ञ सम्पन्न करने का उल्लेख ), स्कन्द ५.३.१०६.१९ ( कामद तीर्थ माहात्म्य : उमा - रुद्र की अर्चना से सौभाग्य प्राप्ति का कथन ) ।
कामदमन ब्रह्म १.१२१.२२, १.१२१.८७ ( आग्नीध्र - पुत्र कामदमन की कोकामुख नदी में स्नान से मुक्ति ) ।
कामदा नारद १.१२०.७ ( समस्त पापों की विनाशक चैत्र शुक्ल एकादशी की कामदा नाम से प्रसिद्धि, कामदा एकादशी व्रत विधि का उल्लेख ) ।
कामदुघा गर्ग ७.४६.१ ( प्रद्युम्न का स्वसैनिकों के साथ कामदुघा नदी के समीप स्थित पतंग नामक गन्धर्वराज से युद्ध का वर्णन ), ब्रह्माण्ड २.३.३.७४,७५ ( रोहिणी की चार पुत्रियों में से एक , गायों की माता ), वायु ६६.७२ ( रोहिणी की चार पुत्रियों में से एक ), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.७३, ९० ( कृष्ण - पत्नियों में से एक, विष्णु नामक पुत्र तथा सुरार्हणा नामक पुत्री की माता ) kaamadughaa
कामदेव मत्स्य २७७.६ ( कल्पवृक्ष दान के संदर्भ में कल्पवृक्ष के अधोभाग में पत्नी सहित कामदेव की कल्पना करने का निर्देश )।
कामधेनु गणेश १.७७.५१ ( जमदग्नि द्वारा कामधेनु की सहायता से राजा कार्त्तवीर्य का सत्कार, कामधेनु से उत्पन्न सेना द्वारा राजा की सेना की पराजय ), देवीभागवत २.३.२६ ( पृथु आदि ८ वसुओं का पत्नियों सहित घूमते हुए वसिष्ठ के आश्रम में आगमन , द्यौ नाम वसु की पत्नी का वसिष्ठ ऋषि की नन्दिनी गौ को देखना , द्यौ द्वारा गौ के ऐश्वर्य का वर्णन , गौ का हरण तथा वसिष्ठ द्वारा वसुओं को शाप का वृत्तान्त), नारद २.२८.७१ ( धर्म का महत्त्व बतलाते हुए राक्षसी द्वारा धर्म के कामधेनु से सादृश्य का कथन), ब्रह्मवैवर्त्त ३.२४.१२, ३.२४.४० ( राजा कार्त्तवीर्य को क्षुधा से पीडित देखकर जमदग्नि मुनि द्वारा राजा को भोजन हेतु निमन्त्रित करना , मुनि का कामधेनु गौ को समस्त वृत्तान्त सुनाना , कामधेनु द्वारा अतिथि सत्कार हेतु समस्त सामग्री की सृष्टि , कार्त्तवीर्य का कामधेनु की याचना करना , मुनि द्वारा गौ देने में असमर्थता बताना , मुनि को भयभीत देखकर गौ द्वारा अपार सैन्य समूह की सृष्टि कर मुनि को अभय प्रदान करने का वृत्तान्त ), ब्रह्माण्ड २.३.२६.५४ ( राजा कार्त्तवीर्य के आतिथ्य हेतु जमदग्नि ऋषि की कामधेनु गौ द्वारा आतिथ्य सामग्री प्रस्तुत करने का वृत्तान्त ), ३.४.१५.३७( ललिता देवी के सिंहासनारूढ होने पर उनकी आज्ञा से चिन्तामणि , कल्पवृक्ष व कामधेनु आदि बहुमूल्य वस्तुओं के उपस्थित होने का उल्लेख ), मत्स्य १७९.७३ ( अन्धकासुर विनाशार्थ सृष्ट मानसी शक्तियों द्वारा जगत्क्षय होने पर शंकर की प्रार्थना पर श्री नृसिंह हरि द्वारा सृष्ट ३२ मातृकाओं में से शुष्करेवती की अनुचरी एक मातृका ), २७९ ( काञ्चन निर्मित कामधेनु दान विधि ), वायु ११२.५६ ( कामधेनुपद : गया - स्थित कामधेनुपद में पिण्डदान करने से पितरों को ब्रह्मलोक की प्राप्ति का उल्लेख ), स्कन्द ३.२.१०.२ ( ब्रह्मा के आह्वान पर कामधेनु का आगमन , विप्रों की रक्षा हेतु कामधेनु की हुंकार से वणिजों की उत्पत्ति की कथा ), ४.१.२९.४१( गङ्गा सहस्रनामों में से एक ), ५.१.४६.१३ ( कामधेनु - प्रदत्त अतुल ऐश्वर्य के कारण कुशस्थली पुरी के अमरावती नाम धारण करने का प्रसंग ), ५.१.७३.३ ( कामधेनु की तपस्या से महेश्वर का प्रकट होना तथा गोपारेश्वर तीर्थ निर्माण का प्रसंग ), ६.६६.३८ ( जमदग्नि आश्रम में राजा सहस्रार्जुन द्वारा कामधेनु को मांगना, ऋषि के मना करने पर राजा द्वारा जमदग्नि के वध का प्रसंग ), वा.रामायण १.५२.२२-२३ ( महर्षि वसिष्ठ द्वारा कामधेनु को विश्वामित्र के सत्कार हेतु अभीष्ट वस्तुओं की सृष्टि करने का आदेश ), १.५३ ( कामधेनु द्वारा विश्वामित्र के आतिथ्य हेतु भोजन की प्रस्तुति , विश्वामित्र द्वारा कामधेनु की याचना , वसिष्ठ द्वारा गौ देने में असमर्थता व्यक्त करने का वृत्तान्त ), १.५४ ( कामधेनु देने के लिए मना करने पर विश्वामित्र द्वारा कामधेनु का हरण , कामधेनु द्वारा यवन सेना की सृष्टि ), लक्ष्मीनारायण १.४७९.५७ ( ग्रीष्म काल में नैवेद्य हेतु फल आदि के अभाव में कामधेनु द्वारा वाल्मीकि को स्व दुग्ध रूपी नैवेद्य प्रदान करना ), ३.१२८.१( सर्वसंकल्प साधक स्वर्णकामधेनु दान विधि का वर्णन ), ३.१८१.८४( शाश्वत सुख दुहने वाले सज्जनों की कामधेनु से समता का उल्लेख ), कथासरित् ९.६.१६९ ( माता - पिता की भक्ति की कामधेनु से समता ) kaamadhenu/ kamadhenu